शिमला/शैल। मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह और उनके प्रधान निजि सचिव सुभाष आहलूवालिया के मामलों में ईडी के अलग-अलग आचरण को लेकर सवाल उठने शुरू हो गये हैं। स्मरणीय है कि मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह के खिलाफ सीबीआई में दर्ज आय से अधिक संपत्ति का मामला ईडी में उनके एलआईसी ऐजैन्ट आनन्द चैहान की गिरफ्तारी तक जा पहुंचा है। वीरभद्र और उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह इस मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय से लगातार सुरक्षा की गुहार लगा रहे हंै । लेकिन अभी तक सफलता नही मिली है। जबकि सुभाष आहलूवालिया के मामले में ईडी एकदम खामोश बैठ गया है। ईडी की इस खामोशी को लेकर जांच ऐजैन्सी की निष्पक्षता और उसमें संभावित जुगाड़तन्त्र को लेकर हर तरह के सवाल उठने लग पड़े हैं।
स्मरणीय है कि ईडी में 2015 के शुरू में ही दो वकीलों अजय पराशर और अनिल कालिया द्वारा कालेधन पर गठित एसआईटी के सदस्य सचिव एम एल मीणा को सुभाष आहलूवालिया के खिलाफ भेजी शिकायत मिली थी। शिकायत में आहलूवालिया के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति और मनीलाॅंडरिंग के गंभीर आरोप लगाये गये हैं। कालेधन पर गठित एसआईटी को भेजी यह शिकायत जब सामान्य विभागीय प्रक्रिया के तहत ईडी के पास पहुंची तो इसे अगली कारवाई के लिये शिमला कार्यालय को भेजा गया था। ईडी के शिमला कार्यालय में पहंुची इस शिकायत पर सुभाष आहलूवालिया को अपना पक्ष रखने के लिये नोटिस भेजा गया था। नोटिस में यह कहा गया था कि अमेरीका में उनके कथित कज़िन नरेश आहलूवालिया के साथ उनके रिश्तों तथा नरेश आहलूवालिया के विषय में विस्तृत जानकारी जानने के लिये उन्हें तलब किया गया है। लेकिन जैसे ही इस नोटिस के भेजे जाने के समाचार छपे उसी के साथ ईडी के शिमला स्थित सहायक निदेशक भूपेन्द्र नेगी की प्रतिनियुक्ति रद्द किये जाने को लेकर प्रदेश सरकार को पत्र भेज दिया। इस पत्रा के साथ बढ़े विवाद पर भाजपा ने प्रदेश विधान सभा में हंगामा खड़ा कर दिया था। सदन की कारवाई बाधित कर दी गयी थी। उस समय मुख्यमन्त्री ने सदन को बताया था कि सुभाष आहलूवालिया का मामला चण्डीगढ़ स्थानान्तरित हो चुका है। चण्डीगढ़ कार्यालय के मुताबिक यह मामला दिल्ली स्थानान्तरित हो चुका है। यह एक गंभीर शिकायत थी जिस पर सदन की कारवाई बाधित कर दी गयी थी।
लेकिन इस विवाद के बाद आज तक इस शिकायत को लेकर और कोई कारवाई सामने नहीं आयी है। शिकायत में 103 करोड़ के कालेधन तथा सोलह बैंक खातों और उन्नीस संपतियों का विवरण है। सबसे रोचक पक्ष यह है कि जब यह शिकायत चर्चा में आयी थी उस समय वीरभद्र परिवार के खिलाफ सीबीआई या ईडी में कहीं कोई मामला नहीं था। लेकिन उसके बाद वीरभद्र के परिवार के खिलाफ दर्ज मामले कहीं के कहीं पहुंच गये है। जबकि सुभाष के मामलों को भाजपा और ईडी तक सभी भूल गये हैं। ईडी के इस तरह के आचरण को लेकर सवाल उठना स्वाभाविक है। स्मरणीय है कि धूमल शासन में विजिलैन्स द्वारा शुरू की गई इस जांच का चालान विशेष न्यायाधीश वन की अदालत में पहुंचा था लेकिन इस पर कोई फैंसला आने से पहले ही सरकार बदल गयी और वीरभद्र सत्ता में आ गये तथा इस मामले को वापिस ले लिया गया । इसी कारण यह शिकायत नये सिरे से उठी और ई डी तक पहुंची है। यह शिकायत पाठकों के सामने यथास्थिति रखी जा रही है।