वित्तीय से ज्यादा बड़ा होता जा रहा है विश्वसनीयता का संकट
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Created on Saturday, 03 August 2024 13:13
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Written by Shail Samachar
- अपने खर्चों पर लगाम लगाए बिना सारे आर्थिक उपाय अर्थहीन हो जाएंगे।
- कर्ज लेकर राहत बांटना भविष्य को गिरवी रखना है।
- व्यवस्था परिवर्तन का सूत्र घातक होगा।
शिमला/शैल। सुक्खु सरकार ने प्राइवेट अस्पतालों से हिमकेयर योजना बन्द कर दी है। परिवहन निगम में न्यूनतम किराया बारह रुपये करने का फैसला लिया जा रहा है। रियायती येलो कार्ड, स्मार्ट कार्ड ,सम्मान कार्ड के रेट 50 रुपये से 100 रुपये कर दिए हैं। प्राइवेट स्कूलों की स्कूल बसों के किराए में 50 प्रतिशत की बढ़ोतरी कर दी है। सेवानिवृत कर्मियों को मूल वेतन के 50 प्रतिशत पर पुर्ननियुक्ति देने का फैसला लिया है। पिछली सरकार द्वारा दी जा रही 125 यूनिट मुफ्त बिजली पर कुछ राइडर लगा दिए हैं। महिलाओं को मिलने वाले 1500 पर भी कई शर्ते लगा दी है। इन्ही फैसलों के साथ नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर के मुताबिक हर मंत्री को दो-दो व्यक्ति नियुक्त करने का अधिकार दिया जा रहा है जो मन्त्री की छवि सुधारने के लिए काम करेंगे। सरकार ने वित्तीय स्थिति सुधारने के लिए यह फैसले लिए हैं । इनके अतिरिक्त राजस्व में भी कई सेवाओं के दाम बढ़ा दिए हैं। सत्ता संभालते ही पेट्रोल डीजल पर वैट बढ़ाया था। पिछली सरकार द्वारा खोले गए करीब एक हजार संस्थान बंद कर दिए थे। सस्ते राशन के दामों में बढ़ोतरी के साथ उसकी मात्रा में कटौती भी कर दी गई है कुल मिलाकर सरकार जहां संभव है सेवाओं और चीजों के दामों में बढ़ोतरी कर रही है। सरकार के इन फैसलों का जनता पर क्या प्रभाव पड़ेगा? विपक्ष की इस पर क्या प्रतिक्रिया होगी इस सब की परवाह किए बिना वित्तीय स्थिति सुधारने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। इन्हीं प्रयासों के तहत हर माह करीब 1500 करोड़ का कर्ज लेने की स्थिति पहुंचने वाली है क्योंकि अब तक 25000 करोड़ से अधिक का कर्ज ले चुकी है । यहां तक आशंका जताई जा रही है कि शायद कुछ माह बाद नियमित वेतन और पेंशन का भुगतान कर पाने में कठिनाई आ जाए क्योंकि इस समय भी कई कर्मचारी वर्गों को नियमित न मिल पाने के मामले चर्चा में है। यह स्थिति स्पष्ट करती है कि सरकार वित्तीय संकट से गुजर रही है।
सरकार को सत्ता में आए अठारह माह हो गए हैं और यह फैसला अब लिए जा रहे हैं। इसलिए यह सवाल उठना स्वभाविक है कि आखिर यह समझने में इतना समय क्यों लग गया? जबकि मंत्री परिषद का कोई भी सदस्य ऐसा नहीं है जो पहली बार ही विधायक बना हो। सबका लम्बा अनुभव है कई मुख्यमंत्रीयों का कार्यकाल देखा है। हर वर्ष सदन में बजट आता है । हर बजट में आर्थिक सर्वेक्षण आता है। हर वर्ष कैग रिपोर्ट सदन में रखी जाती है । यह वह दस्तावेज होते हैं जिनमें सरकार की सारी योजनाओं उसकी आय-व्यय और कर्ज का सारा रिकॉर्ड दर्ज रहता है। इसी रिकॉर्ड के आधार पर राजनीतिक पार्टियों चुनाव के लिए अपना अपना घोषणा पत्र तैयार करती है और जनता में रखती है। कांग्रेस ने भी इसी आधार पर अपना घोषणा पत्र तैयार करके जनता को दस गारंटियां दी होंगी ऐसा माना जायेगा। फिर सुक्खू सरकार ने सत्ता संभालते ही चेतावनी दी थी कि प्रदेश के हालात श्रीलंका जैसे हो सकते हैं। पिछली सरकार पर वित्तीय कुप्रबन्धन का आरोप लगाकर श्वेत पत्र तक लाया गया था। सरकार के वित्तीय नियंत्रण के लिए बाकायदा एफआरबीएम एक्ट पारित है। राजनीतिक नेतृत्व के लिए मंत्री परिषद के साथ ही अफसरशाही की भी एक बड़ी टीम सहयोग और कार्य संचालन के लिये उपलब्ध रहती है। जब भी सरकारें बदलती हैं तो नेतृत्व अपने अनुसार इस टीम में बदलाव करता है। लेकिन मुख्यमंत्री ने व्यवस्था परिवर्तन के सूत्र के नाम पर इस टीम में लोकसभा चुनाव तक कोई बदलाव नहीं किया। जो अफसरशाही पिछली सरकार को चला रही थी वही इस सरकार में यथास्थिति बनी रही। बल्कि जिन लोगों के खिलाफ कांग्रेस ने कभी सदन में आरोप लगाये थे वही लोग सरकार में महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभा रहे हैं।
इसलिए यह कैसे संभव हो सकता है कि जिस प्रशासनिक तंत्र पर श्वेत पत्र में कुप्रबन्धन के आरोप लगे हो वही आज सर्वे सर्वा हो। व्यवस्था परिवर्तन के सूत्र ने एक तरह से सरकार को स्वतः ही विश्वसनीयता के संकट पर लाकर खड़ा कर दिया है। क्योंकि जब सरकार आम आदमी को मिली हुई सुविधाओं पर किसी भी तर्क से कैंची चला रही है तो उसी अनुपात में सबसे पहले अपने खर्चों पर कटौती करनी होगी। आज यह सवाल उठ रहा है कि सरकार को कैबिनेट रैंक में इतने सलाहकारों और दूसरे लोगों की क्या आवश्यकता पड़ गई है। क्या सरकार बता पाएगी कि किस सलाहकार ने क्या नीतिगत मूल्यवान सलाह दी है जिससे सरकार को अमुक लाभ हुआ है। आने वाले समय में आरटीआई में यह सवाल पूछे गये तो कोई आश्चर्य नहीं होगा। क्योंकि राहतों में कटौती और भारी भरकम कर्ज आपस में स्वतः विरोधी हैं। आज के हालात में वित्तीय से ज्यादा विश्वसनीयता का संकट खड़ा हो गया है। ऐसे हालत में छवि सुधारने के प्रयास बेमानी हो जाएंगे यह तय है।