शिमला/शैल। प्रदेश भाजपा में पिछले अरसे से चल रही इन साईड स्टोरी अब पब्लिक स्टोरी होने लग पड़ी है। इस स्टोरी का ताजा अध्याय कांगड़ा में कुछ दिन पहले ही लिखा गया है। 30 मई को कांगड़ा के लोक निर्माण विभाग के विश्राम गृह में भाजपा के आठ-दस नेता इकट्ठे हुए। इनमें कांगड़ा के सांसद किश्न कपूर और पूर्व मन्त्री रविन्द्र रवि प्रमुख नाम थे। रविन्द्र रवि के खिलाफ जब शान्ता के नाम खुले पत्र के प्रकरण में एफआईआर दर्ज हुई थी तब से रवि को मुख्यमन्त्री का विरोधी माना जाता है। रवि की गिनती धूमल समर्थकों में होती है। धूमल और जयराम के रिश्तों की मधुरता जंजैहली प्रकरण में सरकार के गठन के तुरन्त बाद ही जग जाहिर हो चुकी है। किश्न कपूर जब जयराम मन्त्रीमण्डल में मंत्री बने थे तब उनका मन्त्री बनना भी धूमल के नाम लगा था। इस परिदृश्य में जब कांगड़ा के धूमल खेमे से जुड़े नेताओं की कोई बैठक होगी तो उसे सरकारी तन्त्र से लेकर मीडिया तक मुख्यमन्त्री विरोधी बैठक ही करार देगा हुआ भी यही। लेकिन इसमें राजनीतिक समझ का खुला प्रदर्शन तब सामने आया जब कांगड़ा-चम्बा के आठ विधायकों ने इस बैठक को पार्टी विरोधी गतिविधि करार देते हुए राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा को इस संबंध में पत्र लिखकर बैठक करने वाले नेताओं के खिलाफ कारवाई करने का आग्रह तक कर दिया। इन विधायकों का यह पत्र जब समाचार बनकर सामने आया तब संासद किश्न कपूर की इस प्रतिक्रिया ने की बैठक करना पार्टी विरोधी गतिविधि नही है बल्कि पत्र लिखकर उसे सार्वजनिक करना अनुशासहीनता है।
अब किश्न कपूर और रविन्द्र रवि तथा अन्यों की इस बैठक के प्रकरण में एक और नया अध्याय जुड गया है। इसमें एसडीएम कांगड़ा ने लोक निर्माण विभाग कांगड़ा के अधिशासी अभियन्ता को पत्र लिखकर यह पूछा है कि उसने कोविड के दौरान इन नेताओं के लिये रैस्ट हाऊस कैसे खोल दिया। स्वभाविक है कि एसडीएम अपने स्तर पर या डीसी भी अपने स्तर पर एसडीएम को ऐसे निर्देश नही देगा कि वह अधिशासी अभियन्ता की ऐसी जवाब तलवी करे। क्योंकि अपरोक्ष में यह एक महत्वपूर्ण राजनीतिक फैसला है। निश्चित रूप से ऐसा फैसला पहले मुख्यमंत्री कार्यलय में लिया गया होगा और फिर इस पर अमल करने के लिये डीसी को निर्देश दिये गये होंगे। कांगड़ा की इस बैठक का प्रकरण जिस तरह से आठ विधायकों के राष्ट्रीय अध्यक्ष को पत्र से लेकर अधिशासी अभियन्ता की जवाब तलबी तक पहुंच गया है उससे यह स्पष्ट हो जाता है कि भाजपा में सब कुछ अच्छा नही चल रहा है।
इस बैठक प्रकरण के साथ आने वाले दिनों में और क्या-क्या जुड़ता है वह देखना दिलचस्प होगा। क्योंकि स्वास्थ्य विभाग का जांच प्रकरण भी शान्ता कुमार के पत्र के कारण ही राजीव बिन्दल के त्यागपत्र तक पहुंचा है। लेकिन जब कांगड़ा सैन्ट्रल कोआरपेटिव बैंक का लोन प्रकरण सामने आया और यह खुलासा हुआ कि ऋण लेने वाले ने शान्ता कुमार के विवेकानन्द ट्रस्ट के नाम पर उन्हे लाखों का चैक दान के नाम से देने का प्रयास किया था तब सरकार से लेकर संगठन तक सब इस मामले में चुप हो गये थे। लेकिन सबकी चुप्पी के वाबजूद इस मामले की वैधता का सवाल आज भी यथास्थिति खड़ा है। क्योंकि शान्ता कुमार भी इस चैक को लौटाने से आगे नही बढ़े थे। वैसे तो पालमपुर के उमेश सूद द्वारा विवेकानन्द ट्रस्ट के खिलाफ प्रदेश उच्च न्यायालय में दायर हुई याचिका को लेकर भी कई सवाल अब तक खड़े हैं। बहुत संभव है कि आज रविन्द्र रवि के खिलाफ खुले पत्र को लेकर हुई एफआईआर और अब बैठक को लेकर अधिशासी अभियन्ता की जवाब तलबी कई पुराने गड़े मुर्दो को भी खोदने का कारण न बन जाये। यह माना जा रहा है कि जैसे ही मन्त्री मण्डल के खाली पद भरे जायेंगे उसके बाद अन्दर की ज्वाला लपकें बनकर सामने आयेगी।