शिमला/शैल। क्या हिमाचल में वक्फ संपत्तियों और कुछ मस्जिदों में हुये अवैध निर्माण पर उठा हिन्दू संगठनों का आक्रोश एक लम्बे राजनीतिक मुद्दे की शक्ल लेने जा रहा है? क्या इस आक्रोश के लिये अनचाहे ही जमीन तैयार करने का काम हिमाचल सरकार के कुछ मंत्रियों के ब्यानों ने भी किया है? यह सवाल इसलिये प्रसांगिक हो रहे हैं क्योंकि यह रोष हर दिन बढ़ता जा रहा है। प्रदेश के अलग-अलग भागों में इस संबंध में प्रदर्शन देखने को मिल रहे हैं। क्योंकि जब से संजौली की मस्जिद में अवैध निर्माण का मुद्दा उठा है और उस पर कांग्रेस तथा भाजपा के नेता आमने-सामने आ गये उसके बाद से यह पूरे प्रदेश में फैल गया है। क्योंकि इसी दौरान प्रदेश के किस जिले में कितनी मस्जिदें बन गयी हैं इसकी एक लम्बी सूची सामने आ गयी। मस्जिदों के बाद वक्फ संपत्तियों की सूची जारी हो गयी। संजौली मस्जिद में हुये अवैध निर्माण का मुद्दा जैसे ही शिमला से बाहर फैला तभी भाजपा ने एक निर्देश जारी करके अपने हर स्तर के नेता को इस मुद्दे पर कुछ भी अधिकारिक रूप से बोलने पर पाबंदी लगा दी। अब हिन्दू संगठन और सरकार आमने-सामने हैं। मस्जिदों और वक्फ संपत्तियों की सूचियों पर सरकार की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी है।
जब संजौली मस्जिद के अवैध निर्माण पर प्रदर्शन हुआ तो शहरी विकास मंत्री का ब्यान आया की चार-पांच हजार अवैध निर्माण हैं। विधानसभा में पंचायती राज मंत्री का ब्यान आया की मस्जिद की जगह की मालिक सरकार है। शिमला में बांग्लादेशियों और रोहिंगिया मुस्लिम के आने का खुलासा मंत्री ने किया। स्ट्रीट वैण्डर्स तक बात पहुंच गई और इस संद्धर्भ में पॉलिसी बनाने की मांग उठी। बाहर से आने वाले लोगों के बारे में आवश्यक जांच पड़ताल किये जाने की बात उठी। विपक्ष ने आरोप लगाया कि उनके शासनकाल में यह जांच पड़ताल होती थी जो अब कांग्रेस सरकार में बन्द कर दी गई है। इसी वाद-विवाद में स्ट्रीट वैण्डर्स के लिए पॉलिसी बनाने के लिए एक कमेटी गठित किए जाने का फैसला हुआ। इस कमेटी में विपक्ष के लोगों को भी शामिल करने की बात आयी यदि वह सहमत हो तो। अब विधानसभा अध्यक्ष द्वारा उद्योग मंत्री की अध्यक्षता में एक कमेटी बना दी गयी और उसमें विपक्ष के विधायक भी शामिल हैं। इसी बीच लोक निर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने वक्फ अधिनियम संशोधन किये जाने का भी सुझाव दिया है।
इस राजनीतिक परिदृश्य में यदि इस पूरे प्रकरण पर नजर डाली जाये तो इसमें बहुत सारे ऐसे सवाल सामने आते हैं जो कानूनी दायरे में आते हैं जिन से यह सवाल खड़ा होता है कि क्या देश संविधान के अनुसार चलेगा या इस तरह के जनरोष से। संजौली विवाद कुछ लोगों के आपसी झगड़े से शुरू हुआ इसमें भी झगड़ा दो अलग-अलग जगह पर होने की बात सामने आयी है। पुलिस ने इसमें वान्छित कारवाई तुरन्त प्रभाव से की है। कौन सा झगड़ा क्यों इस सारे बवण्डर का कारण बना यह सामने आना अभी बाकी है। मस्जिद की कुछ मंजिलें अवैध बनी है और यह निर्माण भाजपा और कांग्रेस दोनों सरकारों में हुआ है। इसके लिये किस सरकार और उसके प्रशासन को कितना जिम्मेदार माना जायेगा और दण्डित किया जायेगा? शहरी विकास मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने स्वयं स्वीकारा है कि चार-पांच हजार अवैध निर्माण हैं। क्या इन अवैध निर्माणों पर भी मस्जिद की तर्ज पर कारवाई की जा सकेगी? फिर प्रदेश के हर जिले में मस्जिदें बन जाने की बात आयी है। क्या यह मस्जिदें गैर मुस्लिम जमीनों पर बनी हैं? क्या इनका निर्माण अवैध रूप से हुआ है? यदि यह गैर मुस्लिम जमीनों पर अवैध रूप से बन गयी है तो क्या संबंध प्रशासन के खिलाफ कोई कारवाई हो पायेगी। इस दौरान प्रदेश में कांग्रेस और भाजपा दोनों दलों की सरकारें रही हैं। किसी राजनीतिक दल के किस नेतृत्व को कितना जिम्मेदार ठहराया जायेगा और कौन यह कारवाई करेगा? जब तक इन सवालों का कानूनी दायरे के तहत कोई जवाब नहीं आ जाता है तब तक इसमें कोई भी कारवाई कैसे की जा सकेगी?
अब स्ट्रीट वैण्डर्स के लिए पॉलिसी बनाने के लिये विधानसभा अध्यक्ष ने एक कमेटी का गठन कर दिया है। इस कमेटी में भाजपा के भी विधायक शामिल किये गये हैं। इस कमेटी का गठन विधानसभा अध्यक्ष द्वारा किया गया है। स्वभाविक है कि जब यह कमेटी पॉलिसी तैयार कर लेगी तो इसे विधानसभा अध्यक्ष के सामने रखा जायेगा क्योंकि कमेटी का गठन उनके आदेशों से हुआ है। विधानसभा अध्यक्ष इस कमेटी की पॉलिसी रूपी रिपोर्ट का अपने स्तर पर क्या करेंगे? क्योंकि यदि कोई कानून भी इस संबंध में बनाया जाना है तो उसे भी सरकार ही सदन में लायेेगी अध्यक्ष नहीं। ऐसे में यह लगता है कि जन भावनाओं को मोड देने के लिये विधानसभा अध्यक्ष द्वारा कमेटी का गठन किया गया है। जबकि विधानसभा अध्यक्ष का कार्य क्षेत्र तो विधानसभा के संचालन तक ही सीमित है। इस संचालन के लिये तो वह कोई भी नियम बना सकते हैं। लेकिन ऐसी कमेटी गठित होने के बाद कमेटी की रिपोर्ट पर सरकार को निर्देशित करने की स्थिति पहली बार आ रही है। समान्यत ऐसी कमेटियों का गठन सरकार द्वारा किया जाता है। कमेटी की रिपोर्ट सिफारिशों पर अमल करवाने का तंत्र सरकार के पास होता है विधानसभा अध्यक्ष के पास नहीं है। ऐसे में माना जा रहा है कि विधानसभा अध्यक्ष का रूट लेकर इस मामले को और लम्बा करने का रास्ता चुना गया है। इस पर भाजपा की ओर से भी कोई प्रतिक्रिया न आना पूरे प्रकरण को और भी गंभीर बना देता है। क्योंकि इसमें इतने कानूनी पहलू उलझ गये हैं कि दोनों ही दल इसकी हकीकत का सामना करने को तैयार नहीं हैं।