शिमला /शैल। पूर्व मुख्यमन्त्री प्रेम कुमार धूमल के बेटे अरूण धूमल की मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह और उनके परिवार के खिलाफ आक्रामकता फिर से बढ़ने लगी है। शिमला में वीरभद्र सिंह द्वारा 1974 में हाॅलीलाज पांच हजार
में बेचे प्लाट को 2007 में हिमाचल सरकार द्वारा 25 लाख में अधिग्रहण कर लिए जाने का मुद्दा उछालने के बाद ऊना में पत्रकार वार्ता में ई डी द्वारा दिल्ली के ग्रेटर कैलाश में अटैच की गई अचल सम्पति का मुद्दा उछालकर वीरभद्र को प्रतिक्रिया देने पर विवश कर देना राजनीतिक सन्दर्भाें में अरूण धूमल की एक बडी सफलता है। अरूण धूमल के आरोपों का यह जवाब देना की अरूण धूमल कौन है वीरभद्र के स्तर के मुताबिक एक बहुत ही कमजोर प्रतिक्रिया है। बल्कि इससे अपरोक्ष में यह प्रमाणित हो जाता है कि इन आरोपों का कोई जवाब ही नहीं है क्योंकि छोटे धूमल ने हर आरोपों के दस्तावेजी प्रमाण मीडिया के साथ जारी किए हैं। अरूण धूमल के आरोपों पर मोहर लगाते हुए भाजपा विधेयक ने भी वीरभद्र सिंह को चुनौति दी है कि वह इन आरोपोे पर मानहानि का मामला दायर करने का साहस दिखाए। अरूण धूमल और भाजपा के साथ ही एच पी सी ए ने भी वीरभद्र और उनके बेटे विक्रमादित्य के खिलाफ जोरदार हमला किया बल्कि पहली बार एच पी सी ए ने बिना नाम लिए शान्ता कुमार के खिलाफ भी निशाना साधा है।वीरभद्र पर हो रहे इन हमलों में कांग्रेस संगठन की और से कोई भी उनके बचाव में नहीं आया है।
वीरभद्र की और से आयी कमजोर प्रतिक्रिया पर यह सवाल उठता है कि क्या वीरभद्र और उनकी सरकार के पास धूमल परिवार के खिलाफ कुछ भी नहीं है? जबकि वीरभद्र बार बार धूमल सम्पतियों की जांच को लेकर बड़े बड़े ब्यान दागते रहे हैं। विजिलैन्स ने भी धूमल सम्पतियों की जांच को लेकर छपे समाचारों का कभी प्रतिवाद नहीं किया है। राजनीति का यह स्वभाविक नियम है कि अपने विरोधी के आरोप को सीधे नकारने के साथ ही उसके खिलाफ इतना बड़ा और जोरदार आरोप लगा दो कि उसके आगे आपका आरोप स्वतः ही छोटा पड़ जाए। वीरभद्र और उनकी पूरी टीम इस मोर्चे पर बुरी तरह असफल सिद्ध हो रही है। इससे यह प्रमाणित होता है कि या तो यह टीम पूरी तरह खाली है या फिर वीरभद्र के प्रति उनकी निष्ठाएं बदल चुकी हैं। इसमें चाहे जो भी स्थिति हो यह अन्ततः वीरभद्र के लिए घातक सिद्ध होगी।
इस समय वीरभद्र और उनके परिवार के खिलाफ सी बी आई और ई डी में दर्ज मामलों की जांच चल रही है। कानूनी प्रतिक्रियाओं का पूरा पूरा लाभ उठाकर इस मामले को यहां तक खींचने में भले ही सफल हो गये हों पर इस मामले को खत्म नहीं करवा पाए हैं। आज जो बड़े बाबू वीरभद्र के चारों ओर घेरा डालकर बैठे हैं उनका अपना स्वार्थ इतना भर ही है कि किसी तरह मुख्यमन्त्री अपना यह कार्यकाल पूरा कर लें। इस कार्यकाल के बाद इन मामलों में उनके परिवार का क्या होता है इससे इस टीम का कोई लेना देना नहीं है। संगठन के तौर पर भी वीरभद्र के गिर्द पुराने हारे हुए नेताओं की एक ऐसी टीम संयोगवश खड़ी हो चुकी है जिसने आगे चुनाव लड़ना ही नहीं है। इस टीम का स्वार्थ भी इतना मात्र ही है कि जब तक वीरभद्र सत्ता में बने रहेंगे तब तक ही उन्हें लाभ मिलता रहेगा। लेकिन जैसे जैसे धूमल/ भाजपा का अटैक वीरभद्र के खिलाफ बढ़ता जाएगा उसी अनुपात में अदालत और जांच एजैन्सीयों पर भी उसका असर पड़ता जाएगा। क्योंकि जब कोई दस्तावेजी प्रमाण मीड़िया के माध्यम से सार्वजनिक होते जाते है तब उन्हे नजर अन्दाज कर पाना संभव नहीं रह जाता है। आज वीरभद्र हर रोज इस तरह की स्थिति में घिरते जा रहे हैं और बहुत सम्भव है कि निकट भविष्य में उनके कुछ विश्वस्तों के खिलाफ भी ऐसे ही हालात देखने को मिलें। क्योंकि सूत्रों की माने तो कई पुराने मामलों को ताजा करने की रणनीति पर काम चल रहा है जिसके परिणाम और भी घातक होंगे। माना जा रहा है कि पिछले दिनों एक पत्रकार के माध्यम से वीरभद्र, धूमल और विक्रमादित्य के बीच में हुई बैठक में जो कुछ भी तय हुआ था उसका तत्कालिन लाभ तो कुछ को मिल गया था लेकिन अब उस बैठक से वीरभद्र के अतिरिक्त अन्य सभी पल्ला झाड़ रहें हैं क्योंकि इस बैठक के बाद बड़ी विजयी मुद्रा में उस पत्रकार को कहा था कि अब भविष्य में अरूण धूमल की जुबान बन्द रहनी चाहिए। लेकिन अरूण धूमल की पत्रकार वार्ताओं से स्पष्ट हो गया है कि यह सब बीते कल की बात हो गई है। राजनीति में इसके कई अर्थ निकलते हैं।