शिमला/शैल। एनजीटी ने पंथाघाटी में बन रही डाक्टरों की कॉलोनी के निर्माण पर तत्काल प्रभाव से पाबंदी लगाते हुए डाक्टरों की हाउसिंग सोसायटी को विभिन्न नियमों की उल्लंघना करने के लिए तीन करोड़ 24 लाख रुपए का जुर्माना लगा दिया है।
इस रकम में से सोसायटी को 75 फीसद राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और बाकी 25 फीसद रकम केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पास जमा करानी होगी। पंचाट के अध्यक्ष न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल, न्यायिक सदस्यों जावेद रहीम व एसपी वांगड़ी और विशेषज्ञ सदस्य नगीन नंदा की पीठ ने स्थानीय नागरिक विद्या शांडिल की याचिका पर यह आदेश दिए हैं। याद रहे नगीन नंदा प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पूर्व सदस्य सचिव रह चुके हैं।
पंचाट की चार सदस्यीय इस पीठ ने साथ ही यह भी आदेश दिए है कि इस मामले की पड़ताल पंचाट के आदेशों पर शिमला में किसी भी तरह के निर्माण की मंजूरी के लिए गठित सुपरवाइजरी कमेटी करे और यह समीति एक महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट पंचाट को पेश करे।
पीठ ने कहा कि अगर वह सोसायटी के पर्यावरण की सुरक्षा के लिए उठाए गए कदमों से संतुष्ट होगी तो आगामी निर्माण के बारे में विचार करेगी। पीठ ने अपने आदेश में कहा है कि आईजीएमसी डाक्टर्स कोऑपरेटिव हाउसिंग सोसायटी को पंथाघाटी में कॉलोनी बनाने के लिए नगर निगम ने छह फरवरी 2010 को मंजूरी दे दी थी। लेकिन सोसायटी ने इस बावत पर्यावरण के विभिन्न प्रावधानों के तहत टीसीपी से कोई मंजूरी नहीं ली। जबकि यह मंजूरी लेना जरूरी था। इसके अलावा पर्यावरण मंजूरी भी नहीं ली। इसके तहत सीवरेज, यातायात, सड़क निर्माण, ठोस कचरे के निपटान, ढलान की मजबूती व इनके पर्यावरण पर पड़ने वालों प्रभावों का आकलन किया जाना था।
सोसायटी का 32 करोड़ 48 लाख रुपए के यह प्रोजेक्ट 21057.931 वर्ग मीटर पर बनाना था व पर्यावरण नियमों के मुताबिक सासोयटी को 20 हजार वर्ग मीटर से ऊपर के प्रोजेक्ट के लिए पर्यावरण प्रभाव आकलन करवाना होता हैं। लेकिन सोसायटी ने कुछ नही किया। जब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने सोसायटी को नोटिस भेजे तो भारी निर्माण होने के बाद पर्यावरण प्रभाव आकलन करवाया गया। जो कि हो ही नही सकता था। यह आकलन निर्माण करने से पहले होता है।
इस बीच 16 दिसंबर 2015 को सोसायटी ने राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण में मंजूरी के लिए आवेदन किया। प्राधिकरण ने 15 अक्तूबर 2016 को पर्यावरण मंजूरी दे दी। लेकिन साथ ही शर्त लगा दी कि सोसायटी को यहां पर सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाना होगा या नगर निगम की सीवरेज लाइन से कनेक्शन लेना होगा।
पीठ ने कहा कि राज्य विशेषज्ञ अप्रेजल कमेटी पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों पर विचार किए बिना पर्यावरण की मंजूरी नही दे सकती थी और अगर अध्ययन में उल्लंघन पाया जाता तो मंजूरी केंद्र से मिलनी थी। लेकिन ऐसा नही हुआ।
पीठ ने कहा कि नियमों के मुताबिक पंचाट के पास दो ही विकल्प हैं या तो बने सभी फलैटों को ढहा दिया जाए या सुरक्षा प्रावधानों का पालन करवाकर निर्माण को जारी रखने की इजाजत दी जाए।
