वीरभद्र के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति मामलें में आरोप तय क्या भाजपा पहले की तरह इस बार भी इसे चुनावी मुद्दा बना पायेगी

Created on Tuesday, 26 February 2019 06:03
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। पर्व मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह और उनके एलआईसी ऐजैन्ट आनन्द चौहान के खिलाफ अन्ततः दिल्ली की सीबीआई कोर्ट ने आय से अधिक संपत्ति मामले में आरोप तय कर दिये है। इसी मामले में वीरभद्र सिंह की पत्नी पूर्व सांसद प्रतिभा सिंह और अन्य नामजद अभियुक्तों के खिलाफ पहले ही आरोप तय हो चुके हैं। अब आरोप तय होने के बाद इस प्रकरण में नियमित कारवाई चलेगी। यदि इस मामले में कहीं वीरभद्र सिंह के खिलाफ कभी कोई फैसला आ जाता है तब इसमें सर्वोच्च न्यायालय तक अपीलों का दौर चलेगा और इस तरह कई दशकों तक मामला अदालतों में चलता रहेगा जैसे पंडित सुख राम का चल रहा है। यदि इसमें वीरभद्र के खिलाफ फैसला आ जाता है तब वीरभद्र भी सुखराम के साथ एक ही पायेदान पर आ खड़े होंगे। गौरतलब है कि इसी आय से अधिक संपत्ति मामले को ईडी भी धन शोंधन के तौर पर देख रहा है। बल्कि ईडी में तो वीरभद्र सिंह और प्रतिभा सिंह को छोड़कर अन्य कथित अभियुक्तों आनन्द चौहान और वक्कामुल्ला चन्द्रशेखर जैसे लोगों की तो जांच के दौरान गिरफ्रतारी भी हो चूकी है। ईडी के प्रकरण की भी जांच पूरी होने के बाद इसका चालान भी अदालत में दायर हो चुका है और उसमें अब आरोप तय होने की प्रक्रिया चलेगी। बल्कि धन शोधन मामले में एक समय ईडी वक्कामुल्ला चन्द्र शेखर की जमानत रद्द करने की गुहार तक भी लगा चुका है। इस आग्रह पर अदालत ने सख्ती दिखाते हुए ईडी से यहां तक पूछ लिया था कि वह वक्कामुल्ला को लेकर तो इतनी गंभीरता दिखा रहे हैं लेकिन इसी मामले के मूल अभियुक्त वीरभद्र सिंह को लेकर उसका आचरण भिन्न क्यों रहा है। ईडी जब अदालत की इस टिप्पणी का कोई संतोषजनक जवाब नही दे पाया था तब दिल्ली उच्च न्यायालय ने ईडीे के आग्रह को सिरे से ही खारिज कर दिया था। लेकिन राजनीतिक और प्रशासनिक हल्कांे में ईडी के जमानत रद्द करवाने के आग्रह को राजनीतिक अर्थों में देखा जा रहा है। बल्कि ईडी के इस आग्रह के बाद वीरभद्र और आनन्द चौहान के उन आरोपों को नये सिरे से एक अर्थ मिल जाता है जब उन्होने मामले की सुनवाई कर रहे जज के खिलाफ लिखित में पक्षपात करने के आरोप लगाये थे। इस पूरे परिदृश्य में वीरभद्र सिंह का यह सीबीआई और ईडी का मामला इन लोकसभा चुनावों के दौरान एक बार फिर केन्द्रिय मुद्दा बनने के मुकाम पर पहुंच गया है। स्मरणीय है कि भाजपा ने वीरभद्र के इस मामले को 2014 के लोकसभा चुनावों और फिर 2017 के विधानसभा चुनावों में खूब भुनाया था। यह आरोप लगाये थे कि वीरभद्र के तो पेड़ों पर भी नोट उगते हैं। ऐसे में इन लोकसभा चुनावों में यह प्रकरण किस तरह से उठाया जाता है यह देखना दिलचस्प होगा। सीबीआई में यह मामला लगभग एक दशक तक रहा है। जिस भाजपा ने इसे दो बार चुनावों भुनाया वह अपने पांच वर्ष के कार्यकाल में वीरभद्र सिंह और प्रतिभा सिंह को एक दिन के लिये भी गिरफ्तार नही कर पाये यह एक कडवा सच है। ईडी अदालत के सवाल का कोई जवाब तक नही दे पाया। जबकि वीरभद्र और आनन्द चौहान के पक्षपात को लेकर अदालत पर लगाये आरोप आज भी यथास्थिति खड़े हैं यही नही अब जब सीबीआई अदालत में इस प्रकरण में आरोप तय होने की स्थिति आयी तब वीरभद्र और प्रतिभा सिंह ने सीबीआई के अधिकार क्षेत्र को ही उच्च न्यायालय में यह कह चुनौती दे दी कि जांच ऐजैन्सी को यह मामला किसी भी सरकार ने नही भेजा है और न ही किसी सरकार से इसमें मुकद्दमा चलाने की अनुमति ली गयी है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने वीरभद्र के इस आग्रह के बाद चालान को न तो रद्द किया और न ही कारवाई को स्टे किया। लेकिन इस पर सीबीआई से जवाब अवश्य मांग लिया है। अब यदि वीरभद्र का यह तर्क सही पाया जाता है तो एक बार फिर सीबीआई स्वयं आरोपों के घेरे में आ जायेगी। क्योंकि सीबीआई ऐसे अपने ही तौर पर किसी भी मामले की जांच शुरू नही कर सकती है। इसी के साथ जब ऐसे मामलों में चालान दायर किया जाता है तब चालान के साथ ही मुकद्दमा चलाने की अनुमति भी संलगन करनी पड़ती है। वीरभद्र के मुताबिक ऐसा कुछ भी नही है। जांच ऐजैन्सी की जांच के बाद चालान तैयार और दायर हो जाने के बाद भी सरकार ऐसे मामलों को वापिस ले सकती है। सरकार के अनुमति न देने पर ही मामला खत्म हो जाता है। जयराम सरकार ने ही विधानसभा अध्यक्ष डाॅ. बिन्दल का मामला तो उस स्टेज पर वापिस लिया है जब कि उसमें अभियोजन पक्ष की गवाहियां तक हो चुकी थी। फिर वीरभद्र के मामले में तो सीबीआई और ईडी दोनों के आचरण को लेकर जांच के दौरान ही आरोप लगते रहे हैं। उच्च न्यायालय तक ईडी के आचरण पर सवाल उठ चुका है। फिर बिन्दल के मामले के सामने वीरभद्र का मामला बहुत छोटा पड़ जाता है।
इस तरह वीरभद्र का मामला एक ऐसे मोड पर पंहुच चुका है जहां से भाजपा को भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी कथित प्रतिबद्धता का लाभ उठाने के लिये कोई जगह नही रह जाती है। बल्कि इस बार कांग्रेस के पास भाजपा पर राजनीतिक प्रतिशोध लेने के आरोप लगाने के लिये यही मामला एक बड़ा हथियार बन जाता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि इस बार भ्रष्टाचार किसी भी दल का मुद्दा बन पाता है या नही।