क्या नादौन में बस स्टैंड के लिये सरकार की जमीन ही सरकार को बेच दी गयी

Created on Sunday, 15 December 2024 05:00
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। जब सुक्खू सरकार सत्ता में दो साल पूरे होने का बिलासपुर में जश्न मना रही थी तो उसी समय भाजपा बतौर विपक्ष राज्यपाल को सरकार के खिलाफ दो साल के कारनामों का काला चिट्ठा सौंप रही थी। इस काले चिट्ठे में एक आरोप यह दर्ज है कि मुख्यमंत्री के गृह विधानसभा क्षेत्र नादौन में ई बसों के लिए बनाये जा रहे बस स्टैंड के लिए 2015 में तीन लोगों राजेन्द्र कुमार, अजय कुमार प्रभात चन्द द्वारा 2,40,000 में खरीद कर उसी जमीन को 2023 में एचआरटीसी को चार सौ गुना दामों पर 6,72,61,226 रुपए में बेच दिया गया। यह लोग मुख्यमंत्री के नजदीकी है क्योंकि नादौन से ही ताल्लुक रखते हैं। भाजपा का यह आरोप अपने में बहुत कमजोर है क्योंकि किसी भी सौदे में लाभ कमाना कोई अपराध नहीं है। फिर जब यह जमीन 70 कनाल 2015 में खरीदी गयी और अब जब 2023 में बेची गई तो दोनों बार सर्किल रेट के आधार पर ही गणना की गयी होगी। फिर भाजपा का यह भी आरोप नहीं है कि इसमें सर्किल रेट को नजरअन्दाज किया गया है। फिर इसमें आरोप क्या है और भाजपा ने उस आरोप का खुलासा क्यों नहीं किया है। जबकि यह अपने में एक बड़ा घोटाला है। भाजपा के ही काले चिठ्ठे में एक आरोप यह भी है कि मुख्यमंत्री ने स्वयं 770 कनाल जमीन खरीद रखी है। मुख्यमंत्री सुक्खू और एचआरटीसी को 70 कनाल जमीन बेचने वाले सभी लोगों ने 2015 में राजा नादौन से यह जमीन खरीद रखी है।
स्मरणीय है कि राजा नादौन को 1857 में अंग्रेज शासन के दौरान 1,59, 986 कनाल 10 मरले जमीन बतौर जागीर मिली थी। यह जमीन पूरी रियायत के 329 गांवों में फैली हुई थी और राजस्व रिकॉर्ड में इन जमीनों पर ताबे हकूक बर्तन बर्तनदारान दर्ज था और आज भी दर्ज है। जिन जमीनों पर इस तरह का अन्दराज राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज होता है उनकी मालिक सरकार होती है कोई व्यक्ति विशेष नहीं। इसलिए 1974 के लैण्ड सीलिंग एक्ट के तहत राजा नादौन की सारी सरप्लस जमीनों की मालिक सरकार बन गयी। सीलिंग के बाद राजा नादौन के पास बची हुई केवल 316 कनाल जमीन थी। ऐसे में सवाल उठता है कि जिस मलिक के पास कानून के तहत बची ही 316 कनाल जमीन थी उसने 770 कनाल और 70 कनाल जमीने बेच कहां से दी? क्या राजा नादौन सरकार की जमीने ही प्राइवेट लोगों को बेचते रहे? फिर जब जमीनों पर राजस्व रिकॉर्ड में ताबे हकूक बर्तन बर्तनदारान का अन्दराज है तो संबंधित प्रशासन ऐसी सेल डीड को प्रमाणित कैसे करता रहा। राजा नादौन ने अपनी जमीने बचाने के लिये अदालतों में एक लम्बी लड़ाई लड़ी है। लेकिन 1984 में वित्तायुक्त आर.के.आनन्द के फैसले से कानूनी लड़ाई का अन्त हुआ। राजा नादौन केवल 316 कनाल के मालिक रहे थे। ऐसे में 1984 के बाद राजा नादौन द्वारा बेची गई हर जमीन सवालों के दायरे में आ जाती है।
यही नहीं लैण्ड सीलिंग एक्ट के लागू होने के बाद प्रदेश, हमीरपुर और नादौन का राजनीतिक नेतृत्व विधानसभा से लेकर संसद तक इस मुद्दे पर क्या करता रहा। जब 2023 में एचआरटीसी को 70 कनाल जमीन बेची गयी तो उसी दौरान प्रदेश सरकार लैण्ड सीलिंग एक्ट में संशोधन कर रही थी। तब भी किसी ने यह जानने का प्रयास नहीं किया कि अब भी प्रदेश में लैण्ड सीलिंग से अधिक जमीन रखने वाले कितने मामले हैं और क्यों है। जबकि 2011 में विलेज कामन लैण्ड की खरीद बेच का सर्वाेच्च न्यायालय ने कड़ा संज्ञान लेते हुये पूरे देश के मुख्य सचिवों को ऐसे मामलों पर कड़ी कारवाई करते हुये इसके बारे में शीर्ष अदालत को भी सूचित करने के निर्देश जारी कर रखे हैं। कानून की स्थिति को सामने रखते हुये स्पष्ट हो जाता है कि एचआरटीसी के संद्धर्भ में सरकार की जमीन पहले 2,40,000/- रुपए में तीन लोगों को बेची गयी और फिर उसी जमीन को 6,72,61,226 रूपये में बेच दिया गया तथा संबद्ध प्रशासन आंखें बन्द करके बैठा रहा। जबकि यह मामला जिला प्रशासन तक भी गया है।