प्रधानमंत्री ने प्रदेश सरकार की परफॉरमैन्स को फिर बनाया चुनावी मुद्दा

Created on Thursday, 07 November 2024 13:11
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हिमाचल सरकार की परफॉरमैन्स को महाराष्ट्र और झारखण्ड विधानसभा चुनावों में फिर मुद्दा बनाकर उछाला है। प्रधानमंत्री ने आरोप लगाया है कि कांग्रेस ने विधानसभा चुनावों में सत्ता में आने के लिये जो गारंटीयां प्रदेश की जनता को दी थी आज उन्हें पूरा करने के लिये सरकार का वितीय सन्तुलन पूरी तरह से बिगड़ गया है। आज हिमाचल के कर्मचारियों को अपने वेतन भत्तों और एरियर के लिये सड़कों पर आना पड़ रहा है। कांग्रेस सत्ता में आने के लिये झूठी गारंटीयां देती है अब यह तथ्य कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष खड़गे ने भी स्वीकार कर लिया है। खड़गे ने एक पत्रकार वार्ता के दौरान कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डी.के.शिवकुमार पर अपनी नाराजगी जाहिर की है और कहा है कि गारंटीयां बजट को देखकर दी जानी चाहिये। मुख्यमंत्री सुक्खू ने प्रधानमंत्री के आरोप के जवाब में कहा है कि प्रदेश सरकार ने विधानसभा चुनाव में दी दस में से पांच गारंटीयां पूरी कर दी हैं। इन पांच गारंटीयों में कर्मचारियों की ओल्ड पैन्शन योजना बहाल कर दी है। पात्र महिलाओं को 1500 रूपये मासिक भत्ता, कक्षा एक से ही अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा प्रदान करना, 680 करोड़ का स्टार्टअप फण्ड स्थापित करना, दूध का न्यूनतम वेतन मूल्य लागू करना शामिल है। इसी के साथ मुख्यमंत्री ने यह भी दावा किया है कि कर्मचारियों के महंगाई भत्ते में 11ः की वृद्धि की गयी है। अर्थव्यवस्था में 23 प्रतिशत की बढ़ौतरी करके 2200 करोड़ का अतिरिक्त राजस्व अर्जित किया है। मुख्यमंत्री ने पांच गारंटीयां पूरी कर देने का दावा किया है। लेकिन इस दावे पर उस समय स्वतः ही प्रश्न चिन्ह लग जाता है जब यह सामने आता है कि गारंटींयां लागू होने के बाद भी कांग्रेस लोकसभा की चारों सीटें क्यों हार गयी। क्या गारंटीयां लागू होने का प्रदेश के कर्मचारियों और जनता पर कोई असर नहीं हुआ? सुक्खू सरकार ने मंत्रिमण्डल की पहली ही बैठक में कर्मचारियों के लिये ओल्ड पैन्शन बहाल कर दी थी। सरकार ने सारे कर्मचारीयों के लिये ओल्ड पैन्शन लागू करने की घोषणा की थी। लेकिन आज भी कुछ निगमों, बोर्डों और स्थानीय निकायों के कर्मचारी ओल्ड पैन्शन की मांग कर रहे हैं परन्तु सरकार उनकी मांग पूरी नहीं कर पा रही है। स्मरणीय है की प्रदेश के कर्मचारियों के लिये न्यू पैन्शन योजना 15 मई 2003 से लागू की गयी थी। इसके मुताबिक जो कर्मचारी 2004 से सरकारी सेवा में आये उन पर न्यू पैन्शन स्कीम लागू हुई और अब उन्हीं को ओल्ड पैन्शन के दायरे में लाया गया। 