- क्या सीलिंग एक्ट के बाद भी सीलिंग से अधिक जमीन खरीदी जा सकती है ?
- 28 जनवरी 2011 के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की अनुपालना में सरकार खामोश क्यों ?
- 2011 के पावर ऑफ अटॉर्नी पर 2015 में अमल
शिमला/शैल। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के गृह विधानसभा क्षेत्र नादौन में सरकार ई-बसों के लिए एक बस स्टैंड का निर्माण करने जा रही है । इस बस स्टैंड के लिए कलूर के मौलाघाट में एचआरटीसी ने जमीन ली है। जिन लोगों से यह जमीन 2023 में खरीदी गई है उन्होंने स्वयं 2015 में यह जमीन राजा नादौन महेश्वर चंद से करीब 2,40,000 में खरीदी थी। राजा महेश्वर चंद से हुई यह खरीद ही अपने में एक अवैध खरीद होने की आशंका है। क्योंकि 1974 में पारित और 1971 से लागू हुए लैंड सीलिंग एक्ट के मुताबिक महेश्वर चंद के पास बची ही केवल 30 स्टैंर्ड एकड़ (316 कनाल 10 मरले) जमीन थी। महेश्वर चंद की शेष जमीन लैंड सीलिंग एक्ट के तहत सरकार में विहित हो गयी थी। इसलिए लैंड सीलिंग एक्ट के लागू होने के बाद महेश्वर चंद द्वारा बेची गयी सैकड़ो कनाल जमीन अपने में एक स्कैन का रूप ले लेती है ।
स्मरणीय है कि राजा नादौन को 1897 में अंग्रेज शासन के दौरान 1,59,986 कनाल 6 मरले जमीन बतौर जागीर मिली थी। यह जमीन नादौन रियासत के 329 गांवों मैं फैली थी और इस पर स्थानीय लोगों के बर्तनदारी अधिकार सुरक्षित रखे गए थे। आज भी राजस्व रिकॉर्ड में पर्चा जमाबंदी में "ताबे हकूक बर्तनदारान" दर्ज है। जब हिमाचल में लैंड सीलिंग एक्ट लागू हुआ तो उसमें अधिकतम भू सीमा 30 एकड़ कर दी गयी। इससे अधिक की जमीन का भू स्वामी को मुआवजा देकर ऐसी जमीने सरकार के अधिकार क्षेत्र में चली गयी। राजा नादौन की भी सारी जमीन सरकार में चली गयी थी। लैंड सीलिंग से 515 कनाल 14 मरले जमीन तहसील देहरा के नौरी गांव में चाय बागान के नाम पर बाहर रही। इसी तरह टीका नागरा में 32 कनाल 12 मरले और टीका कलूर में 1224 कनाल 4 मरले भूदान यज्ञ बोर्ड के नाम होने से सीलिंग से बाहर रही। लेकिन वर्तमान में नौरी में कोई चाय बागान नहीं है और न ही कलूर में ऐसी कोई जमीन भूदान बोर्ड के नाम पर होने की स्थानीय लोगों को कोई जानकारी है जबकि यह सब वित्तायुक्त के 31-7-84 के फैसले में दर्ज है। वित्तायुक्त के फैसले के अनुसार राजा नादौन की सीलिंग में आयी एक लाख कनाल से अधिक की विलेज कामन लैंड घोषित है ।
विलेज कामन लैंड की कोई खरीद बेच नहीं हो सकती यह सर्वोच्च न्यायालय के 28 जनवरी 2011 के फैसले से स्पष्ट है। इस फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने विलेज कामन लैंड को लेकर देश के सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को स्पष्ट निर्देश जारी करते हुए समय-समय पर इस सन्दर्भ में शीर्ष अदालत में रिपोर्ट दायर करने को कहा है । हिमाचल में सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले की अनुपालना में क्या कदम उठाए गए इस पर कोई कुछ कहने को तैयार नहीं है। दूसरी ओर इस फैसले के बाद राजा नादौन महेश्वर चंद ने दिसंबर 2011 में अपनी पावर ऑफ अटॉर्नी एक हरभजन सिंह के नाम बना दी। 2015 में इसी पावर ऑफ अटॉर्नी के माध्यम से एचआरटीसी द्वारा खरीदी गई जमीन बेची थी । पावर ऑफ अटॉर्नी बनाये जाने को लेकर भी कई प्रश्न चिन्ह है। सीलिंग एक्ट के आने के बाद जब महेश्वर चंद के पास बची ही 316 कनाल थी तो उसने सैकड़ो बीघे जमीन बेच कैसे दी? सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की अनुपालना में क्या कदम उठाए गए? बल्कि जब सरकार 2023 में लैंड सीलिंग एक्ट को लेकर संशोधन लायी तब भी सरकार ने यह जानकारी नहीं जुटाई कि आज भी प्रदेश में कितने लोगों के पास लैंड सीलिंग सीमा से अधिक जमीन है और क्यों है। क्योंकि नादौन में ही ऐसे मामले सामने आये हैं जिन्होंने राजा नादौन से सीलिंग से अधिक जमीन खरीद रखी है। यह सारे सवाल एचआरटीसी द्वारा 70 कनाल पौने सात करोड़ में खरीदने के बाद उठे हैं क्योंकि सीलिंग के बाद शायद इस जमीन की मालिक ही सरकार थी ।