क्या माननीयों के वेतन भत्तों में कटौती वितीय आपात की भूमिका है

Created on Sunday, 12 April 2020 04:27
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। मुख्यमन्त्री  जयराम ठाकुर ने भी केन्द्र की तर्ज अपने मन्त्रीयों, विधायकों आदि के वेत्तन भत्तों में एक वर्ष के लिये 30% की कटौती की घोषणा की है। इसी के साथ विधायक क्षेत्र विकास निधि को भी दो वर्ष के लिये निरस्त कर दिया है। इस तरह होने वाली सारी बचत को कोरोना से लड़ने के प्रयासों में निवेश किया जायेगा। सरकार का यह कदम सराहनीय है और इस समय ऐसे कदमों की आवश्यकता भी है। हिमाचल में कोरोना का प्रकोप उतना नही है जितना देश के अन्य राज्यों में हैं। इसका श्रेय भी जयराम सरकार को ही जाता है जिसने प्रदेशभर में  लाकडाऊन के स्थान पर कर्फ्यू आदेशित किया। सरकार और प्रदेश को इसकी भारी कीमत भी चुकानी पड़ी हैं क्योंकि नये वित्तिय वर्ष के पहले ही दिन की शुरूआत कर्ज से करनी पड़ी है। जबकि पहले ही प्रदेश कर्ज के चक्रव्यूह में चल रहा है। ऐसे में आने वाले समय में प्रदेश को इस कर्ज के चक्रव्यूह से निकालना और आर्थिक स्थिरता प्रदान करना एक बड़ी चुनौती होगा। सरकार ने जहां मन्त्रीयों, विधायकों के वेत्तन भत्तों में कटौती की है वहीं पर क्या सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों के लिये भी ऐसी ही कटौती आदेशित की जायेगी या नही। इसको लेकर स्थिति अभी तक स्पष्ट नही हैं। यह सवाल प्रदेश के प्रशासनिक हल्कों में इसलिये चर्चा का विषय बना हुआ है क्योंकि प्रदेश में सबसे अधिक खर्च कर्मचारियों के वेत्तन भत्तों पर ही होता है। कई राज्य सरकारें अपने कर्मचारियों के वेत्तन भत्तों में ऐसी कटौती कर भी चुकी है। वैसे अभी तक कर्मचारी और अधिकारी संगठनों की ओर से ऐसी कोई पेशकश आयी भी नही हैं।
जब से प्रदेश में कर्फ्यू चल रहा है उसी दिन से आर्थिक उत्पादन की सारी गतिविधियों पर विराम लग गया है। पिछले पूरे वर्ष सरकार प्रदेश में नया निवेश लाने के प्रयासों में लगी रही है। इसके लिये 93000 करोड़ के एमओयू भी हस्ताक्षरित कर लिये गये थे। लेकिन इन प्रयासों के परिणाम ज़मीन पर आने से पहले ही कोरोना ने सब कुछ को ग्रहण लगा दिया है। इस ग्रहण से निकट भविष्य में शीघ्र ही छुटकारा पाकर प्रदेश की आर्थिक गतिविधियों को फिर से एकदम गति दे पाना भी संभव नही हो पायेगा यह स्पष्ट दिख रहा है। आर्थिक गतिविधियों का रूकना किसी भी गणित से श्रेयस्कर नही होता है। ऐसे में जहां यह वेत्तन भत्तों में कटौती की गयी है वहीं पर सरकार को आवश्यक खर्चो और भ्रष्टाचार पर तुरन्त प्रभाव से रोक लगाने की आवश्यकता होगी। इस समय जो राजनीतिक नियुक्तियां मुख्यमन्त्री सचिवालय से लेकर विभिन्न निगमों/बोर्डों में की गयी हैं उनके औचित्य पर निष्पक्षता से विचार करने की आवश्यकता है। क्योंकि जब विकासात्मक कार्यों पर विराम की स्थिति आ गयी है तब ऐसी नियुक्तियों पर स्वभाविक रूप से ही प्रश्न उठने लग जायेंगे । जब प्रदेश के उच्च न्यायालय ने ही कोरोना के चलते अपने न्यायायिक कार्यों पर कुछ समय के लिये विराम लगा रखा है तब वहां पर नियुक्त हुए अधिवक्ताओं की सेवाओं का उतने ही काल के लिये क्या औचित्य रह जायेगा।
अभी सरकार ने रेरा प्राधिकरण का गठन किया है। इसमें उच्च न्यायालय के समकक्ष नियुक्तियां की गयी हैं। जब कोरोना के चलते सारी व्यवसायिक गतिविधियों पर विराम लग गया है तब रेरा में क्या काम हो पायेगा। क्या कोरोना में भी बिल्डरों की गतिविधियां चलती रहेंगी। ऐसे कई अन्य संस्थान हैं जिन्हे थोड़े समय के लिये बन्द करके बचत की जा सकती है। क्योंकि जब नये वित्तिय वर्ष के पहले ही दिन कर्ज लेने की नौबत आ खड़ी हुई है तब ऐसे हर पद को फिज़ूल खर्ची माना जायेगा जिसके बिना सरकार का काम चल सकता है। जिन लोगों को सेवानिवृति के बाद पुनःनियुक्तियां सेवा विस्तार दिये गये हैं इस समय ऐसे मामलों की समीक्षा किया जाना आवश्यक है। क्योंकि सांसदो और विधायकों की क्षेत्र विकास निधियों को निःरस्त कर दिया गया है इसका सीधा प्रभाव जनता के विकास कार्यों पर पड़ेगा। कुछ विधायकों ने वेत्तन भत्तों पर की गयी कटौती पर तो कोई एतराज़ नही उठाया है लेकिन क्षेत्र विकास निधि के बन्द किये जाने पर अपनी नाराज़गी जाहिर की है। यह स्वभाविक है कि जब फील्ड में विकास कार्य प्रभावित होने शुरू होंगे तो हर आदमी का ध्यान उन सब चीजों की ओर जायेगा जो उसकी नज़र में अनुत्पादक खर्चें होंगे।