क्या अब अभद्रता होगी चुनावी हथियार

Created on Wednesday, 24 April 2019 05:31
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सतपाल सिंह सत्ती द्वारा नालागढ़ के रामशहर में एक कार्यकर्ता सम्मलेन को संबोधित करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और यूपीए की चेयर पर्सन सोनिया गांधी के खिलाफ कहे गये अपशब्दों का कडा संज्ञान लेते हुए चुनाव आयोग ने सत्ती के चुनाव प्रचार पर 48 घण्टे के लिये रोक लगा दी है। लेकिन यह रोक लगने से पहले ही सत्ती के खिलाफ एक और शिकायत चुनाव आयोग के पास पहुंच गयी है। सत्ती ने नालागढ़ के रामशहर के बाद ऊना के अम्ब में भी राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के खिलाफ आपत्तिजनक भाषा का प्रयोग किया है। सत्ती द्वारा की गयी अभद्रता पर मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर से लेकर उनके मन्त्रीयों तक ने कोई खेद व्यक्त करने की बजाये उनका परोक्ष/अपरोक्ष में यह कहकर समर्थन किया है कि यह अभद्रता कांग्रेस द्वारा प्रधानमन्त्री के खिलाफ प्रयोग की जा रही भाषा पर कार्यकर्ताओं की सहज प्रतिक्रिया का प्रतिफल है। भाजपा के प्रदेश चुनावी प्रभारी तीर्थ सिंह रावत ने भी इसी लहजे में सत्ती का बचाव किया है। सत्ती ने चुनाव आयोग को भेेजे जवाब मेे भी यही तर्क दिया है लेकिन आयोग ने इस तर्क को खारिज करते हुए अपना आदेश सुनाया है। इस तरह इस पूरे मामले से यह सामने आता है कि इस अभद्रता का प्रयोग एक पूरी सोची समझी रणनीति के तहत किया जा रहा है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि ऐसा किया क्यों जा रहा है। 
इस ‘‘क्यों’’ का जवाब खोजते हुए जो सामने आता है उसके मुताबिक आज जो सवाल राष्ट्रीय स्तर से लेकर प्रदेश स्तर तक भाजपा और मोदी सरकार से पूछे जा रहे हैं उनका जवाब नही आ रहा है। क्योंकि आज मोदी सरकार सत्ता मे है तो सवाल तो उन्ही से पूछे जाने हैं क्योंकि 2014 के चुनावों मे जो वायदे भाजपा और मोदी ने देश/प्रदेश की जनता से किये थे वह पूरे तो हुए नही है। इन पर सवाल आते ही यह कह दिया जाता है कि कांग्रेस ने क्या किया है इतने समय तक। यह तर्क है कि जब कांग्रेस ने नहीं किया तो हम भी क्यों करे। हमारे से हिसाब क्यों पूछा जाये। हिसाब तो कांग्रेस से मांगा जा रहा है। इस तरह की वस्तुस्थिति में यह स्वभाविक है कि जब कोई तर्क पूर्ण जवाब नही रह जाता है तब सवाल की प्रतिक्रिया में अभद्रता का सहारा लिया जाता है। क्योंकि जब जनता को यह परोसा जाता है कि जो राहुल गांधी अभी तक बहू नही ला सके हैं वह देश को क्या संभालेंगे, कैसे प्रधानमन्त्री बनेंगे। यह एक ऐसा कमजोर तर्क है जिसका चुनाव जैसे गंभीर विषय के साथ कोई भी संबंध ही नही बनता है। लेकिन जनता जब ऐसे कथनों पर ताली बजाते हुए अपनी प्रतिक्रिया देती है तो नेता को लगता है कि जनता ने उसकी बात को समझ लिया है और उसका समर्थन कर रही है। लेकिन तब नेता यह भूल जाता है कि गाली को मिलाकर समर्थन वहीं तक रहता है यह स्थायी नही होता, क्योंकि गाली समझदारी की नही बल्कि अज्ञानता और हल्केपन की परिचायक होती है। आज शायद इसी हल्केपन को समर्थन मानने की भूल की जा रही है।
