पूर्व मुख्य संसदीय सचिवों की विधायकी जाना तय है

Created on Monday, 18 November 2024 12:37
Written by Shail Samachar
  • राज्य विधायिका ऐसा अधिनियम पारित ही नहीं कर सकती।
  • सीपीएस मामले पर आया उच्च न्यायालय का फैसला सरकार की सेहत पर भारी पड़ेगा।
  • सुप्रीम कोर्ट में स्टे मिलने की संभावनाएं बहुत कम हैं
शिमला/शैल। हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्तियों को अवैध और असंवैधानिक करार देते हुये तुरन्त प्रभाव से निरस्त कर दिया है। इसी के साथ 2006 में पारित इस आश्य के अधिनियम को भी निरस्त कर दिया है। उच्च न्यायालय ने कहा है कि In view of the above discussion, impugned H.P. Parliamentary Secretaries (Appointment, Salaries, Allowances, Powers, Privileges & Amenities) Act, 2006 is quashed as being beyond the legislative competence of theState Legislature.
Consequently, all subsequent actions, including the appointment of respondents No.5 to 10 in CWP No.2507 of 2023, who are also respondents No.4 to 9 in CWPIL No.19 of 2023, are held and declared to be illegal,unconstitutional, void ab-initio and accordingly are set aside.
Since the impugned Act is void ab initio therefore respondents No.5 to 10 in CWP No.2507 of 2023 (respondents No.4 to 9 in CWPIL No.19 of 2023) are usurpers of public office right from their inception and thus, their continuance in the office, based on their illegal and unconstitutional appointment, is completely impermissible in law. Accordingly, from now onwards, they shall cease to be holder of the office(s) of Chief Parliamentary Secretaries with all the consequences.
Accordingly, protection granted to such appointment to the office of Chief Parliamentary Secretary/ or Parliamentary Secretary as per Section 3 with Clause (d) of Himachal Pradesh Legislative Assembly Members (Removal of Disqualifications) Act, 1971 is also declared illegal and unconstitutional and thus, claim of such protection under above referred Section 3(d) is inconsequential. Natural consequences and legal implications whereof shall follow forthwith in accordance with law.
उच्च न्यायालय ने सर्वाेच्च न्यायालय द्वारा ऐसी ही नियुक्तियां असम सरकार द्वारा किये जाने पर आयी याचिका के फैसले के आधार पर दिया है। स्मरणीय है कि केन्द्र सरकार ने राज्यों द्वारा मंत्रीमंडलों के गठन में मंत्रियों की संख्या निर्धारित करते हुये 1-1-2004 को संविधान में 91वां संशोधन करके यह संख्या 15% निर्धारित की थी। जहां विधानसभा की सदस्य संख्या एक सौ से कम थी वहां पर मंत्रियों की संख्या बारह तय की थी। हिमाचल में इस संविधान संशोधन के बाद मंत्रियों की कुल संख्या बारह ही हो सकती है। लेकिन कई राज्यों में इस संविधान संशोधन को नजरअन्दाज करके मुख्य संसदीय सचिव और संसदीय सचिव बनाने के अपने-अपने अधिनियम पारित कर लिये। ऐसे अधिनियमों को देश के आठ उच्च न्यायालय रद्द कर चुके हैं। सर्वाेच्च न्यायालय के फैसले के बाद राज्यों के ऐसे अधिनियमों को colourable legislation कहा गया है। संसद इस आश्य के संविधान संशोधन को पारित कर चुकी है और सर्वाेच्च न्यायालय इसके पक्ष में फैसला दे चुका है ऐसी स्थिति में राज्यों के इस आश्य के अधिनियमों को अदालतों का संरक्षण नहीं मिल पाया है। इस परिदृश्य में प्रदेश उच्च न्यायालय ने सरकार के अधिनियम और उसके तहत की गयी नियुक्तियों को illegal, unconstitutional और void ab-initio करार दिया है। साथ ही यह भी स्पष्ट कर दिया है कि Natural consequences and legal implications whereof shall follow forthwith in accordance with law. उच्च न्यायालय ने 1971 के उस अधिनियम को भी अवैध और असंवैधानिक करार दे दिया है जिसके तहत अयोग्य घोषित होने के खिलाफ संरक्षण प्राप्त था। संरक्षण के अवैध और असंवैधानिक घोषित होने से जो भी लाभ इन लोगों को एक विधायक के अतिरिक्त मिले हैं उनकी भी वसूली होने की संभावना बन जाती है। प्रशासन ने उच्च न्यायालय के निर्देशों की अनुपालना करते हुये इन्हें पदों से मुक्त करते हुए अन्य सुविधाएं भी वापस ले ली हैं।
सरकार ने उच्च न्यायालय के फैसले को सर्वाेच्च न्यायालय में चुनौती दे दी है। सरकार की चुनौती के साथ ही याचिकाकर्ता भाजपा विधायकों की ओर से भी कैबिएट दायर कर दी गयी है। इस वस्तु स्थिति में सर्वाेच्च न्यायालय द्वारा उच्च न्यायालय के फैसले पर स्टेे मिलने की संभावना नहीं है। क्योंकि यह लोग पद छोड़ चुके हैं। पद छोड़ने से मामले की तत्कालिकता नहीं रह जाती। ऐसे में यदि सरकार की अपील सामान्य प्रक्रिया के तहत ही सुनवाई के लिये आती है तो इस कालखण्ड में राज्यपाल संविधान की धारा 191 और 192 के प्रावधानों की अनुपालना करते हुये इन लोगों को सदन की सदस्यता से बाहर कर सकते हैं।
शैल के पाठक जानते हैं की शैल ने पिछले वर्ष नौ जनवरी 22 मई और 23 नवम्बर को इस विषय पर विस्तार से लिखा था। स्व.वीरभद्र के कार्यकाल में भी प्रदेश उच्च न्यायालय ऐसी नियुक्तियों को सिटीजन प्रोटेक्शन फॉर्म की याचिका पर रद्द कर चुका है। सरकार उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ सर्वाेच्च न्यायालय में गयी थी। शीर्ष अदालत में हिमाचल की एसएलपी असम के मामले के साथ टैग हुई थी। इस पर जुलाई 2017 में फैसला आया था। शीर्ष अदालत ने स्पष्ट कहा था कि राज्य विधायिका ऐसा कोई अधिनियम पारित करने की पात्र ही नहीं है। शैल ने शीर्ष अदालत का यह फैसला पाठकों के समक्ष रख दिया था। अब असम के आधार पर ही प्रदेश उच्च न्यायालय का विस्तृत फैसला आया है। उच्च न्यायालय के इस फैसले का प्रदेश की वर्तमान राजनीति पर गहरा और दूरगामी प्रभाव पड़ेगा। इस फैसले के बाद सरकार के खिलाफ उभरते रोष के स्वर ज्यादा मुखर होने की संभावना है।