नादौन में ई-बस डिपो के लिए खरीदी जमीन आयी सवालों में

Created on Sunday, 11 May 2025 20:18
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। सुक्खू सरकार ने बस किराये में 15% की बढ़ौतरी आदेशित की है। इस बढ़ौतरी से पहले न्यूनतम किराया दस रूपये कर दिया गया था। इस बस किराया बढ़ौतरी पर प्रदेश भर में रोष है। स्वभाविक है कि सरकार जब वित्तीय संकट से गुजर रही है तब राजस्व बढ़ाने के लिये सरकारी तंत्र आम आदमी की जेब की ओर ही देखेगा क्योंकि यही उसे सबसे आसान रास्ता नजर आता है। इसलिये सुक्खू सरकार ने प्रदेश के हर वर्ग पर किसी न किसी तरह से बोझ डाला ही है। अस्पताल से लेकर स्कूल तक सब प्रभावित हुये हैं। सुक्खू सरकार अपने खर्चे कम करने के बजाये जब आम आदमी पर बोझ डालेगी तो निश्चित रूप से आम आदमी भी सरकार के हर काम पर पैनी नजर रखना शुरू कर देगा। इसी कड़ी में परिवहन विभाग द्वारा मुख्यमंत्री के अपने चुनाव क्षेत्र नादौन में प्रस्तावित ई-बस डिपो आजकल विशेष चर्चा का विषय बना हुआ है। इस ई-बस डिपो के लिये परिवहन विभाग ने नादौन में मुख्यमंत्री के अपने गांव के पास करीब सात करोड़ में जमीन खरीदी है। लेकिन इस जमीन पर अभी बस डिपो बनाने के नाम पर कोई काम शुरू नहीं हुआ है। बल्कि खरीदी गई जमीन पर अभी परिवहन विभाग का बोर्ड तक नहीं लगा है। बल्कि यह कहना ज्यादा सही होगा कि शायद सरकार को यह जमीन खरीदने की ही जल्दी थी इस पर कुछ करने की नहीं। क्योंकि इस खरीद पर अब जो सवाल उठ रहे हैं वह बहुत ही गंभीर हैं उनसे सरकार की नीयत और नीति दोनों पर ही प्रश्न चिन्ह लग जाते हैं।

यह जमीन नादौन क्षेत्र के चार लोगों राजेंद्र सिंह राणा, प्रभात चन्द, अजय कुमार और रसीला राम से 6,82,04520 रुपए में खरीदी गयी है। इन लोगों ने यह जमीन राजा नादौन महेश्वर चन्द के जी.पी.ए. हरभजन सिंह के माध्यम से 2015 में 2,60,000 रुपए में खरीदी थी और 2024 में इसी जमीन को एच.आर.टी.सी. को करीब सात करोड़ में बेच दिया गया। यहां पर यह सवाल उठ रहा है कि जब 1974 में लैण्ड सीलिंग एक्ट लागू होने के बाद राजा नादौन के पास बची ही 316 कनाल जमीन थी तो राजा नादौन ने जी.पी.ए. के माध्यम से कैसे हजारों कनाल जमीन बेच दी। राजा नादौन को 1897 में अंग्रेज सरकार के दौरान 1,59000 कनाल जमीन बतौर जागीर मिली थी। यह जमीने रियासत नादौन के 329 गांव में फैली हुई थी। लेकिन इन जमीनों पर स्थानीय लोगों के बर्तनदारी के हक सुरक्षित रखे गये थे। यह जमीने पंजाब विलेज कॉमन लैण्ड एक्ट के तहत शामलात देह और फिर 1974 में हिमाचल प्रदेश विलेज कॉमन लैण्ड एक्ट के तहत यह जमीने सरकार की मलकीलत हो गयी। विलेज कॉमन लैण्ड की खरीद बेच नहीं हो सकती। सुप्रीम कोर्ट ने इस संद्धर्भ में जनवरी 2011 में एक सख्त फैसला देते हुये पूरे देश के मुख्य सचिवों को ऐसी जमीनों की सुरक्षा के विशेष निर्देश देते हुये समय-समय पर इस संबंध में सर्वाेच्च न्यायालय को सूचित करने के आदेश हुये हैं। लेकिन राजा नादौन ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद दिसम्बर 2011 में जी.पी.ए. बनाकर इन जमीनों को बेचना शुरू कर दिया। कई बड़े अधिकारियों और राजनेताओं ने सैकड़ो बीघे के हिसाब से इन जमीनों की खरीद की है।
अब जब एच.आर.टी.सी. नेे इन लोगों से जमीन खरीदी तब यह मामला पूरे प्रशासन के सामने आ चुका है क्योंकि इसका फैसला वाकायदा मंत्रिमंडल की बैठक में हुआ है। जिसमें मुख्य सचिव से लेकर सारा शीर्ष प्रशासन मौजूद था। नादौन में जिस राजस्व अधिकारी ने इस खरीद बेच के दस्तावेज सत्यापित किये हैं क्या उसको यह जानकारी नहीं रही होगी कि विलेज कॉमन लैण्ड की खरीद बेच हो रही है जबकि पर्चा जमाबन्दी में यह उल्लेख है कि ताबे हकूक बर्तनदारान। ऐसे में जब 2,60000 में 2015 में खरीदी गई जमीन को 2024 में एच.आर.टी.सी. को करीब सात करोड़ में बेच दिया गया और इसी पूरी प्रक्रिया में सारा शीर्ष प्रशासन मंत्री परिषद सहित संबंद्ध रहा है तब किसी ने भी इस पर कोई प्रश्न क्यों नहीं उठाया यह सवाल आज हर जुबान पर आ गया है। इस संबंध में सारे महत्वपूर्ण दस्तावेज पाठकों के सामने रखे जा रहे हैं क्योंकि यदि सरकार इस तरह के सौदों से परहेज करती तो शायद उसे यह किराया बढ़ाने की आवश्यकता ही न पड़ती।