उच्च न्यायालय के निर्देशों को फिर अंगूठा दिखाने की तैयारी में वीरभद्र सरकार

Created on Tuesday, 31 January 2017 08:33
Written by Shail Samachar


शिमला/बलदेव शर्मा
प्रदेश में अवैध भवन निमार्ण और सरकारी भूमि पर अवैध कब्जे दो ऐसे मसले है जिन पर उच्च न्यायालय भी अपनी चिन्ता व्यक्त करते हुए इन मामलों के लिये दोषी प्रशासनिक तन्त्र के खिलाफ कड़ी कारवाई करने के निर्देश दे चुका है। लेकिन न्यायालय का सम्मान करने की दुहाई देने वाली वीरभद्र सरकार ने इन मामलों में आये अदालती निर्देशों को अंगूठा दिखाते हुए अवैधताओं को नियमित करने का रास्ता अपना लिया है। स्मरणीय है कि शिमला और प्रदेश के अन्य भागों में हजारों की संख्या में अवैध भवन निर्माण है जबकि प्रदेश में टीसीपी एक्ट लागू है। लेकिन इस एक्ट के खिलाफ जाकर सरकार अवैध निर्माणो को नियमित करने के लिये नौ बार नियमों में ढील देकर रिटेन्शन पालिसियां ला चुकी है। हर बार लायी गयी पाॅलिसि के साथ यही कहा जाता रहा है कि यह अन्तिम बार है। लेकिन यह अन्तिम बार कभी नही आयी। इस बार तो प्रदेश उच्च न्यायालय ने इसका कडा संज्ञान लेते हुए दोषियों के खिलाफ कड़ी कारवाई करने के निर्देश जारी किये थे। लेकिन इसका सरकार पर यह असर हुआ कि निर्देशों को अंगूठा दिखाते हुए विधान सभा में टीसीपी एक्ट में ही संशोधन का प्रस्ताव लेकर आ गयी जो कि ध्वनि मत से सदन में पारित हो गया।
विधानसभा से पारित होकर यह संशोधित विधेयक राजभवन पहुंचा। राज्यपाल ने भी उच्च न्यायालय की चिन्ता को स्वीकारते हुए इसको अपनी स्वीकृति देकर राजभवन में रोक लिया लेकिन राज्यपाल को भी अन्त में राजनीतिक दबाव के आगे झुकना पड़ा। क्योंकि सबसे पहले भाजपा ने ही राजभवन पहंुच कर इस संशोधित विधेयक को स्वीकृति देने के लिये राज्यपाल पर दबाव डाला भाजपा के बाद कांग्रेस ने राजभवन में दस्तक दी और इसे स्वीकार करने का आग्रह किया। राजभवन ने वाकायदा पत्र लिखकर सरकार से पूछा कि उच्च न्यायालय के निर्देशानुसार दोषी अधिकारियों के खिलाफ सरकार क्या कारवाई करने जा रही है और राजभवन के इस सवाल का मुख्यमन्त्री ने सार्वजनिक ब्यान देकर जबाव दिया कि सरकार की कारवाई करने की कोई मंशा नही है। मुख्यमन्त्री के इस ब्यान के बाद राजभवन ने इस संशोधन पर अपनी मोहर लगा दी है और अवैधता को नियमित करने का यह एक्ट लागू हो गया है।
इसी तर्ज पर अब वीरभद्र सरकार अवैध जमीन कब्जों को नियमित करने के लिये उच्च न्यायालय के समक्ष एक पालिसी रखने जा रही है। स्मरणीय है कि प्रदेश में सरकारी भूमि पर लाखों की संख्या में अवैध कब्जे है। प्रदेश उच्च न्यायालय इन अवैध कब्जोें का कड़ा संज्ञान लेकर इनको हटाने के कई आदेश पारित कर चुका है। अपने आदेशों पर अमल सुनिश्चित करने के लिये उच्च न्यायालय संबद्ध शीर्ष अधिकारियों की जिम्मेदारी भी लगा चुका है। इन आदेशों पर आंशिक रूप से अमल भी हुआ है। लेकिन उच्च न्यायालय की गयी कारवाई की रफतार से संतुष्ट नही था। इस लिये अपने अन्तिम निर्देशों में उच्च न्यायालय ने राज्य प्रशासन के साथ ही भारत सरकार