हिम तेंदुए और अन्य लुप्त हो रहे जानवरों को बचाने में सहायक सिद्ध होगी सिक्योर हिमालय परियोजना

Created on Thursday, 26 September 2019 06:04
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। हिमाचल प्रदेश वन्य प्राणी प्रभाग आगामी 19 सितम्बर, 2019 को भारत सरकार-संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम-वैश्विक पर्यावरणीय सुविधा सिक्योर हिमालय परियोजना ‘‘आजिविका संवर्धन, संरक्षण सतत् उपयोग एवं उच्च हिमालय परिस्थितिकी तंत्र केे पुनः स्थापन’’ की प्रारंभिक कार्यशाला 19 सितम्बर, 2019 को शिमला के होटल होलीडे होम में आयोजित की गई। परियोजना की राज्य परियोजना निदेशक एवं प्रधान मुख्य अरण्यपाल (वन्यप्राणी) डा. सविता ने  कहा कि यह परियोजना वैश्विक पर्यावरर्णीय सुविधा के अन्तर्गत वित्तपोषित है और हिमाचल प्रदेश के लाहौल, पांगी एवं किन्नौर परिदृश्य के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम एवं पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा राज्य वन्य प्राणी प्रभाग वन विभाग हिमाचल प्रदेश के माध्यम से क्रियान्वित किया जा रहा है। परियोजना के उद्देश्य हिम तेंदुए एवं अन्य लुप्तप्राय वन्य जीवों और उनके आवासों को सुरक्षित करने हेतु उच्च हिमालयी क्षेत्रों का बेहतर प्रबंधन, इन क्षेत्रों के प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव कम करने हेतु बेहतर और विविध आजीविका के अवसर, सतत् प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन एवं संरक्षण हेतु समुदाय और सरकारी संस्थानों की भागीदारी सुनिश्चित करना, वन्य जीव अपराध और सम्बंधित खतरों को कम करने हेतु प्रवर्तन, निगरानी और सहयोग को बढ़ाना तथा संरक्षण को बढ़ावा देने हेतु बेहतर ज्ञान और सूचना प्रणाली का सृजन करना है।
डा. सविता ने बताया कि हिम तेंदुआ 12 देशों में पाया जाता है। भारत में इसकी आबादी 400 से 700 के बीच में है और पूरे विश्व में 3900 से 6400 के बीच में है। हिमाचल में हम 49 गिन पाये हैं और यहां पर 85 से 100 के बीच में होने की संभावना है। यह परियोजना हिमाचल, सिक्किम, उत्तराखण्ड, जम्मू- कश्मीर चार राज्यों में 30 मार्च 2024 तक चलाई जा रही है। यह परियोजना से हिम तेंदुए और अन्य लुप्त हो रहे जानवरों को बचाने में सहायक सिद्ध होगी।
यह परियोजना वर्ष 2018-19 में प्रारम्भ हुई और वर्ष 2024 तक जारी रहेगी। इस परियोजना का कुल परिव्यय 130 करोड़ रुपये है। जिसमें से 21 करोड़ रुपये की धनराशि अनुदान के रुप में व 109 करोड़ रुपये की धनराशि संयुक्त राष्ट्र विकास तथा केन्द्र व राज्य सरकारों द्वारा सह वितपोेषित की जाएगी।
यह प्रारंभिक परियोजना कार्यशाला विभिन्न हित धारकों के बीच साझेदारी बनाने की दिशा में पहला कदम होगा व इससे यह सुनिश्चित होगा कि विभिन्न हित धारक इस परियोजना को अपना समझ कर अपनाएं। इस कार्यशाला में विभिन्न तकनीकी सत्रों तथा परियोजना के विभिन्न पहलुओं पर आपसी विचार विमर्श के द्वारा एक दृष्टिकोण विकसित करने में मदद् मिलेगी व विभिन्न हित धारकों में इस परियोजना के उद्देश्य तथा निर्धारित लक्ष्यों के बारे में एक समझ विकसित होगी।
डा. सविता ने सूचित किया है कि वन्य प्राणी प्रभाग, वन विभाग एक बार में प्रयोग आने वाले प्लास्टिक के न्यूनतम प्रयोग द्वारा इस कार्यक्रम को प्लास्टिक मुक्त कार्यक्रम के रुप में मनाएंगे।
यह कार्यशाला इस परियोजना से संबन्धित सभी हित धारकों को एक मंच प्रदान करेगी और वन विभाग, अन्य प्रमुख विभागों, जैवविविधता प्रबंध कमेटियों, सामाजिक क्षेत्र तथा स्थानीय समुदाय द्वारा परिदृश्य तथा इसके प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए किये जा रहे प्रयासों में समन्वय स्थापित करने में सहायक सिद्ध होगी।
इस कार्यशाला के मुख्य अतिथि माननीय वन, परिवहन खेल एवं युवा सेवाएं मंत्री गोविन्द सिंह ठाकुर ने कहा कि पहले हिम तेंदुआ देख लोग उसका शिकार करने के लिये इकट्ठे होते थे परन्तु अब लोग उन्हें बचाने के लिये साथ आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस परियोजना में हमें जन सहयोग से मिल कर परिणाम देने हैं और न.-1 पर जाना है। उन्होंने आगे कहा कि राज्य के विकास को लेकर जो भी लोग जयराम सरकार में अपने सुझाव देना चाहे उनका स्वागत है। रोड़ सेफ्टी पर मन्त्री ने कहा कि हम लोगों को जागरूक कर राज्य को जीरो प्रतिश्त चलान फ्री स्टेट बनायेंगे।
इस अवसर पर ड़ाॅ रूचि पंत ने कहा कि यह परियोजना हिम तेंदुए को बचाने के लिये लाई गई है। उन्होंने बताया कि 23 अक्तूबर को विश्व हिम तेंदुआ दिवस पर दिल्ली में एक सम्मेलन का आयोजन किया जायेगा जिसमें सभी 12 देशों के प्रतिनिधि भाग लेंगे। इसमें हिमाचल के लोगों को भी आमन्त्रित किया और कहा कि वह अपने अनुभव हिम तेंदुए के बारे में सांझा करें।
अजय कुमार, प्रधान मुख्य अरण्यपाल (वन बल प्रमुख) ने कहा कि यह कार्यक्रम अन्य देशों में भी चलाया जा रहा है। इस परियोजना में सभी विभाग व लोग मिलकर काम करेंगे और हिम तेंदुए को बचाने के हर सम्भव प्रयास किये जायेंगे।
राम सुभग सिंह, अतिरिक्त मुख्य सचिव (वन) ने कहा कि एक जीव को लेकर यह सारी परियोजना है इसमें स्थानीय लोगो की भागीदारी सराहनीय है। स्थानीय लोगों का सहयोग न होने की वजह से ज्यादातर प्रोजैक्ट फेल होते हैं। उन्होने कहा कि पहले एक दो सालों में परियोजना के आकार को बढ़ाने की दिशा में कार्य करना होगा।  
इस कार्यशाला में लाहौल, पांगी तथा किन्नौर परिदृश्य से लगभग 100 से अधिक हित धारकों के अतिरिक्त प्रमुख विभागों के अधिकारी, पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन के अधिकारी, संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के प्रतिनिधि, वन विभाग के अधिकारी तथा इन क्षेत्रों में सक्रिय गैर सरकारी संगठनों के सदस्यों ने भाग लिया।