केन्द्र के आदेश के परिदृश्य में क्या चौधरी का चयन ट्रिब्यूनल के लिये हो पायेगा

Created on Tuesday, 04 December 2018 05:14
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। प्रदेश के प्रशासनिक ट्रिब्यूनल में करीब एक वर्ष से सदस्यों के दो पद खाली चले आ रहे हैं। इन पदों को भरने के लिये तीन बार आवेदन भी आमन्त्रित किये गये। इस पर कई लोग अपने आवेदन भेज भी चुके हैं लेकिन किसी -न-किसी कारण से इसके लिये चयन नहीं हो पाया। यह चयन तीन सदस्यों की एक कमेटी ने करना था और यह तीन सदस्य होतें है प्रदेश के मुख्य न्यायाधीश, ट्रिब्यूनल के चेयरमैन और मुख्य सचिव। इस कमेटी के सामने सारे आवेदनों को रखना और कमेटी की बैठक आयोजित करवाना यह जिम्मेदारी मुख्यसचिव की रहती है। सरकार भी मुख्यसचिव के माध्यम से ही अपने पसन्द के आदमी की सिफारिश कमेटी में करवाती है। ऐसे में मुख्य सचिव की भूमिका अन्य दो सदस्यों से थोडी अलग हो जाती है क्योेंकि जिन लोगों ने इसके लिये आवेदन कर रखे हैं उनका पिछला सर्विस रिकाॅर्ड कैसा रहा है, किसी के खिलाफ कभी कोई मामला तो खड़ा नहीं हुआ। यह सब जानकारी मुख्यसचिव के माध्यम से ही कमेटी के सामने आयेगी। इसमें यह मुख्य सचिव के अधिकार में रहता है कि वह पूरी जानकारी कमेटी के सामने रखें या ना रखें।
इन पदों के लिये वरिष्ठ नौकरशाह ही अधिकांश में आवेदन करते हैं। सूत्रों के मुताबिक इस बार इन पदों के लिये आवेदन करने वालों में कई अतिरिक्त मुख्यसचिव तथा कुछ मुख्यसचिव स्तर के लोग आवेदकों में शामिल हैं। वहां यह भी गौरतलब है कि कांग्रेस शासन के दौरान कई अधिकारियों के नाम एचपीसीए के खिलाफ बनाये गये मामलों में शामिल रहे हैं। एच पी सी ए के खिलाफ दर्ज एफआईआर और उसके आधार पर दायर हुये चालान को सर्वोच्च न्यायालय रद्द कर चुका है। लेकिन धर्मशाला काॅलेज के आवासीय परिसर को गिराये जाने को लेकर दर्ज हुई एफआईआर को सर्वोच्च न्यायालय ने रद्द नही किया है। इस प्रकरण में भी कुछ वरिष्ठ अधिकारियों के नाम शामिल रहे हैं। इनमें से भी कुछ शायद इन पदों के आवेदकों में शामिल हैं।
इसी के साथ जब प्रदेश में कुछ वरिष्ठ अधिकारियों की वरीयता को नज़रअन्दाज करके उनसे कनिष्ठ को मुख्यसचिव बना दिया था तब नज़रअन्दाज हुए अधिकारियों ने कैट में इस नियुक्ति को चुनौती दे दी थी। इस चुनौती देने के बाद कैट ने यह निर्देश दिये थे कि वरिष्ठ अधिकारियों को भी कनिष्ठ के बराबर ही वेतन भत्ते और सुविधायें दी जायें। लेकिन कैट ने इस नियुक्ति को रद्द नही किया था। कैट में चुनौती देने वालों को यह कहा था कि वरीयता के संद्धर्भ में वह अपना प्रतिवेदन भारत सरकार को करें। कैट ने यह आदेश 13-10-2017 को किया था और इसकी अनुपालना में विनित चौधरी ने अपना प्रतिवेदन भारत सरकार को भेज दिया था। इस पर भारत सरकार ने 22-12-2017 को जो आदेश पारित किया है उसमें भारत सरकार ने चौधरी को केन्द्र में सचिव या उसके समकक्ष नियुक्ति के लिये उपयुक्त नही पाया है। भारत सरकार में इन पदों के लिये अधिकारियों की पात्रता की स्वीकृति एसीसी देती है। एसीसी से पहले केन्द्र के विशेष सचिवों की कमेटी अधिकारी का आकलन करती है। चौधरी का मामला इस सचिव कमेटी के सामने जून 2015 फिर नवम्बर 2015 को आया था और इन्हे इसका पात्र नही माना था। इसके बाद मार्च 2016 और जुलाई 2016 में फिर यह मामला कमेटी के सामने आया लेकिन इस बार कमेटी की राय में कोई बदलाव नही आया। फिर जब कैट के आदेश पर चौधरी ने अपना प्रतिवेदन केन्द्र को भेजा तब फिर 8-11-2017 को सचिव कमेटी ने इस पर पुनः विचार किया लेकिन कमेटी की राय में कोई बदलाव नही आया। पांच बार चौधरी का मामला कमेटी के सामने आ चुका है और हर बार कमेटी ने इसका अनुमोदन नही किया है।
सूत्रों के मुताबिक चौधरी भी प्रदेश के प्रशासनिक ट्रिब्यूूनल के आवेदकों में शामिल हैं। प्रदेश के मुख्य सचिव भी भी रह चुके हैं और मुख्यमन्त्री जयराम के विश्वास पात्रों में भी गिने जाते हैं। बतौर पूर्व मुख्य सचिव वह ट्रिब्यूनल के पद के लिये पात्रता में पहले स्थान पर माने जा रहे हैं। लेकिन भारत सरकार से जो आदेश प्रदेश के मुख्य सचिव को 22-12-2017 को प्राप्त हो चुका है उसके परिदृश्य में क्या कमेटी ट्रिब्यूनल के लिये उनका चयन कर पायेगी इस पर पूरे कर्मचारी वर्ग की निगाहें लगी हुई हैं।