सांगटी उपचुनाव-वीरभद्र के शिमला में जयराम की पहली जीत क्या शिमला लोस चुनाव में भी यह जारी रह पायेगी?

Created on Tuesday, 15 January 2019 08:26
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। नगर निगम शिमला के सांगटी वार्ड से भाजपा ने पहली बार जीत दर्ज की है। इससे पहले यहां पर माकपा और कांग्रेस का ही कब्जा रहा है। यह दूसरी बात है कि इस जीत की पटकथा लिखने के लिये भाजपा को उसी चेहरे पर दाव खेलना पड़ा जिसे वह कांग्रेस में सेंध लगाकर भाजपा में लायी थी। भाजपा की जीत का चेहरा बनी मीरा शर्मा ने इस वार्ड से तीसरी बार तीसरे दल में आकर भी अपनी जीत बरकरार रखी है। इस तरह भाजपा की यह उसकी विचारधारा की नही बल्कि उसकी जोड़तोड़ की जीत ज्यादा मानी जा रही है। क्योंकि यही मीरा शर्मा सबसे पहले यहां से माकपा और फिर कांग्रेस से जीत चुकी है। हालांकि इस बार प्रदेश में भाजपा की सरकार होने के बावजूद वह केवल 44 मतों से ही जीत पायी है जबकि कांग्रेस में वह 271 मतों से जीती थी। लेकिन जीत का अपना ही एक अलग अर्थ होता है और नगर निगम शिमला का प्रदेश की राजनीति में एक केन्द्रिय स्थान है। चुनाव की दृष्टि से शिमला को मिनी हिमाचल माना जाता है इस नाते इस जीत के राजनीतिक मायने अलग हो जाते हैं। भाजपा में इस जोड़-तोड़ का पूरा श्रेय शिमला के विधायक शिक्षा मन्त्री सुरेश भारद्वाज और चौपाल के विधायक बलवीर वर्मा के प्रबन्धन को जाता है जिन्होंने मीरा को ओकओवर में बिल्कुल गुपचुप तरीके से भाजपा में शामिल करवाया तथा इससे पहले किसी को भी इसकी भनक तक नही लगने दी।
शिमला पूरा जिला कांग्रेस गढ़ माना जाता रहा है क्योंकि इसी शिमला के वीरभद्र प्रदेश के छः बार मुख्यमन्त्री रह चुके हैं। फिर जब नगर निगम शिमला के चुनाव हुए थे तब वीरभद्र स्वयं चुनाव प्रचार में उत्तरे थे। माना जाता है कि जिला शिमला की राजनीति में उनके परोक्ष/ अपरोक्ष दखल के बिना कुछ भी नहीं घटता है। फिर इस उपचुनाव से पहले ही प्रदेश कांग्रेस को इसी जिले के कुमारसेन से कुलदीप राठौर के रूप में नया अध्यक्ष भी मिल गया था। इस परिप्रेक्ष में यह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि भाजपा न केवल कांग्रेस का प्रत्याशी ही सेंध लगाकर छीनने में कामयाब हुई बल्कि वीरभद्र के शिमला में यह जीत दर्ज करने में भी सफल हो गयी।
अब प्रदेश में लोकसभा चुनाव होने है और यह चुनाव भाजपा और कांग्रेस दोनो के लिये महत्वपूर्ण होंगे। इन चुनावों में साम, दाम, दण्ड और भेद सबका बराबर इस्तेमाल किया जायेगा। अभी भाजपा के शिमला से वर्तमान सांसद वीरेन्द्र कश्यप के खिलाफ ‘‘कैश आन कैमरा’’ मामले में अदालत में आरोप तय हो गये हैं। इसी के साथ विधानसभा अध्यक्ष राजीव बिन्दल का मामला भी अदालत में गंभीर मोड़ पर है। सरकार इसे वापिस लेने के लिये अदालत में आग्रह दायर कर चुकी है। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ऐसे मामलों में दिये गये फैसलों के परिप्रेक्ष में इसे वापिस का पाना अदालत के लिये भी बहुत आसान नही रह गया है क्योंकि इसमें अभियोजन पक्ष की ओर से सारी गवाहीयां हो चुकी है। अब केवल डिफैन्स की ओर से ही गवाहीयां आनी है। ऐसे में इस स्टैज पर इस मामले के वापिस होने पर कई सवाल उठेंगे और यह भी संभव है कि कोई भी इसे उच्च न्यायालय के संज्ञान में ले आये तथा यह सरकार के लिये पेरशानी का कारण बन जाये।
इस परिदृश्य में सरकार और भाजपा के लिये सांगटी में मिली जीत को लोकसभा में दोहराने के लिये काफी संभलकर चलना होगा। क्योंकि यह स्वभाविक होगा कि कांग्रेस का नया अध्यक्ष इस हार के कारणों पर रिपोर्ट लेगा ही। ऐसे में जिस तरह की ब्यानबाजी इस चुनाव तक बड़े नेताओ की आती रही है उसका कड़ा संज्ञान लेते हुए इस तरह के आचरण पर कड़ाई से रोक लगायी जाये। अबतक भाजपा को कांग्रेस के अन्दर बनती इस तरह की स्थितियों का लाभ मिलता रहा है जो आगे शायद ज्यादा संभव नही हो पायेगा।