पीठ ने कहा कि जहां पर निर्माण पहले हो गया है और पर्यावरण की मंजूरी नही ली गई है ऐसे मामलों के लिए केंद्र सरकार ने 14 मार्च 2017 को एक अधिसूचना जारी की थी व इसके प्रावधानों के तहत सोसायटी को कदम उठाने थे। पीठ ने कहा कि सोसायटी को तीन महीने का समय दिया गया लेकिन कहीं कुछ नहीं हुआ।
पीठ ने कहा कि सोसायटी ने परियोजना शुरू करने से पहले न पर्यावरण मंजूरी मांगी और न ही केंद्र मंत्रालय की 14 मार्च 2017 की अधिसूचना के तहत अपनाई जाने वाली प्रक्रियाओं पर अमल किया। इसके अलावा सोसायटी ने राजधानी में निर्माण के लिए पंचाट की ओर से गठित सुपरवाइजरी कमेटी जिसके अध्यक्ष अतिरिक्त मुख्य सचिव शहरी विकास हैं, से अपने मामले की पड़ताल करवाई। जबकि सोसायटी ऐसा कर सकती थी।
पीठ ने कहा कि ऐसे में सोसायटी को या तो सारे फलैट ढहाने होंगे या पर्यावरण की सुरक्षा को लेकर जरूरी कदम उठाने होंगे। उसके बाद अगर पंचाट संतुष्ट हुआ तो निर्माण की इजाजत दी जाएगी। सोसायटी में डेढ सौ के करीब सदस्य हैं जिनमें से पचास से ज्यादा आइजीएमसी के डाक्टर हैं। पिछली सरकार में इस परियोजना को लेकर बहुत कुछ रसूख के दम पर हुआ था। लेकिन अब इस आदेश के आने के बाद डाक्टरों के हाथपांव फूल गए हैं। लेकिन बड़ा सवाल है कि नियमों को ताक पर रखकर मंजूरियां दी क्यों गई।
प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के दफतर से कुल एक किलोमीटर की दूरी पर बन रही इस कॉलोनी के कर्ताधर्ताओं को बोर्ड के अधिकारी ने 23 जून 2014, 18 जुलाई 2014, 4 अगस्त 2014, 7 अप्रैल 2015, 18 जून 2015 और 20 अक्तूबर 2015 को चिठियां लिखकर सोसायटी को निर्माण न करने के निर्देश देते रहे। लेकिन ये काम नहीं रुका। कायदे से बोर्ड को तीन नोटिस देने के बाद सोसायटी के खिलाफ मुकद्दमा दायर कर देना चाहिए था। लेकिन बोर्ड ने ऐसा नहीं किया और काम चलता रहा। बोर्ड ने इस बारे में नगर निगम को भी अवगत कराया कि वो इस कॉलोनी का निर्माण कार्य रुकवाए। लेकिन धूमल सरकार व वीरभद्र सिंह सरकार में रसूखदारों ने ऐसा हाहाकार मचाया कि न तो काम निगम ने रुकवाया और न ही प्रदूषण नियंत्राण बोर्ड ने मुकद्दमा दायर किया।
सोसायटी ने पंथाघाटी में प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड से बिना अनुमति लिए 20 हजार वर्ग से ज्यादा इलाके में निर्माण कर दिया।;जबकि सोसायटी ने नगर निगम से 14000 वर्ग मीटर में इस सोसायटी का निर्माण करने का नक्शा पास करवा लिया था। सारा घपला यहीं हुआ है। बताते है कि ये सारा मामला धूमल सरकार के दौरान 2008 से लेकर 2012 के बीच हो गया। अब सोसायटी के आका भांडा निगम पर फोड़ने पर आ गए है।
सोसायटी के कर्ताधर्ताओं का कहना है कि जब उन्होंने नक्शा पास करवाया तो निगम ने उन्हें ऐसा कुछ नहीं बताया कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से भी मंजूरी लेनी लाजिमी है। इसके अलावा पर्यावरण मंजूरी का भी कोई झमेला नहीं था। हालांकि ये कर्ताधर्ता सही कह रहे हैं। पर्यावरण मंजूरी लेने की जरूरत तब पड़ती है अगर बिल्ट अप एरिया 20 हजार वर्ग मीटर से ज्यादा हो। सूत्रों के मुताबिक जब नक्शा पास कराया गया था तो ये 20 हजार वर्ग मीटर से कम ही था। लेकिन जब सोसायटी ने पर्यावरण विभाग से पर्यावरण मंजूरी मांगी तो सोसायटी के दस्तावेजों में ये बिल्ट अप एरिया 21 हजार से ज्यादा सामने आ गया। मामला एनजीटी पहुंचा व अब ये आदेश आ गया है। अब देखना ये है कि इंप्लीमेंटेंशन कमेटी व सुपरवाइजरी कमेटी क्या करती है।