क्या राठौर हार के कारणों की ईमानदारी सें समीक्षा कर पायेंगे

Created on Tuesday, 29 October 2019 06:41
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुलदीप राठौर ने यह उपचुनाव हारने के बाद अपनी प्रतिक्रिया मे यह कहा था कि संगठन हार के कारणों का पता लगायेगा और दोषियों के खिलाफ कड़ी कारवाई करेगा। राठौर के बाद पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने भी धर्मशाला में हार के कारणों की जांच किये जाने और दोषियों को सजा देने की बात की है। राठौर की प्रतिक्रिया के बाद  धर्मशाला ब्लाक कांग्रेस को भंग भी कर दिया गया और युवा कांग्रेस ईकाई  पर भी इसकी गाज गिरी है। लेकिन धर्मशाला ईकाई पर हुई कारवाई के बाद भंग ईकाई के नेताओं ने भी इस पल्टवार किया है। इस पल्टवार से एक नया अध्याय शुरू हो गया हैं और इसमें अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इस द्वन्द में किस किस पर क्या -क्या आरोप प्रत्यारोप आते हैं। लेकिन यह सब पुरे परिदृश्य का एक पक्ष है जो शायद अपने को बहुत बड़ा नही है।
राठौर ने इसी वर्ष के शुरू में संगठन की बागडोर संभाली थी । यह परिवर्तन तत्कालीन अध्यक्ष सुखविन्दर सिंह सुक्खु  और तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के बीच चल रहक द्वन्द का परिणाम रहा है। इस परिवर्तन के लिये वीरभद्र सिंह आन्नद शर्मा, मुकेश अग्निहोत्री और आशा कुमारी सबने लिखित में सहमति जताई थी।। इसलिये राठौर को स्थापित करने में इन सबकी भूमिका भी समीक्षा का विषय बन जाती है। राठौर ने जिम्मेदारी संभालने के बाद पुरानी कार्यकारिणी को भंग करने के स्थान पर उसी मे नये लोग और जोड़ दिये । राठौर के इस विस्तार की पहली परीक्षा लोकसभा चुनाव में आयी और उसमें असफलता मिली। लेकिन लोकसभा चुनावों में किस बड़े नेता की भूमिका कितनी नकारात्मक और सकारात्मक रही है इस पर मीडिया में टिप्पणीयां उठती रही लेकिन संगठन के स्तर पर  आज तक किसी के खिलाफ कोई कारवाई नही हो सकी।
स्मरणीय है कि 2014 में भाजपा ने कांग्रेस को भ्रष्टाचार पर्याय प्रचारित करके सता पर कब्जा किया था। भ्रष्टाचार के खिलाफ मोर्चा खोलते हुये भाजपा के निशाने पर वीरभद्र आये और सीबी आई तथा ईडी ने इसमें मुख्य भूमिकायें अदा की। ईडी और सीबीआई के मामले आज तक चल रहे है। ऐंसे में यह आवश्यक था कि भाजपा को  भी सता में आने पर उसी के हथियार से घेरा जाता लेकिन राठौर के नेतृत्व मे कांग्रेस आज तक ऐसा कोइ मुद्दा नही उठा पायी जबकि ऐसे मुद्दों की कोई कमी नही है। भाजपा ने भ्रष्टाचार का डर दिखाकर ही विधानसभा और फिर लोकसभा में काग्रेस को मात दी। आज विधान सभा के उप चुनाव में भी वही खेल दोहराया गया। कांग्रेस उपचुनावों में आचार सहिंता के उल्लंघन के आरोप तो लगाती रही लेकिन लेकिन इसी मुद्दे पर चुप रहीकि चुनाव के दौरान भी मुख्य निर्वाचन अधिकारी के पास अन्य विभागों की जिम्मेदारी कैसे रही। क्योंकि यह स्वभविक है कि जो मुख्य निर्वाचन अधिकारी हर समय मुख्यसचिव के आदेशों निर्देशों से बंधा हुआ है वह आचार संहिता के उल्लंघन क आरोंपों पर निष्पक्ष कैसे रह सकता है।
इसी के साथ कांगड़ा केन्द्रीय सहकारी बैंक के मनाली के एक पर्यटक कारोबारी को 65 करोड़ के ऋण मामले में जिस तरह से ऋणकर्ता ने शान्ता कुमार के विवेकानन्द ट्रस्ट को इस ऋण से पन्द्रह लाख के दान देने का चैक सामने आया और शान्ता ने इसे लेने  से इन्कार कर दिया उससे जहां ऋण लेने वाले की जायज पात्रता पर स्वाल खड़े होते थे वहीं पर यह सवाल भी अहम हो जाता है कि  ऋण देने वाले बैंक का चेयरमैन भी इसी ट्रस्ट का एक ट्रस्टी है। यही नही पिछले दिनों जिस वायरल पत्र में सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे थें और इस पर आदेशित जांच में भाजपा के ही एक पूर्व मंत्री का मोबाइल फोन तक पुलिस ने जब्त किया है। यह ऐसे मुद्दे थे जिनका सरकार के पास जबाव  नही है लेकिन पूरे चुनाव में कांग्रेस ने इन मुद्दों पर ढ़ग से आवाज नही उठायी। कांग्रेस ने अपने को इसी तक सीमित रखा कि सरकार सता का दुरपयोग कर रही है और धन बल का इस्तेमाल हो रहा है। आज के परिदृश्य में ऐसे आरोपों की कोई अहमियत नही रह जाती है।  जबकि यह एक स्थापित सत्य है कि जब राजनिति में धन का प्रयोग हो रहा हो तो उस समय उसको भ्रष्टाचार के प्रमाणिक आरोंपों से ही हराया जा सकता है। फिर राठौर तो एक ऐसा चेहरा है  जिसके अपने खिलाफ इस तरह का कोई आरोप नही है। इससे यह सवाल उठना स्वभविक है कि राठौर इस मोर्चे पर असफल क्यों रहे। क्या जो लोग राठौर को लेकर आये थें वही भीतर से उसके साथ नही हैं। क्योंकि जो मुद्दे पार्टी के प्रवक्ताओं को उटाने चाहिये थे वह अध्यक्ष उठा रहा था। एक तरह से अध्यक्ष व प्रवक्ताओ का काम राठौर को ही करना पड़ रहा था।
इस उप चुनाव मे जब सुधीर के भाजपा मे जाने की चर्चाएं पहली बार उठी थी तभी से संगठन को इस बारे में गंभीर हो जाना चाहियें था। सुधीर वीरभद्र के निकटस्थ रहे हैं लेकिन जहां आज वीरभद्र धर्मशाला पर जांच की मांग कर रहे हैं उस समय सुधीर को लेकर यह सवाल  उठे थे त बवह क्यों खामोश रहे इस पर अभी तक कुछ सामने नही आया है। जबकि अब धर्मशाला की भंग ईकाई के लोग अपरोक्ष में सुधीर और जी एस बाली के द्वन्द की ओर इस प्रकरण को मोड़ने का प्रयास कर रहे हैं। अब इस प्रकरण में राठौर क्या भूमिका निभाते हैं इस पर भी सब की निगाहें रहेंगी। यदि आने वाले समय में राठौर संगठन में अनुभवी प्रवक्ता लेकर नही आ पातें हैं तो उनके लिये इस स्थान पर बने रहना आसान नही रहेगा क्योंकि आगे चलकर केवल भ्रष्टाचार के मुद्दों पर ही सरकार को घेरा जा सकेगा।