- सक्सेना आईएनएक्स मामले में पी.चितंबरम के साथ सहअभियुक्त हैं
- केन्द्र ने अक्तूबर 2024 की अधिसूचना को नजरअन्दाज करके दिया है यह सेवा विस्तार
शिमला/शैल। मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना को सरकार के आग्रह पर छः माह का सेवा विस्तार मिल गया है। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है और केन्द्र में भाजपा की सरकार है। प्रदेश सरकार का केन्द्र सरकार पर यह लगातार आरोप रहा है कि केन्द्र प्रदेश को वांछित वित्तीय सहायता नहीं दे रहा है और इसलिये प्रदेश सरकार को कर्ज पर आश्रित होना पड़ रहा है। प्रदेश में आयी प्राकृतिक आपदा में भी पूरी मदद न करने का आरोप रहा है। राज्यसभा के चुनाव के दौरान प्रदेश सरकार को धन बल के सहारे गिराने का सबसे गंभीर आरोप लगा। क्योंकि इस चुनाव में छः कांग्रेसी विधायकों ने भाजपा के पक्ष में मतदान किया। परिणाम स्वरुप कांग्रेस की सरकार होते हुये राज्यसभा भाजपा जीत गयी। धन बल के आरोप को प्रमाणित करने के लिये बालूगंज थाना में एक एफ.आई.आर. तक दर्ज हुई जो अभी तक लंबित चल रही है। ऐसे संबंधों के चलते यदि केन्द्र सरकार प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव को सेवा विस्तार देने के आग्रह को मान ले तो यह अपने में एक अलग इतिहास बन जाता है। क्योंकि इस सेवा विस्तार के लिए भारत सरकार की अपनी ही अक्तूबर 2024 की अधिसूचना को नजरअन्दाज करना पड़ा है। जिसका भारत सरकार की छवि पर निश्चित रूप से कोई सकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ा है। बल्कि इस सेवा विस्तार को एक बड़े राजनीतिक कदम के रूप में देखा जा रहा है।
क्योंकि प्रबोध सक्सेना पूर्व केन्द्रीय वित्त मंत्री पी.चिदंबरम के खिलाफ चल रहे आई.एन.एक्स. मीडिया मामले में सह अभियुक्त हैं। धन शोधन के इस मामले में चिदंबरम 105 दिन जेल में काट चुके हैं। उनका बेटा भी जेल जा चुका है। यह मामला सीबीआई अदालत में लंबित है। सक्सेना ने इस मामले में अपनी प्रशासनिक व्यस्तताओं के कवर में अदालत से हर पेशी पर हाजिर होने से छूट ले रखी है। यह सब कुछ राज्य सरकार के संज्ञान में है। केन्द्र में कांग्रेस और मोदी सरकार के रिश्ते जिस तरह के हैं उनके परिदृश्य में पी. चिदंबरम के खिलाफ चल रहा मनी लॉन्ड्रिंग का मामला सरकार और कांग्रेस दोनों के लिये बहुत ही संवेदनशील हो जाता है। सरकार यदि इस मामले में चिदंबरम को सजा दिलाने में सफल हो जाती है तो इसे पूरी कांग्रेस पर व्यापक नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। चिदंबरम का आरोप है कि उनके खिलाफ राजनीतिक द्वेष के कारण झूठा मामला बनाया गया है। ऐसे में यदि इस मामले का कोई सहअभियुक्त सरकारी गवाह बनकर चिदंबरम के खिलाफ ब्यान दे देता है तो मोदी सरकार के लिए यह एक बड़ी सफलता मानी जायेगी। इस सेवा विस्तार से ऐसी सारी संभावनाएं चर्चा में आ गयी हैं। क्योंकि अक्तूबर 2024 की भारत सरकार की अपनी अधिसूचना को नजरअन्दाज करके दिया गया यह सेवा विस्तार कुछ अलग ही इंगित करता है।
चर्चा है कि इस सेवा विस्तार के लिए प्रदेश के सांसद ने बहुत ही अहम भूमिका निभाई है। इस समय कांग्रेस और राहुल गांधी को घेरने के लिये यह सांसद बहुत ही बड़ी भूमिका निभा रहा है। फिर जिस तरह से प्रदेश में ई.डी. का दखल हो चुका है उससे सरकार अपनी ही मजबूरी में घिर गयी है। यदि इन परिस्थितियों का राजनीतिक लाभ लेकर भाजपा कांग्रेस को राष्ट्रीय स्तर पर कोई बड़ा नुकसान पहुंचा पाये तो उसके लिये ऐसा सेवा विस्तार एक अच्छा प्रयास हो सकता है। क्योंकि चिदंबरम इस मामले में सहअभयुक्तों के खिलाफ केन्द्र द्वारा कोई कारवाई न करते हुये सीधे उन्हें फसाने का प्रयास कर रही है। चिदंबरम का आरोप है कि मंत्री तक तो फाइल अधिकारियों से होकर आती है। किसी भी मामले में गुण दोष मंत्री के संज्ञान में लाना अधिकारियों का काम है। मंत्री पर तो तब आरोप आयेगा यदि मंत्री ने अधिकारियों की अनुशंसा को नजरअन्दाज करके अलग फैसला दिया हो। अक्तूबर 2024 की अधिसूचना में यह कहा गया है कि अधिकारी/कर्मचारी के खिलाफ आपराधिक मामला दायर होने से चाहे उसकी स्टेज कोई भी हो उसे संवेदनशील पोस्टिंग और सेवा निवृत्ति के बाद पुनर्नियुक्ति नहीं दी जा सकती है। जब केन्द्र ने अपनी ही इस अधिसूचना को नजरअन्दाज करके यह सेवा विस्तार दिया है तो उसके मायने निश्चित रूप से गंभीर होंगे।