2003 तक के कर्मचारी तो पहले ही ओल्ड पैन्शन के दायरे में थे। पैन्शन तो सेवानिवृत्ति पर ही मिलनी है। ऐसे में 2004 से सरकारी सेवा में आये कितने लोग रिटायर हो गये होंगे जिनको ओल्ड पैन्शन का व्यवहारिक लाभ सरकार को देना पड़ा होगा। क्योंकि 2004 में लगे कर्मचारियों के 20 वर्ष तो 2024 में पूरे होंगे इसलिए अभी तक ओल्ड पैन्शन की देनदारी तो बहुत कम आयी होगी। दावा करने के लिये तो ठीक है परन्तु व्यवहारिक तौर पर यह पूरा सच नहीं है। इसी तरह 18 वर्ष से 60 वर्ष की हर महिला को 1500 रुपए प्रतिमाह देने की बात की गयी थी और प्रदेश की 22 लाख महिलाओं को इसका लाभ मिलना था। परन्तु अब जब इस योजना को लागू करने की बात उठी तो इसके लिये जो योजना अधिसूचित की गयी है उसमें पात्रता के लिये इतने राइडर लगा दिये गये हैं कि जिससे व्यवहारिक रूप से यह आंकड़ा 22 लाख से घटकर शायद दो तीन लाख तक भी नहीं रह जायेगा। फिर पूरे प्रदेश में इसे एक साथ लागू नहीं किया जा सकता है। इसका असर सरकार के पक्ष में उतना नहीं हो पा रहा है। यही स्थिति 680 करोड़ के स्टार्टअप फण्ड की है। सरकार प्रदेश के युवाओं के लिए सोलर पावर प्लांट लगाने की योजना प्रदेश के युवाओं के लिये अधिसूचित की थी। शुरू में इस योजना का संचालन श्रम विभाग को दिया गया था। फिर हिम ऊर्जा को बीच में लाया गया। हिम ऊर्जा से यह योजना बिजली बोर्ड पहुंची परन्तु व्यवहार में शायद एक भी युवा इस योजना के तहत कोई सोलर प्लांट नहीं लगा पाया है। इसी तरह दूध का समर्थन मूल्य तो कागजों में तय हो गया परन्तु व्यवहारिक रूप से यह सुनिश्चित नहीं किया गया कि गांव में लोगों के पास दुधारू पशु भी पर्याप्त मात्रा में हैं या नहीं। यह योजना शायद जायका के माध्यम से कांगड़ा में लगाये जा रहे मिल्क प्लांट को सपोर्ट देने के लिये लायी गयी थी। परंतु अभी कांगड़ा का यह प्रस्तावित प्लांट व्यवहारिक शक्ल लेने में वक्त लगा देगा। हालांकि पूर्व मुख्य सचिव रामसुभग सिंह इस पर काम कर रहे हैं।
सरकार ने पांच लाख युवाओं को रोजगार उपलब्ध करवाने की गारंटी दी थी। प्रदेश में सरकार ही रोजगार का सबसे बड़ा साधन है। सरकार ने आते ही मंत्री स्तर की एक कमेटी बनाकर सरकार में खाली पदों की जानकारी दी थी। इस कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक सरकार में 70,000 पद खाली है। सरकार 20,000 से अधिक पद भरने का दावा कर रही है। लेकिन विधानसभा में इस आश्य के आये हर प्रश्न का जवाब सूचना एकत्रित की जा रही है देने से सरकार की कथनी और करनी का अन्तर सामने आ गया है। अब बिजली बोर्ड में आउटसोर्स पर रखे 81 ड्राइवरों को बाहर का रास्ता दिखा दिया जाने से सरकार की नीयत पर शक होना स्वभाविक हो जाता है। क्योंकि एक ओर सरकार आउटसोर्स कर्मचारीयों को बाहर निकाल रही है और दूसरी ओर आउटसोर्स भर्ती के लिए कंपनियों से आवेदन मांग रही है। इस परिदृश्य में यदि प्रधानमंत्री सरकार की कार्यशाली को चुनावी मुद्दा बना कर उछाले तो उस पर सवाल उठाना कठिन होगा। क्योंकि मुख्यमंत्री ने स्वयं दावा किया है कि सरकार ने 2200 करोड़ का अतिरिक्त राजस्व जुटाया है। यह अतिरिक्त राजस्व लोगों पर परोक्ष/अपरोक्ष में करांे का बोझ बढ़ाकर ही अर्जित किया गया है। इसका लोगों पर नकारात्मक असर पड़ रहा है जो आने वाले दिनों में सरकार और कार्यकर्ताओं की परेशानी बढ़ायेगा।