सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के परिदृश्य में बिन्दल मामले पर उभरे संदेह

Created on Monday, 24 September 2018 09:36
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। जयराम सरकार ने विधानसभा अध्यक्ष के खिलाफ डेढ़ दशक से चल रहे अपराधिक मामले को वापिस लेने के सीआरपीसी धारा 321 के तहत अदालत में आवेदन दायर किया है। इस आवेदन पर 29 सितम्बर को विचार होने की संभावना है। इस मामले में यह आवेदन उस समय आया है जबकि यह मामला फैसले के कगार पर पहुंचा हुआ है। क्योंकि इसमें अभियोजन पक्ष की सारी गवाहीयां हो चुकी हैं। केवल नामजद अभियुक्तां का 313 में अपना ब्यान होना ही बाकि बचा है। इस ब्यान के बाद बहस और फिर फैसले की स्टेज आयेगी। कुल मिलाकर अदालत का इसमें चार/पांच दिन का और समय लगेगा। जबकि अब तक महीनों के हिसाब से इसमें अदालत का समय लग चुका है। ऐसे में इस स्टेज पर यह तर्क आना कि इस मामले को चलाये रखने से अदालत का समय ही नष्ट होगा कोई ज्यादा व्यवहारिक नही लगता।
इस मामले में बिन्दल के साथ दो दर्जन से अधिक और अभियुक्त भी हैं। लेकिन सरकार केवल बिन्दल का ही मामला वापिस ले रही है अन्य अभियुक्तों का नही। इसकों लेकर भी सरकार की मंशा पर सवाल उठने लग पडे़ हैं। क्योंकि यह सवाल उठ रहा है कि क्या सरकार यह मानती है कि अन्य अभियुक्त बिन्दल के बिना भी यह अपराध कर सकते थे। वैसे तो कानून के जानकारों के मुताबिक यदि बिन्दल का मामला वापिस हो जाता है तो अन्य अभियुक्तों के खिलाफ भी मामला स्वतः ही कमजोर हो जायेगा। क्योंकि इसमें बिन्दल की भूमिका ज्यादा मानी जा रही है।
ऐसे में अब अदालत पर लोगों की निगाहें लगी है कि क्या अदालत मामला वापिस लेने के आग्रह को स्वीकार कर लेती है या नही। क्योंकि प्रदेश उच्च न्यायालय में जुलाई 2016 में कैप्टन राम सिंह के मामले में निचली अदालत द्वारा धारा 321 में आये आवेदन को स्वीकार करने के फैसले को पलट चुकी है।
अभी 13 सितम्बर को सर्वोच्च न्यायालय की प्रधान न्यायधीश, दीपक मिश्रा और जस्टिस डी वाई चन्द्रचूड़ की पीठ का फैसला आया है। इसमें 321 पर विस्तार से चर्चा करने के बाद अदालत ने यह कहा है कि  We are compelled to recapitulate that there are frivolous litigations but that does not mean that there are no innocent sufferers who eagerly wait for justice to be done. That apart, certain criminal offences destroy the social fabric. Every citizen gets involved in a way to respond to it; and that is why the power is conferred on the Public Prosecutor and the real duty is cast on him/her. He/she has to act with responsibility. He/she is not to be totally guided by the instructions of the Government but is required to assist the Court; and the Court is duty bound to see the precedents and pass appropriate orders.

In the case at hand, as the aforestated exercise has not been done, we are compelled to set aside the order passed by the High Court and that of the learned Chief Judicial Magistrate and remit the matter to the file of the Chief Judicial Magistrate to reconsider the application in accordance with law and we so direct.
The appeal is, accordingly, allowed. सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले के परिदृश्य में यह महत्वपूर्ण होगा कि अदालत 321 में आये आवेदन को स्वीकार करती है या नही। लेकिन सरकार के इस फैसले से भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार के दावों पर गंभीर प्रश्नचिन्ह अवश्य लग जाता है।