क्या सी.बी.आई. हरिकेश मीणा और देशराज की जमानते रद्द करवा पायेगी?

Created on Thursday, 12 June 2025 09:56
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। क्या सी.बी.आई. देशराज और हरिकेश मीणा की जमानते रद्द करवा पायेगी? क्या सी.बी.आई. भ्रष्टाचार के आरोपों को प्रमाणित कर पायेगी? क्या ओंकार शर्मा और डॉ. अतुल वर्मा संजीव गांधी की एल.पी.ए. में जवाब दायर करेंगे? क्या विमल नेगी प्रकरण सुक्खू सरकार और कांग्रेस की सेहत पर प्रभाव डालेंगे? यह सारे सवाल संजीव गांधी की एल.पी.ए. पर सरकार और अन्य को नोटिस जारी होने के बाद चर्चा में आये हैं। क्योंकि संजीव गांधी ने उच्च न्यायालय की एकल पीठ के फैसले को एल.पी.ए. में इसी कारण से चुनौती दी है कि क्योंकि एकल पीठ में जो स्टेटस रिपोर्ट डी.जी.पी. ने दायर की है उसमें संजीव गांधी के बतौर एस.आई.टी. नियन्ता आचरण को लेकर कुछ प्रतिकूल टिप्पाणीयां है जिनका जवाब देने के लिये उन्हें समय नहीं मिला था। इसी तरह ओंकार शर्मा की प्रशासनिक जांच रिपोर्ट को लेकर सरकार को कुछ एतराज रहे हैं। इसीलिये एकल पीठ के फैसले के बाद सरकार ने ओंकार शर्मा, डी.जी.पी. अतुल वर्मा और संजीव गांधी को छुट्टी पर भेज दिया था। यह तय है कि सरकार ने इन लोगों को छुट्टी पर भेजने का फैसला किसी ठोस आधार पर ही लिया होगा। इसलिये एल.पी.ए. की सुनवाई में मान्य अदालत ने इन अधिकारियों को अपना जवाब दायर कर अपना पक्ष रखने का मौका दिया है। स्व. विमल नेगी की मौत प्रकरण की जांच उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने इसी आधार पर सी.बी.आई. को सौंपने का फैसला लिया था क्योंकि इसमें डी.जी.पी. और संजीव गांधी की स्टेटस रिपोर्टों में अन्तः विरोध थे और ऐसे अन्तः विरोधों के चलते इन निष्कर्षों पर अविश्वास उठना स्वभाविक ही था।
स्मरणीय है कि स्व. विमल नेगी की मौत के प्रकरण से उनके परिजनों ने पावर कारपोरेशन के शीर्ष अधिकारियों पर नेगी को प्रताड़ित करने के आरोप लगाये हैं। इस प्रताड़ना का कारण यह बताया गया है कि स्व. नेगी पर इन अधिकारियों द्वारा भ्रष्टाचार में सहभागिता और इसमें किसी भी तरह का अवरोध न डालने का दबाव रहा है। भ्रष्टाचार के इस आरोप का संकेत इंजीनियर ग्रोवर ने भी प्रशासनिक जांच में ओंकार शर्मा को सौंपे शपथ पत्र में दिया है। पावर कारपोरेशन में भ्रष्टाचार के आरोप लंबे अरसे से लगते आ रहे हैं। इन आरोपों को लेकर एक समय एक पत्र बम भी चर्चा में रह चुका है और उसमें लगे आरोपों को नजरअन्दाज कर दिया गया था। यह सामान्य समझ की बात है कि जिस संस्थान में सैकड़ो करोड़ की परियोजनाओं को अंजाम दिया जा रहा था वहां पर कर्मचारियों/अधिकारियों में कार्य संस्कृति को लेकर उभरे मतभेदों के मूल में भ्रष्टाचार का होना स्वभाविक है। क्योंकि कार्यस्थल पर आपसी मतभेदों का कारण पारिवारिक संबंध नहीं होते। स्व.नेगी के परिजनों और पावर इंजीनियर एसोसियेशन ने भी भ्रष्टाचार के आरोप लगाये हैं। फिर जब स्व. नेगी का शव बरामद होता है तब उस समय उनके मोबाइल और पेन ड्राइव को गायब कर देना और उसे फारमैट करना वह भी उस व्यक्ति द्वारा जो किसी एस.आई.टी. का सदस्य ही नहीं था। उस कर्मचारी पंकज ने यह सब क्यों किया, किसके ईशारे पर किया यह अभी तक बाहर नहीं आया है। डी.जी.पी. की स्टेटस रिपोर्ट में इस पंकज के व्यवहार पर टिप्पणी है लेकिन शायद एस.आई.टी. की स्टेटस रिपोर्ट में नहीं है।
इस प्रकरण में परिजनों और पावर इंजीनियर एसोसियेशन और प्रशासनिक जांच में जितने भी लोगों के ब्यान कमलबद्ध किये गये हैं सबने प्रताड़ना की पुष्टि की है। इस प्रताडना के मुख्य आरोप देशराज और हरिकेश मीणा पर लगे हैं और यह दोनों अग्रिम जमानत पर हैं। ऐसे में यह महत्वपूर्ण हो गया है कि क्या सी.बी.आई. इन अधिकारियों की जमानत रद्द करवा कर इन से गहन पूछताछ कर पायेगी? इसी तरह संजीव गांधी ने जो एतराज डी.जी.पी. की स्टेटस रिपोर्ट पर लगाये हैं यहां तक कह दिया है कि कुछ पूर्व मामलों मिडल बाजार के रसोई ब्लास्ट और फिर रामकृष्ण मिशन के ब्रह्मो समाज मामले में डी.जी.पी. और मुख्य सचिव की भूमिकाएं संदिग्ध रही हैं। यह आरोप अब आम चर्चा में आ गये हैं क्योंकि एक जिम्मेदार अधिकारी लगा रहा है। इन आरोपों के बाहर आने पर सरकार पर भी यह सवाल उठने शुरू हो गये हैं कि सरकार इन आरोपों पर अब तक चुप क्यों रही है। इस प्रकरण में अब सबकी नजरें इस पर लगी है क्या सी.बी.आई. देशराज और मीणा की अग्रिम जमानते रद्द करवा कर भ्रष्टाचार के आरोपों की सत्यता आम आदमी के सामने ला पायेगी? इसी के साथ यदि ओंकार शर्मा के छुट्टी पर और डी.जी.पी. अतुल वर्मा के सेवानिवृत हो चुकने के बाद क्या इन पदों पर तैनात नये अधिकारी उच्च न्यायालय में जवाब दायर करते हैं या नहीं। जवाब दायर न करने की स्थिति में माना जा रहा है कि संजीव गांधी को इस मामले में सीमित राहत का मार्ग स्वतः ही प्रशस्त हो जाता है।