राज भवन बनाम सचिवालय

Created on Tuesday, 02 August 2016 07:51
Written by Shail Samachar

शिमला। क्या प्रदेश के राजभवन और राज्य सरकार के सचिवालय के बीच खुला टकराव होने जा रहा है। यह चर्चा सचिवालय और राजभवन के गलियारों से निकलकर मालरोड के स्कैंडल प्वाईंट तक पहुंच गयी है। चर्चा का आधार है राजभवन में लंबित खेल विधेयक। वीरभद्र सरकार ने इस कार्यालय में एक बार फिर विधानसभा में नया खेल विधेयक पारित करवाया है। जब यह विधेयक सदन मे चर्चा में आया था तो उस समय भाजपा ने इसका कड़ा विरोध करते हुए इसे सलैक्ट कमेटी को सौंपने का प्रस्ताव रखा था जिसे संख्या बल के आधार पर सरकार ने अस्वीकार करते हुए विधेयक पारित कर दिया था।
लेकिन इस विवादित विधेयक का विरोध सदन से निकल कर राजभवन तक पहुंच गया। भाजपा के एक प्रतिनिधिमण्डल ने राजभवन में महामहिम राज्यपाल से मिलकर इस विधेयक को अपनी स्वीकृति न देने का अनुरोध किया। भाजपा के बाद एचपीसीए ने भी अनुराग की अध्यक्षता में राजभवन में दस्तक देकर इस विधेयक को स्वीकृति न देने का आग्रह किया। संयोगवश राज्यपाल की नियुक्ति भाजपा की मोदी सरकार ने की है। ऐसे में भाजपा के विरोध को नजर अन्दाज कर पाना राजभवन के लिये संभव ही नही है। इसी कारण से यह विधेयक आज तक राजभवन में लबिंत पडा हुआ है। वीरभद्र कई बार इस विधेयक को लेकर राजभवन को कोस चुके हैं। अब तो नया विधेयक लाने तक की धमकी दे दी है। लेकिन राजभवन पर अब भी कोई असर नही है। क्यांेकि वित विधेयक के अतिरिक्त अन्य किसी भी विधेयक को किसी समय सीमा के भीतर पारित करने या वापिस लौटाने की बाध्यता नही है। इसी के सहारे राजभवन खेल विधेयक पर खामोश बैठा है।
लेकिन अब कृषि और बागवानी विश्वविद्यालयों के उपकुलपतियों को सेवा विस्तार दिये जाने के सरकार के अनुरोध को ठुकराकर राजभवन ने अपनी नीयत और नीति जग जाहिर कर दी है। प्रदेश के भीतर चल रहे विश्वविद्यालयों के प्रशासनिक और शेैक्षणिक मामलों में राज्य सरकार को दखल का अधिकार नही है। इन पर कुलाधिपति के नाते राज्यपाल का ही एकाधिकार है। राज्य सरकार ने अपने ही स्तर पर सेवा विस्तार की अनुशंसा करके कुलाधिपति के अधिकारों का अतिक्रमण करने का जो प्रयास किया था उसे ठुकरा कर नये आवेदन मंगवाने की अधिसूचना जारी करके राज्य सरकार को करारा जवाब दिया है। राजभवन और राज्य सचिवालय में पनपता यह सौहार्द क्या रंग दिखायेगा इस पर सबकी निगाहें लगी हंै।