क्या प्रदेश कांग्रेस में भी तोड़फोड़ का दौर आ रहा है अर्चना धवन के पासा बदलने से उठी चर्चा

Created on Tuesday, 09 July 2019 10:06
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। प्रदेश भाजपा ने मुख्यमन्त्री जयराम की मौजूदगी में अपना सदस्यता अभियान शुरू करके पहले ही दिन नगर निगम शिमला की वरिष्ठ कांग्रेस पार्षद अर्चना धवन को पार्टी में शामिल करके कांग्रेस को बड़ा झटका दिया है। क्योंकि धवन उस वार्ड से कांग्रेस की पार्षद थी जिसमें पूर्व मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह का अपना आवास है। इसमें और भी गंभीरता इस कारण है कि धवन के लिये वोट मांगने अपने वार्ड में वीरभद्र स्वयं गये थे। धवन आज भी वीरभद्र का आशीर्वाद प्राप्त होने का दावा करती है। धवन ने कांग्रेस छोड़ने का बड़ा कारण यह कहा है कि पार्टी में वरिष्ठता की कोई कद्र नही रही है। मजे की बात यह है कि धवन के पार्टी छोड़ने और अनदेखी का आरोप लगाने पर कांग्रेस की ओर से कोई प्रतिक्रिया तक नही आयी है। नगर निगम शिमला क्षेत्र को मिनी हिमाचल की संज्ञा दी जाती है और इसके चुनावों की विधानसभा का संकेतक माना जाता है। इस दृष्टि से यहां पर ऐसी राजनीतिक घटना का अपना ही एक अलग स्थान हो जाता है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण वरिष्ठता की अनदेखी का आरोप हो जाता है। कांग्रेस इस समय न ही प्रदेश में सत्ता में है और न ही नगर निगम में। ऐसी अनदेखी का आरोप सीधे संगठन पर आता है।
प्रदेश कांग्रेस को लोकसभा की चारों सीटों पर शर्मनाक हार झेलनी पड़ी है। लेकिन इस हार के बाद अध्यक्ष समेत कांग्रेस के किसी भी पदाधिकारी ने अपने पदों से त्यागपत्र देने की बात नही कही है। बल्कि हार के कारण जानने के लिये बुलायी गयी बैठक में भी उम्मीदवारों और अन्य नेताओं से जो कुछ पूछा गया वह वीरभद्र और विद्या स्टोक्स की मौजूदगी में पूछा गया। जबकि पूरे चुनाव के दौरान वीरभद्र के ही ब्यान अपने उम्मीदवारों को लेकर सबसे विवादित रहे हैं। वीरभद्र ही अकेले ऐसे नेता थे जो समय-समय पर मुख्यमन्त्री जयराम को सफलता /श्रेष्ठता के प्रमाण पत्र बांटते रहे हैं और उनके ब्यानों पर अध्यक्ष समेत हर बड़ा नेता चुप्पी साधे बैठा रहा। चुनाव के बाद भी संगठन की ओर से इसको लेकर कोई सवाल नही उठाया गया है। आज प्रदेश कांग्रेस में चुनाव के दौरान और उससे पहले हुए खर्चो के आडिट करवाने की चर्चा शुरू हो गयी है। चुनाव प्रचार के लिये आये पैसे से पहली बार ऐसा सामने आया कि अखबारों को कोई विज्ञापन तक जारी नही हुए। इस समय पार्टी के अन्दर पैसे को लेकर एक बड़ा विवाद छिड़ा हुआ है। सोशल मीडिया में कुछ लोगों की विवादित भूमिका को लेकर उनके खिलाफ कारवाई की जा रही है। इस कारवाई से संगठन को आगे चलकर कितना लाभ/नुकसान होगा शायद यह इस समय का सवाल ही नही रह गया है।
इसी वर्ष विधानसभा के लिये दो उपचुनाव होने हैं। लेकिन इन चुनावों को लेकर अभी तक पार्टी की ओर से कोई गतिविधि सामने नही आयी है। प्रदेश सरकार के किसी भी फैसले पर कोई प्रतिक्रिया नही आ रही है। यहां तक कि केन्द्र सरकार के बजट पर प्रदेश कांग्रेस का नेतृत्व एकदम खामोश सा ही रहा है। प्रदेश अध्यक्ष राठौर की प्रतिक्रिया भी एक रस्म अदायगी से अधिक कुछ नही रही है। इससे लगता है कि या तो उन्हें बजट समझ ही नही आया है या फिर वह जानबूझ कर इस पर चुप्प हैं लेकिन यह दोनों ही स्थितियां संगठन के लिये घातक हैं।
ऐसे में वीरभद्र की करीबी पार्षद के भाजपा में शामिल होने से कुछ राजनीतिक हल्को में यहां तक चर्चा चल पड़ी है कि आने वाले दिनों में कांग्रेस के कई बड़े नेता पासा बदल ले तो इसमें कोई हैरानी नही होगी।