सरकार की सेहत पर भारी पड़ेगा प्रस्तावित राष्ट्रीय राज मार्गो का विकास

Created on Tuesday, 23 October 2018 11:56
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। केन्द्र सरकार ने हिमाचल को 70 राष्ट्रीय उच्च मार्ग दिये है। इन राजमार्गोे के दिये जाने को प्रदेश भाजपा और सरकार ने एक बड़ी उपलब्धि के रूप में प्रचारित एवम् प्रसारित किया है। कांग्रेस ने बतौर विपक्ष सरकार पर यह आरोप लगाया है कि इन राष्ट्रीय उच्च मार्गो की स्वीकृति अभी केवल सैद्धान्तिक स्तर पर ही है और इन्हें अमली शक्ल में अभी वक्त लगेगा। यह सही भी है कि अभी तक इनकी डीपीआर तक तैयार नही हो पायी है। यह सब होने में समय लगेगा लेकिन इतना तय है कि यह राज मार्ग देर सवेर शक्ल लेंगे ही। इस समय चार फोरलेन परियोजनाओं पर काम चल रहा है। इसी के साथ अब राज्य सरकार ने टीसीपी का दायरा भी पूरे प्रदेश में बढ़ा दिया है। 150 से ज्यादा नये इलाकों को टीसीपी में शामिल कर दिया है। चार फोरलेन 70 राष्ट्रीय उच्च मार्ग और पूरे प्रदेश को टीसीपी के दायरे ला देना विकास की दृष्टि से एक बड़ा कदम है। यह सारा विकास जब ज़मीन पर उतर कर हकीकत की शक्ल लेगा तब इसका सही आकलन हो पायेगा कि इससे प्रदेश के किसान बागवान और इन पर आश्रित खेती हर मज़दूर को कितना लाभ मिला है। क्योंकि इस विकास को ज़मीन पर उतारने के लिये किसान बागवान की ज़मीन अधिगृहित की जायेगी। क्योंकि विकास के लिये ज़मीन चाहिये और वह केवल किसान-बागवान के ही पास है। किसान/बागवान से क्या उसकी ज़मीन सही मुआवजा देकर ली जा रही है? भू-अधिग्रहण 2013 की सारी शर्तों की अनुपालना हो पा रही है? इसको लेकर सरकार की कथनी और करनी में आये अन्तर को लेकर इस अधिगृहण से प्रभावित लोग पिछले तीन वर्षो से संघर्षरत है। इसके लिये उन्हें प्रदेश स्तर पर संयुक्त संघर्ष समिति का गठन करना पड़ा है क्योंकि सरकार उन्हंे उचित मुआवजा नही दे रही है। इस अधिगृहण से हजारों किसान /बागवान प्रभावित हुए हैं। भाजपा जब विपक्ष में थी तब विधानसभा में भी यह मुआवजे का मुद्दा आया था और तब भाजपा ने किसानों की मांगों का समर्थन करते हुए यह मांग की थी उन्हें बाज़ार भाव का चार गुणा मुआवजा दिया जाना चाहिये। लेकिन अब सत्ता में आने पर उसी वायदे को पूरा नही कर पा रही है। संयुक्त संघर्ष समिति ने सरकार को एक माह का समय दिया है यदि इस समय सीमा में इनकी मांगे न मानी गयी तो यह लोग सड़क पर उतर आयेंगे।
भू-अधिग्रहण अधिनियम में चार गुणा मुआवजे का प्रावधान है और इसके आकलन के लिये फैक्टर दो परिभाषित है लेकिन सरकार ने एक अप्रैल 2015 को फैक्टर एक अधिसूचना जारी करके मामले को उलझा दिया। अब फैक्टर एक की अधिसूचना को रद्द करने की मांग पहला मुद्दा बन गया है। 2013 के अधिनियम के शैडयूल दो में भूमिहीन को भूमि,बेघरों को घर, बेरोजगारों को रोजगार अथवा पांच लाख की राशी देने का प्रावधान है। इसी भूमि पर आश्रित खेती हर मजदूरों के भी पुर्नवास और पुन स्र्थापना का प्रावधान है। अनुसूचितजाति और जनजाति के लोगों के लिये विशेष आर्थिक पैकेज दिये जाने की व्यवस्था है। लेकिन इस दिशा में अभी तक सरकार ऐसे लागों को चिन्हित तक नही कर पायी है जिन्हे यह सब मिलना है। मकानों का मुआवजा वर्तमान दरों की बजाये 2014 की दरों पर दिया जा रहा है। इसमें 12ः की दर से ब्याज दिये जाने का भी प्रावधान है और कुछ को यह ब्याज दे भी दिया गया है। पेड़, पौधों व अन्य फसलों का मूल्याकांन 1979 में बने ‘‘हरवंस सिंह फाॅर्मूले’’के आधार पर दिया जा रहा है जबकि यह आकलन 2018 के आधार पर किये जाने की मांग है। इस तरह अधिग्रहण से जुड़े इतने मुद्देे हो गये हैं जिनको हल करने के लिये सरकार पर भारी वित्तिय बोझ पड़ेगा। अभी तो मुआवजे की यह मांगे फोरलेन के लिये ली गयी ज़मीन तक ही सीमित है। जब 70 राष्ट्रीय उच्च मार्गों का काम शुरू होगा तब प्रदेश का हर हिस्सा इससे प्रभावित होगा और यह मांग रखेगा।
इस भू-अधिग्रहण के साथ ही अब लोगों की दिक्कत टीसीपी का दायरा पूरे प्रदेश में बढ़ाने से और बढ़ेगी। क्योंकि यह सारे क्षेत्र अब प्लानिंग एरिया में आ जायेंगे। यहां पर होने वाले निर्माणों पर प्लानिंग के नियम/कानून लागू होंगे। एनजीटी के आदेश के बाद अब यहां भी अढ़ाई मंजिल से ज्यादा के निर्माण नही हो पायेंगे। अभी लोगों को इसके बारे में पूरी विस्तृत जानकारी नही है। जब यह जानकारी हो जायेगी तब आम आदमी सरकार के इस फैसले पर कैस प्रतिक्रिया देता है वह रोचक होगा।