वनभूमि अतिक्रमण पर उच्च न्यायालय के निर्देशों के बावजूद अभी तक कोई कारवाई नहीं

Created on Tuesday, 29 November 2016 12:14
Written by Shail Samachar

सरकार, विजिलैन्स और ईडी ने अभी तक नही उठाया कोई कदम


शिमला/शैल। वनभूमि पर किये नाजायज कब्जों का कड़ा संज्ञान लेते हुए प्रदेश उच्च न्यायालय ने 29.8.2016 को दिये अपने फैसले में राज्य सरकार को निर्देश दिये थे कि वनभूमि पर नाजायज कब्जा करके उस पर फलदार पौधे लगाने वालों की पहचान करके उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करके इन अवैध कब्जों को छुड़ाये। उच्च न्यायालय ने भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के निदेशक प्रर्वतन (ईडी) को भी निर्देश दिये थे कि वह ऐसे अवैध कब्जा धारकों के खिलाफ धन शोधन (मनी लाॅड़रिंग) के तहत तीन ताह के भीतर मामले दर्ज करके कारवाई करे। अदालत ने राज्य सरकार को यह भी निर्देश दिये थे कि वह चार सप्ताह के भीतर ऐसे लोगों की पूरी जानकारी ईडी को उपलब्ध करवाये जिन्होने दस बीघे या इससे अधिक वनभूमि का अतिक्रमण कर रखा है। वनभूमि पर हुुए अतिक्रमणों को लेकर प्रदेश उच्च न्यायालय के पास Cr. Appeal No. 224 of 2010 तथा CWPIL 17 of 2014 दो याचिकाएं थी जिन पर फैसला देते हुए अदालत ने यह निर्देश दिये है। स्मरणीय है कि इन मामलों की सुनवाई के दौरान भी इन अतिक्रमणों को हटाने और अतिक्रमणकारियों के खिलाफ कड़ी कारवाई करने के अन्तरिम निर्देश देते रहें है लेकिन इस पर पूरी ईमानदारी से कारवाई नहीं हुई और अब अन्त में अदालत ने ईडी को भी इसमें कारवाई के निर्देश दिये है।
उच्च न्यायालय के फैसले के मुताबिक राज्य सरकार को चार सप्ताह के भीतर ऐसे लोगों की जानकारी ईडी कोे देनी थी। ईडी को तीन माह के भीतर ऐसे लोगों के खिलाफ मामले दर्ज करके अगली कारवाई शुरू करनी थी। उच्च न्यायालय का फैसला और निर्देश आये हुए तीन माह का समय निकल चुका है। लेकिन अभी तक इस दिशा में कहीं भी कोई कारवाई शुरू नहीं हुई है। राज्य सरकार के सचिवालय से इस संद्धर्भ में 3.9.2016 को पत्र संख्या FFE-B-E (3). 74/2016 को प्रधान अरण्यपाल को इस फैसले की कापी भेजकर इसमें अदालत के निर्देशानुसार तय समय के भीतर आवश्यक कारवाई करने के निर्देश जारी किये गये थे। इस फैसले के बाद ईडी ने भी आवश्यक जानकारी सरकार से मांगी है। सचिवालय ने 16.11.2016 को प्रधान अरण्यपाल को फिर पत्र भेजकर इस संद्धर्भ में निर्देशित कारवाई करने के लिये कहा है। शैल ने जब वन विभाग के संवद्ध अधिकारियों से इस बारे में बात की तो उन्होने राज्य सचिवालय से 3.9.2016 को कोई ऐसा पत्र आने से साफ इन्कार कर दिया। संवद्ध अधिकारी ने 16.11.2016 का पत्र मिलने को स्वीकारते हुए यह बताया कि इस पत्र के बाद फील्ड के संवद्ध अधिकारियों को इस संबध में आवश्यक कारवाई करने के निर्देश जारी कर दिये है। वन विभाग द्वारा की जा रही इस कारवाई से स्पष्ट हो जाता है कि विभाग इन अतिक्रमणों के खिलाफ कारवाई करने के लिये कितना गंभीर है। उच्च न्यायालय ने चार सप्ताह के भीतर जो कारवाई करने के निर्देश दिये थे उस संबंध में तीन माह बाद फील्ड अधिकारियों को आवश्यक कारवाई करने के लिये पत्र भेजा गया है।
वनभूमि पर अतिक्रमण करके प्रदेश के सारे सेब उत्पादक क्षेत्रों में करीब हर परिवार के खिलाफ थोड़े बहुत अतिक्रमण का आरोप है। दस बीघे या उससे अधिक वनभूमि पर अतिक्रमण के हजारों मामलों की सूची अदालत के पास मामले की सुनवाई के दौरान ही आ चुकी है। प्रदेश वनभूमि पर अतिक्रमण के सबसे अधिक मामले मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के पुराने चुनाव क्षेत्र रोहडू से सामने आये है। स्मरणीय है कि प्रदेश सरकार ने सरकारी भूमि पर हुए अवैध कब्जों को नियमित करने के लिये वर्ष 2002 में एक नीति घोषित की थी। इस नीति के तहत लोगों से स्वेच्छा से अपने अवैध कब्जों की वाकायदा शपथ पत्र के साथ राज्य सरकार को जानकारी देने को कहा गया था। इस नीति के तहत एक लाख से अधिक लोगों ने सरकारी/वनभूमि पर अवैध कब्जा होना स्वीकारा है। लेकिन इस नीति पर अमल होने से पहलेे ही इसे प्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौती दे दी गयी। उच्च न्यायालय ने इस नीति पर प्रशासन को अपनी प्रक्रिया जारी करने के निर्देश देते हुए यह कहा था कि इसमें अवैध कब्जा धारक को भूमि पट्टा अदालत का अन्तिम फैसला आने तक न दिया जाये। यह मामला अभी भी उच्च न्यायालय में लंबित है। अब यह मामला प्रशासनिक से ज्यादा राजनीतिक बन गया है। क्योंकि लाखों लोग प्रदेश में सरकारी वनभूमि पर अवैध कब्जे के दोषी है। प्रदेश उच्च न्यायालय के ताजा फैसले से इन सब लोगों से अवैध कब्जे छुड़ाने होंगे। माना जा रहा है कि पूरे मामले की राजनीतिक गंभीरता को देखते हुए इस मामले को लम्बाने की नीति अपनाई जा रही है।