के प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को भी निर्देश जारी किये थे कि अवैध कब्जों के मामलों में ईडी मनीलाॅंडरिग प्रावधानों के तहत कारवाई करे। राज्य के वन विभाग को भी निर्देश दिये थे कि वह इन मामलों से जुड़ा सारा रिकार्ड तुरन्त प्रभाव से ईडी को भेजे। अदालत के इन निर्देशांे पर सचिव वन की ओर से विभाग को दो बार पत्र भेज कर यह कहा गया था कि उच्च न्यायालय के निर्देशानुसार इन मामलों से जुडे रिकार्ड को भेजा जाये। सचिव वन के पत्र के बाद विभाग ने भी इस पर अपली कारवाई डालते हुए नीचे जिला स्तर पर पत्र भेज दिया है। लेकिन इस पर व्यवहारिक रूप से क्या कारवाई हुई है। इसपर विभाग पूरी तरह खामोश है।
स्मरणीय है कि सरकारी भूमि पर अवैध कब्जों को नियमित करने के लिये वर्ष 2002 में तत्कालीन धूमल सरकार ने एक योजना बनाई थी। इस पर तत्कालीन राजस्व मन्त्री ने योजना बनाकर प्रदेश के लोगों से आग्रह किया था कि वह स्वेच्छा से शपथपत्र देकर अपने-अपनेे अवैध कब्जों की सरकार को जानकरी दे। सरकार के इस आग्रह पर करीब पौने दो लाख लोगों ने सरकारी भूमि पर अवैध कब्जे स्वीकारे थे। लेकिन उसी दौरान इस योजना को प्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौती दे दी। इस पर उच्च न्यायालय ने इन मामलों में सरकार के स्तर पर अन्तिम फैसला लेने से अदालत का फैसला आने तक रोक लगा दी। तब से यह मामला अदालत में लंबित चल रहा है। लेकिन इसी बीच अवैध कटान और अवैध कब्जों को लेकर कई और मामले अदालत के सामने आ गये। इन अदालत ने सरकार से वन भूमि और दूसरी सरकारी भूमि पर हुए अवैध कब्जो की अलग-अलग जानकारी मंागी। इस पर जो जानकरी अदालत में आयी है उसमें वन भूमि पर ही हजारों में अवैध कब्जे सामने आये है। इसके बाद दस बीघे या इससे अधिक की भूमि पर कब्जों की सूची मांगी गयी। इसमें भी हजारों की संख्या सामने आयी है। वनभूमि पर सबसे अधिक अवैध कब्जे शिमला के रोहडू में सामने आये है। प्रदेश के राजस्व की जानकारी रखने वालों के मुताबिक यहां पर अधिकांश में खाली जमीन पर वन भूमि का इन्दराज है। लगभग 90प्रतिशत  खाली जमीन पर फाॅरेस्ट का इन्दराज है। इसी कारण विकास भूमि के हर कार्य के लिये केन्द्र सरकार के वन मन्त्रालय से पूर्व स्वीकृति लेने की आवश्यकता रहती है और आज सैंकडो ऐसे मामले केन्द्र के पास लंबित पडे़ है।
अदालत के निर्देशानुसार अब इन अवैध को लेकर देर-सवेर कारवाई करनी ही पड़ेगी की स्थिति बन गयी है। वन भूमि पर कोई भी फैसला लेने का अधिकार राज्य सरकार को नही और अधिकांश अवैध कब्जे वनभूमि पर है। वीरभद्र सरकार को लेकर आम आदमी में यह धारणा बन चुकी है कि यह सरकार हर अवैधता को नियमित करने के लिये हर समय तैयार रहती है। इसी धारणा के तहत राजस्व मन्त्री कौल सिंह की अध्यक्षता में अवैध कब्जों को लेकर नीति बनाने के लिये कमेटी गठित की गयी है। लेकिन अब यह मामला उच्च न्यायालय के भी संज्ञान में है और वनभूमि को लेकर केन्द्र सरकार भी बीच में आयेगी। ऐसे में क्या वीरभद्र सरकार इस अवैधता को भी नियमित करने का जोखिम उठा पायेगी?