यह उप चुनाव सुक्खू और अनुराग की प्रतिष्ठा का टैस्ट होंगे

Created on Tuesday, 18 June 2024 12:39
Written by Shail Samachar
  • हमीरपुर संसदीय क्षेत्र में है दो उपचुनाव
  • यदि निर्दलीयों के त्यागपत्र पहले ही स्वीकार हो जाते तो प्रदेश इस खर्च से बच जाता
शिमला/शैल। प्रदेश में फिर तीन उपचुनाव होने जा रहे हैं। क्योंकि तीनों निर्दलीय विधायकों के त्यागपत्र बाद में स्वीकार किये गये। जबकि इन लोगों ने भी फरवरी में हुये राज्यसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी हर्ष महाजन के पक्ष में मतदान करने के बाद अपनी विधायकी से त्यागपत्र देकर भाजपा में शामिल हो गये थे। लेकिन इनके त्यागपत्रों को कानूनी दाव पेचों में उलझाकर उनके मामले को लटका दिया गया था। दो कांग्रेस विधायकों अवस्थी और गौड़ की शिकायत पर आशीष शर्मा और बागी विधायक चैतन्य शर्मा के पिता राकेश शर्मा के खिलाफ बालूगंज थाना में एक मामला तक दर्ज कर दिया गया। यही नहीं राजस्व मंत्री जगत सिंह नेगी की शिकायत पर दल बदल कानून के तहत भी मामला चलाया गया। यह आरोप लगाया गया कि इन्होंने स्वेच्छा से अपनी विधायकी से त्यागपत्र नहीं दिया है। पुलिस जांच का मुख्य बिन्दु ही इनं त्यागपत्रों और फिर भाजपा में शामिल होने के पीछे धन बल का दबाव रहना बनाया गया था। लेकिन इन मामलों के लंबित रहते ही विधानसभा अध्यक्ष द्वारा उनके त्यागपत्रों को स्वीकार कर लिये जाने से कांग्रेस के विधायकों और राजस्व मंत्री द्वारा लगाये गये आरोपों की धार स्वतः ही कुन्द होकर यह आरोप स्वतः ही सत्ता पक्ष को चुभने के कगार पर पहुंच गये हैं। भाजपा ने इनके पार्टी में शामिल होते ही इन्हें उनके क्षेत्रों से उम्मीदवार घोषित कर दिया था। अब इन उपचुनाव की अधिसूचना जारी होते ही भाजपा ने उनकी उम्मीदवारी की पुष्टि भी कर दी है। अब इनके खिलाफ जब यह सवाल उठाया जा रहा है कि इन्होंने विधायकी से त्यागपत्र क्यों दिये और प्रदेश के खजाने पर उपचुनावों का बोझ क्यों डाला? अब इस सवाल का बड़ा हिस्सा स्वतः ही उस बिन्दु की ओर मुड़ जाता है की इनके त्यागपत्रों की स्वीकृति को लटकाये क्यों रखा गया है। इनके खिलाफ दायर मामले मामलों का कोई फैसला आने से पहले ही यह त्यागपत्र इसलिये स्वीकार कर लिये गये क्योंकि इनके खिलाफ प्रमाणिक रूप से ऐसा कुछ भी शायद रिकॉर्ड पर नहीं आ रहा था जिसके आधार पर इन्हें दण्डित किया जा सकता। यदि यह उपचुनाव भी पिछले उप चुनावों के साथ ही होने दिये जाते तो आज अतिरिक्त खर्चे से बचा जा सकता था। इसलिए इन उपचुनावों के लिये उन्हें दोषी ठहरने का तर्क आत्मघाती हो सकता है। लोकसभा की चारों सीटें भाजपा द्वारा जीतने के बाद भी हिमाचल को केंद्रीय मंत्री परिषद में स्थान नहीं मिला है। अनुराग ठाकुर लगातार पांच बार लोकसभा जीत गये हैं लेकिन इस बार मंत्री नहीं बन पाये हैं क्योंकि उनके ही संसदीय क्षेत्र हमीरपुर से भाजपा तीन विधानसभा उपचुनाव हार गयी। जबकि इन तीनों स्थानों पर लोकसभा के लिये भाजपा को बढ़त मिली है। यदि जनता ने मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू और कांग्रेस सरकार की मजबूती के लिये कांग्रेस के पक्ष में वोट दिया है तो उस तर्क से तो सभी छः सीटों पर कांग्रेस की जीत होनी चाहिये थी लेकिन ऐसा हुआ नहीं है। इस उपचुनाव में भाजपा की चारों सीटों पर हार अनचाहे ही अनुराग-धूमल के नाम लगायी जा रही है और इस हार के कारण ही अनुराग शायद मंत्री परिषद से बाहर गये हैं। अब फिर तीन में दो उप चुनाव अनुराग के ही संसदीय क्षेत्र में हो रहे हैं। इसलिए यह उपचुनाव एक तरह से मुख्यमंत्री सुखविन्दर सिंह और अनुराग ठाकुर के लिए व्यक्तिगत प्रतिष्ठा का प्रश्न बन जाएंगे। क्योंकि एक को यह प्रमाणित करना है कि उसने पार्टी के फैसले के खिलाफ कोई आचरण नहीं किया है। दूसरे को यह सिद्ध करना है कि जनता कांग्रेस सरकार और मुख्यमंत्री सुक्खविन्दर सिंह सुक्खू के साथ है। वैसे लोकसभा चुनाव में मुख्यमंत्री के अपने विधानसभा क्षेत्र नादौन में कांग्रेस को मिली हार स्वतः ही दावे पर प्रश्न चिन्ह लगा देती है।