सत्ती भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष हैं और इस नाते उनकी जिम्मेदारी एक तरह से मुख्यमन्त्री से भी बढ़ जाती है। क्योंकि उनसे यह पूछा जा सकता है कि उनकी सरकार क्या कर रही है। सरकार के लिये कार्य एजैण्डा पार्टी तय करती है और उस ऐजैण्डा को अमली शक्ल मुख्यमन्त्री देता है। मुख्यमन्त्री से सरकार की कारगुजारी पर तो सवाल पूछा जा सकता है लेकिन पार्टी की कारगुजारी पर नहीं। आज जयराम सरकार भ्रष्टाचार के एजैण्डे पर पूरी तरह असफल है क्योंकि बतौर विपक्ष भाजपा ने भ्रष्टाचार के जो आरोप पत्र तब की कांग्रेस सरकार के खिलाफ सौंपे थे उन पर एक वर्ष में कारवाई के नाम पर कुछ भी सामने नही आया है। उल्टे आज जयराम के एक मंत्री का करीब पांच करोड़ का कांगड़ा के पालमपुर में किया गया निवेश चर्चा का विषय बना हुआ है। अभी चुनावों की घोषणा के बाद सिमैन्ट के दाम बढ़ाये जाने पर जनता सवाल पूछ रही है। इस एक वर्ष के कार्यकाल में ही मन्त्री और अन्य लोगों के खिलाफ भ्रष्टाचार को लेकर सार्वजनिक रूप से पत्र छप जायें तो इन पर जनता पार्टी अध्यक्ष से लेकर मुख्यमन्त्री तक सबसे सवाल तो पूछेगी ही। सत्ती के जिले में ही किसानों को दिये गये दो-दो हजार रूपये उनके खातों से बैंकों ने बिना कारण बताये सरकार को वापिस कर दिये। लेकिन सरकार और संगठन में से किसी ने भी इस पर जवाब नही दिया है। जिन किसानों के साथ यह घटा है क्या वह आज सवाल नही पूछेंगे। आज स्कूलों में अध्यापकों और अस्पतालों में डाक्टरों की भारी कमी चल रही है। अभी चुनाव डयूटी के कारण कई स्कूलों में तो कोई अध्यापक ही नही रहा है। प्रशासन की सबसे बड़ी लाचारता और क्या हो सकती है। प्राईवेट स्कूलों की लूट को लेकर छात्र अभिभावक मंच कई दिनों से आन्दोलन पर है। सरकार उच्च न्यायालय और अपने ही आदेशों की अनुपालना नही करवा पा रही है। जिससे स्पष्ट झलकता है कि इस लूट को सरकार का समर्थन हासिल है। इस तरह दर्जनों ऐसे गंभीर सवाल हैं जिनका सरकार और संगठन के पास कोई सन्तोषजनक उत्तर नही है और भाजपा इन सवालों से कांग्रेस और राहुल गांधी को गाली देकर बचने का प्रयास कर रही है।
इस परिदृश्य में यह सवाल और भी गंभीर हो जाता है कि जब सरकार मंहगाई बेरोजगारी और भ्रष्टाचार जैसे अहम क्षेत्रों में व्यवहारिक रूप से पूरी तरह असफल हो गयी है तो वह चुनावी मोर्चे पर महज गाली देकर सफल हो पायेगी। इसी के साथ कुछ विश्लेषकों का यह भी मानना है कि प्रदेश भाजपा के अन्दर आज जो खेमेबाजी की झलक चल रही है सत्ती का इस तरह गाली देना कहीं न कहीं उस खेमेबाजी की झलक भी देता है। क्योंकि सत्ती ने राहुल, सोनिया और प्रियंका के साथ-साथ राधा स्वामी संतसंग ब्यास को लेकर भी प्रतिकूल टिप्पणी की है। इस टिप्पणी से पूरा राधा स्वामी समाज नाराज हुआ है। जबकि कांगड़ा और हमीरपुर के संसदीय क्षेत्रों में राधा स्वामी समाज का बहुत प्रभाव है इस समाज की नाराज़गी इन सीटों पर भारी पड़ सकती है। राहुल गांधी परिवार के खिलाफ की गयी टिप्पणी को यदि राजनीतिक कारणों से जोड़ते हुए नजर अन्दाज कर भी दिया जाये तो उसी तर्क से राधा स्वामी समाज के खिलाफ आयी टिप्पणी को लेकर ऐसा नही किया जा सकता। हालांकि सत्ती ने इस पर खेद भी जता दिया है लेकिन इस खेद से यह और स्पष्ट हो जाता है कि इस टिप्पणी का एक अलग ही मंतव्य था।