ज्यादतीयों के शिकार वीरभद्र और धूमल

Created on Tuesday, 10 May 2016 13:38
Written by Shail Samachar

शिमला। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह और पूर्व मुख्यमन्त्री प्रेम कुमार धूमल दोनों अपने अपने खिलाफ चल रहे मामलों को लगातार राजनीतिक प्रतिशोध और ज्यादती करार देेते आ रहे हैं। वैसे जितने ऊंचे स्वर में यह शीर्ष नेता अपनी व्यथा कथा जनता के सामनेे रखते आ रहे हैं उससे जांच ऐजैन्सीयों से लेकर अदालत तक का मन इनके आंसूओ से पसीजता जा रहा है। दोनों के खिलाफ एक बराबर के मामले हैं और दोनों के खिलाफ ही जांच ऐजैन्सीयों को हिरासत जैसा कदम उठाने का साहस नही हो पाया है। धूमल के खिलाफ वीरभद्र ज्यादती कर रहे हैं तो वीरभद्र के खिलाफ भाजपा की मोदी सरकार। लेकिन अब तक किसी के भी खिलाफ कुछ निर्णायक हुआ नही है। जनता दोनों के ब्यानों का मजा ले रही है वह जानती है कि कैसे दोनों जनता को मूर्ख मानकर चल रहे हैं।
दोनों के ब्यानों पर स्कैण्डल प्वाईंट तक पहुंची चर्चा में लोग एस एम कटवाल, स्व. वी एस थिंड और सुभाष आहलूवालिया का जिक्र करने लग जाते हैं। एस एम टवाल को वीरभद्र सरकार ने कैसे परेशान किया यह सब जानते है। यह भी सब जानते है कि आज तक कटवाल पर रिश्वत लेने का कोई आरोप नहीं लग पाया है। कटवाल के बाद धूमल शासन में स्व. वी एस थिंड और सुभाष आहलूवालिया की बारी आयी। वी एस थिंड के मामले में तो सीबीआई की क्लीन चिट को भी उनकी मौत के 15 दिन बाद उजागर किया गया था। लोकायुक्त की रिपोर्ट भी उनकी मौत के बाद सामने आयी थी। सुभाष आहलूवालिया के मामलों में तो आयकर विभाग की रिपोर्ट को भी अधिमान नही दिया गया था। आज भी बहुत सारे ऐसे मामलें है जिनमें इन्साफ की इंतजार है लेकिन तन्त्रा इन्साफ देने का साहस नही जुटा पा रहा है।
आज सचिवालय के गलियारों से लेकर स्कैण्डल तक हर आदमी यह सवाल उठा रहा है कि क्या कटवाल, थिंड और सुभाष के खिलाफ ज्यादती नही थी? क्या इनके गुनाहोें से इन राजनेताओं के गुनाह छोटे हैं? जनता सबके गुनाहों को याद रखती है। इन नेताओं से यही जानना चहा रही जिस चक्की में यह लोग पीसे है उससे होकर इन नेताओे को नही गुजरना चाहिये। काश इन नेताओं को यह अहसास हो पाये की ज्यादती क्या होती है और उसकी पीड़ा कितनी होती है।