स्व. वीरभद्र सिंह की प्रस्तावित मूर्ति स्थापना पर मनकोटिया के विरोध के मायने

Created on Tuesday, 23 July 2024 14:05
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। स्व. वीरभद्र सिंह छः बार प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं। प्रदेश में उनके समर्थकों/प्रशंसकों की लम्बी लाइन है जिसे छोटा करना आज के राजनीतिक नेतृत्व के वश की बात नहीं है। प्रदेश की राजनीति में जो मुकाम स्व. वीरभद्र सिंह को हासिल है वह किसी अन्य नेता को नहीं है। इसी मुकाम के कारण आज स्व. वीरभद्र सिंह के प्रशंसक चाहते हैं कि डॉ. परमार की तरह उनकी भी मूर्ति स्थापित की जाये। लेकिन इस समय का राजनीतिक वातावरण जिस मोड़ पर पहुंच चुका है उसमें यह प्रस्तावित मूर्ति स्थापना अनिश्चितता में जाती नजर आ रही है।
इस पर पांच बार विधायक रहे पूर्व मंत्री विजय सिंह मनकोटिया ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, प्रदेश के राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल, पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर और प्रदेश के भाजपा अध्यक्ष डॉ. राजीव बिंदल को पत्र लिखकर कुछ आपतियां उठाई हैं। इन आपत्तियों का आधार सितम्बर 2015 में स्व. वीरभद्र सिंह के आवास पर केंद्रीय एजेंसीयों ईडी और आयकर द्वारा की गयी छापेमारी के बाद उनके खिलाफ बनाये गये आपराधिक मामलों को बनाया गया है। इस छापेमारी पर उस समय प्रदेश भाजपा द्वारा की गई नारेबाजी और लोकसभा चुनाव के दौरान जिस तरह का चुनावी मुद्दा बनाया गया था उसका स्मरण भाजपा नेताओं को करवाया गया है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण बिन्दु यह है कि जो आपराधिक मामले उस समय स्व.वीरभद्र सिंह के खिलाफ बनाये गये थे वह आज तक उनकी मृत्यु के बाद भी लंबित चल रहे हैं। ऐसे में स्वभाविक रूप से मूर्ति स्थापना का मुद्दा एक अलग राजनीतिक आकार ले लेता है। अपराधिक मामलों के लंबित होने की स्थिति में सरकार द्वारा यह मूर्ति स्थापित किया जाना कई अलग प्रश्न खड़े कर देगा।
वैसे मेजर विजय सिंह मनकोटिया के रिश्ते स्व. वीरभद्र सिंह के साथ कभी एक जैसे नहीं रहे हैं। वह कभी स्व. वीरभद्र सिंह के नजदीक तो कभी दूर वाली स्थिति में रहे हैं। संयोगवश मुख्यमंत्री सूक्खू के राजनीतिक रिश्ते भी स्व. वीरभद्र सिंह के साथ बहुत सौहार्दपूर्ण नही रहे हैं। विपक्षी दल भाजपा ने स्व. वीरभद्र सिंह के खिलाफ बने अपराधिक मामलों का खूब राजनीतिक लाभ उठाया है। लेकिन कांग्रेस को विधानसभा चुनाव में स्व. वीरभद्र सिंह के प्रति जनता की सहानुभूति का अवश्य लाभ मिला है। विधानसभा से पहले मण्डी के लोकसभा उपचुनाव में भी कांग्रेस को इस सहानुभूति का लाभ मिला है। इसी सहानुभूति के कारण श्रीमती प्रतिभा सिंह भाजपा की जय राम सरकार के समय में यह उपचुनाव जीत गई थी। विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस कार्यालय में वीरभद्र सिंह के विश्वस्तों की चुनाव संचालन में प्रमुख भूमिका रही है।
लेकिन कांग्रेस की सरकार बनने के बाद इस दिशा में स्थितियां इस कदर बदल गयी है की प्रतिभा सिंह को लोकसभा चुनाव लड़ने से पीछे हटना पड़ा। विक्रमादित्य सिहं को मंत्री पद से त्यागपत्र देने की नौबत आ गयी। विक्रमादित्य सिंह ने भले ही अपना त्यागपत्र वापस लेकर मण्डी से लोकसभा उम्मीदवार बनना स्वीकार किया लेकिन उनकी हार ने उनसे ज्यादा स्व. वीरभद्र सिंह की राजनीतिक विरासत पर सवाल खड़े कर दिये। शिमला ग्रामीण में भी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को बढ़त न मिलने से यह सवाल और ज्यादा गंभीर हो जाते हैं। इस तरह के राजनीतिक परिदृश्य में पूर्व मंत्री विजय सिंह मनकोटिया के इस पत्र के राजनीतिक मायने बहुत बड़े हो जाते हैं। क्योंकि इसी दौरान में प्रदेश में ईडी और आयकर एजैन्सियों ने दस्तक दी है।
यह है मनकोटिया का पत्र