क्या 16 अक्तूबर को धर्मशाला में इन्वैस्टर मीट की प्रस्तावित समीक्षा बैठक आचार संहिता का उल्लंघन नही है इन्वैस्टर मीट के पोस्टरों पर मुख्यमन्त्री के फोटो का चुनाव आयोग ने लिया कड़ा संज्ञान-हटाने के दिये निर्देश
शिमला/शैल। इन उपचुनावों में सरकारी तन्त्र का दुरूपयोग होने का आरोप लगना शुरू हो गया है। इस संद्धर्भ में एक मामला दर्ज भी हो गया है। दूसरे में मामला दर्ज होने के कगार पर है और तीसरे विधानसभा अध्यक्ष डाॅ. बिन्दल के मामले में नोटिस जारी हो चुका है। पच्छाद में दो बार आईपीएच विभाग द्वारा चुनाव प्रक्रिया शुरू होने के बाद पानी की पाईपों के दो ट्रक पकड़े गये हैं। विधानसभा अध्यक्ष चुनाव प्रचार कर रहे हैं उनके प्रचार करने को मुख्यमन्त्री ने यह कह कर जायज ठहराया है कि जब बहुमत की सरकार होती है तो ऐसा किया जा सकता है और अन्य प्रदेशों में भी अध्यक्ष चुनाव प्रचार करते हैं। मुख्यमन्त्री का यह कहना कितना तर्क संगत है इसका अन्दाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सरकार बनती ही बहुमत से है और रहती भी तभी तक जब तक उसे बहुमत हासिल रहता है। लेकिन विधानसभा अध्यक्ष पूरे सदन का संरक्षक होता है और इसीलिये उसे निष्पक्ष रहना होता है। क्योंकि जब राष्ट्रपति शासन में सरकार चली जाती है और विधानसभा भी भंग कर दी जाती है तब अकेला विधानसभा अध्यक्ष ही अपने पद पर बना रहता है। अध्यक्ष पद की इस गरिमा को बनाये रखना अध्यक्ष और सरकार दोनों की ही जिम्मेदारी होती है परन्तु इस समय ऐसा हो नही पा रहा है।
यही नही चुनाव आयोग ने इन्वैस्टर मीट के पोस्टरों पर से मुख्यमंत्री के फोटो को हटाने के निर्देश जारी किये हुए हैं। इन निर्देशों से यह स्पष्ट हो जाता है कि चुनावों के दौरान इस मीट की तैयारियों का प्रचार-प्रसार आर्दश चुनाव आचार सहिंता के दायरे में आता है जिसका मुख्य निर्वाचन अधिकारी को संज्ञान लेना चाहिये। लेकिन इस संज्ञान से हटकर इस मीट की तैयारियों की समीक्षा बैठक ही 16 अक्तूबर को धर्मशाला में की जा रही है जहां पर उपुचनाव होना है। इस समीक्षा बैठक में सारा शीर्ष प्रशासन मौजूदा रहेगा। नियमों की जानकारी रखने वालों के मुताबिक यह बैठक चुनाव आचार संहिता का सीधा उल्लघंन है। लेकिन मुख्य निर्वाचन अधिकारी इसका संज्ञान नही ले रहे हैं क्योंकि उपचुनावों में वह चुनाव आयोग के साथ-साथ राज्य सरकार में भी कुछ विभागों के सचिव की भी जिम्मेदारी निभा रहे है। कायदे से चुनावों के दौरान मुख्य निर्वाचन अधिकारी को और कोई जिम्मेदारी नही दी जाती है ताकि वह भयमुक्त होकर इस जिम्मेदारी को निभा सके। अभी 10 अक्तूबर को राष्ट्रीय जनजाति आयोग एक दिन की यात्रा पर शिमला आया था। उसने मुख्य सचिव और अन्य सचिवों के साथ बैठक करके एक पत्रकार वार्ता भी कर ली। इस वार्ता में आयोग ने जनजातियों के लिये प्रदेश सरकार द्वारा किये जा रहे कार्यों का पूरा प्रशस्ति पत्र वार्ता में रख दिया। प्रदेश के पच्छाद विधानसभा क्षेत्र में उपचुनाव चल रहा है और इस क्षेत्र का आधा भाग हाटी समुदाय उसे जनजाति दर्जा दिये जाने की मांग कर रहा है। इस उपचुनाव में भी वहां पर यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। इस परिदृश्य में जनजाति आयोग की उपचुनावों के दौरान प्रदेश मुख्यालय में शीर्ष प्रशासन से बैठक और फिर प्रैसवार्ता करना दोनों आचार संहिता के उल्लंघन के दायरे में आते हैं। लेकिन इस सब पर शीर्ष प्रशासन से लेकर मुख्य निर्वाचन अधिकारी तक सब एकदम खामोश होकर बैठे हुए हैं जबकि चुनावों में प्रशासन की परोक्ष/अपरोक्ष भूमिका पर कोई सवाल न उठें यह उन्हे सुनिश्चित करना होता है। चुनावों के दौरान भी मुख्य निर्वाचन अधिकारी के पास अन्य विभागों का भी दायित्व रहना अपने में सरकार से लेकर चुनाव आयोग तक की नीयत और नीति पर कई गंभीर सवाल खड़े करता है।