निर्दलीयों का भविष्य और भाजपा की रणनीति सवालों में

Created on Friday, 10 May 2024 19:46
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। निर्दलीय विधायकों के त्यागपत्र का मामला कानूनी चाल में फंसकर लटक गया है। सरकार और कांग्रेस यही चाहती थी की निर्दलीयों के उप चुनाव अभी न हो। इसमें कांग्रेस को सफलता मिल गयी है। लेकिन कांग्रेस की इस सफलता के साथ ही यह सवाल भी उठ गया है कि अब भाजपा का अगला कदम क्या होगा? क्योंकि इस सारे प्रकरण में राज्यसभा चुनाव में हुई क्रॉस वोटिंग से लेकर इन निर्दलीयों के त्यागपत्र तक भाजपा नेतृत्व की सक्रिय भूमिका रहना जग जाहिर हो चुका है। सामान्य राजनीतिक समझ वाला व्यक्ति भी यह प्रश्न कर रहा है की निर्दलीयों को त्यागपत्र देने और फिर भाजपा में शामिल होने की आवश्यकता ही कहां थी। बतौर निर्दलीय जब उन्होंने राज्यसभा के लिये भाजपा के पक्ष में वोट किया तो आगे भी वह भाजपा को समर्थन देना जारी रख सकते थे। क्योंकि भाजपा में त्यागपत्रों की स्वीकृति से पहले ही शामिल हो जाना निश्चित रूप से दल बदल के तहत आता है। फिर त्यागपत्र देते हुये नेता प्रतिपक्ष का उनके साथ रहना निश्चित रूप से उनकी स्वेच्छा पर प्रश्न चिन्ह लगाने का एक ठोस आधार बन जाता है।

इस परिपेक्ष में यह सवाल भी उठता है कि जब कांग्रेस अपने छः लोगों को क्रॉस वोटिंग करने के बाद निष्कासित करके उनकी रिक्तियों की सूचना तक चुनाव आयोग को भेज चुकी थी तब क्या निर्दलीयों के मामले में कोई भी कदम उठाते हुये सारे कानूनी पक्षों पर गंभीरता से विचार नहीं कर लिया जाना चाहिये था। इसी के साथ यह भी सवाल उठता है कि क्या निर्दलीयों के त्यागपत्रों का फैसला यहीं प्रदेश नेतृत्व के स्तर पर ही ले लिया गया। क्योंकि यदि यह फैसला केंद्रीय नेतृत्व की सलाह पर लिया गया है तो क्या वहां भी कानूनी संभावना पर किसी ने विचार नहीं किया। क्योंकि जो कुछ निर्दलीयों के साथ घटा है उसके बाद भाजपा के इन दावों की विश्वसनीयता पर स्वतः ही प्रश्न चिन्ह लग जाता है की चुनावों के बाद सरकार गिर जायेगी? इस समय कांग्रेस का भाजपा पर सबसे बड़ा आरोप ही यह है कि भाजपा धनबल के सहारे सरकार गिराना चाहती है। कांग्रेस सारा चुनाव इसी मुद्दे के गिर्द केंद्रित करने का प्रयास कर रही है। फिर निर्दलीयों के मामले पर भाजपा का कोई भी नेता कुछ भी नहीं बोल रहा है। ऐसी चुप्पी प्रदेश नेतृत्व में अपना रखी है कि जैसे निर्दलीयों के साथ उनका कोई रिश्ता ही न हो। वैसे भी भाजपा और कांग्रेस प्रदेश के मुद्दों पर चुप ही चल रहे हैं।
इस परिदृश्य में यह तय है कि चुनाव परिणाम के बाद बदली राजनीतिक परिस्थितियों में इन निर्दलीयों के लिये स्थितियां ज्यादा अनुकूल रहने वाली नहीं है। चुनाव परिणामों के बाद भाजपा की सरकार बनने के दावों को अमलीशक्ल देने के लिये कांग्रेस के अन्दर और सेन्धमारी करनी होगी। उस सेन्धमारी की भूमिका अभी बांधनी होगी। इस समय प्रदेश से केंद्र सरकार में एक ताकतवर मंत्री अनुराग सिंह ठाकुर हैं। इन्हीं के साथ भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा भी प्रदेश से ही ताल्लुक रखते हैं। संयोगवश अनुराग और नड्डा दोनों उसी हमीरपुर संसदीय क्षेत्र से हैं जिससे मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री आते हैं। यही संसदीय क्षेत्र कांग्रेस में हुये विद्रोह का केंद्र रहा है। कांग्रेस के चार निष्कासित और दो निर्दलीय इसी क्षेत्र से आते हैं। फिर इन सभी को भाजपा ने चुनावी उम्मीदवार भी बनाया है। इसलिये यह नहीं माना जा सकता कि कांग्रेस के जिस विद्रोह को धनबल से सरकार गिराने का प्रयास कहा जा रहा है उसकी पूरी जानकारी और सहमति इन दोनों भाजपा नेताओं को न रही हो। इस ऑपरेशन का मुख्य किरदार भले ही हर्ष महाजन रहे हों क्योंकि उन्ही को इसका पहला लाभ मिला है। लेकिन यह ऑपरेशन जिस ढंग से आधे में आकर रुक गया है उससे भाजपा के प्रदेश नेतृत्व से ज्यादा फजीहत केंद्रीय नेतृत्व की हुई है। क्योंकि एक राज्यसभा सीट के लिये यह सब कर दिया गया हो ऐसा नहीं लगता। निश्चित रूप से राज्य सरकार एजैण्डे पर रही होगी।
इसलिये जिस तरह की कानूनी चालों से निर्दलीयों का मामला लटकाया गया हो उसका जवाब देने के लिये भाजपा की ओर से किस तरह की रणनीति अपनाई जाती है यह देखना दिलचस्प होगा। क्योंकि ऊना में खनन माफिया एक अरसे से निशाने पर चल रहा है। कई प्रभावशाली लोगों के बेनामी टिप्पर चर्चा में हैं। अदालत के आदेशों से स्टोन क्रशर बन्द हुये हैं। बद्दी, बरोटीवाला, नालागढ़ क्षेत्र में स्क्रैप माफिया चर्चा में चल ही रहा है। कुछ अधिकारियों को लेकर पत्र बम्ब फूट ही चुके हैं। फिर मुख्यमंत्री बिकने वाले विधायकों के शीघ्र ही सलाखों के पीछे होने का हर जनसभा में दावा कर रहे हैं। मुख्यमंत्री का यह दावा भाजपा के लिये एक बड़ी ललकार माना जा रहा है। नेता प्रतिपक्ष सरकार बदलने के दावे कर रहे हैं। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा की किसके दावे में कितना दम निकलता है। विश्लेष्कों के मुताबिक इन्हीं चुनाव के बीच इन दावों को लेकर कुछ घटेगा।