धारा 118 की जांच में क्या सचिव स्तर पर दी गयी ई सी अनुमतियों की जांच भी होगी

Created on Monday, 24 September 2018 09:29
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। पूर्व अतिरिक्त मुख्य सचिव दीपक सानन ने मुख्यमन्त्री को पत्र लिखकर शिकायत की है कि प्रदेश मे 2013 से लेकर 2017 तक मुजारियत एवम् भू सुधार अधिनियम की धारा 118 का दुरूपयोग हुआ है। इस दुरूपयोग के कुछ मामले उठाते हुए यह मांग की है कि पूर्व मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह, पूर्व मुख्य सचिव वीसी फारखा और तत्कालीन अतिरिक्त मुख्य सचिव राजस्य तरूण श्रीधर के खिलाफ तुरन्त मामला दर्ज करके जांच की जाये। सानन ने यह भी कहा है कि यदि सरकार जांच नहीं करवाती है तो वह इसके लिये अदालत का दरवाजा भी खटखटायेंगे। ऐसा पहली बार देखने को मिला है कि अतिरिक्त मुख्य सचिव रहे अधिकारी ने इतनी गंभीरता दिखाते हुए ऐसी कोई शिकायत की है। सानन इस समय जयराम सरकार द्वारा गठित कुछ कमेटीयों के सदस्य भी हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि सरकार निश्चित रूप से उनकी शिकायत पर जांच करवायेगी और दोषीयों के खिलाफ कारवाई करेगी।

सानन की शिकायत के साथ ही जय राम सरकार ने 118 के दुरूपयोग की एक शिकायत पर पूर्व मुख्य सचिव राज्य चुनाव आयोग के अध्यक्ष पी मित्रा के खिलाफ 2010 में घटे एक मामले की पुनः जांच शुरू कर दी है जबकि इस मामले में विजिलैन्स ने एक समय क्लोज़र रिपोर्ट तक दायर कर दी थी। अब इस मामले में कुछ नये तथ्य सामने आने का दावा करके विजिलैन्स ने अदालत से क्लोजर रिपोर्ट वापिस लेकर नये सिरे से यह जांच शुरू की है। आरोप है कि उस दौरान धारा 118 के तहत भू खरीद की अनुमतियां देने के मामलां में पैसों का लेनदेन होता था। जांच के बाद यह आरोप कितना सही साबित होता है यह तो समय ही बतायेगा। लेकिन विजिलैन्स के सूत्रों के मुताबिक पैसों का लेनदेन शिमला के संकटमोचन के पास एक होटल में हुआ था। वहां से किसी के माध्यम से यह पैसा चण्डीगढ़ में किसी को भेजा गया था। शिमला से किसके माध्यम से यह पैसा भेजा गया उसका नाम पता विजिलैन्स को मालूम नही है। चण्डीगढ़ में जिसको दिया गया उसका भी नाम मालूम नही है। एक लाल गाड़ी में बैठे व्यक्ति को पैसा दिया गया। लेकिन इस गाड़ी का नम्बर तक विजिलैन्स को मालूम नही है लेकिन फिर भी विजिलैन्स पूरी गंभीरता से यह जांच कर रही है।
विजिलैन्स इस मामले के माध्यम से उस दौरान धारा 118 के तहत दी गयी अनुमतियों के मामलों को खंगाल रही है। ऐसे में उसी दौरान घटे आप्टिमा कंन्सट्रक्शन का मामला भी सामने आ जाता है। क्योंकि जब यह मामला प्रदेश विधानसभा में मुकेश अग्निहोत्री ने उठाया था तब तत्कालीन मुख्यमन्त्री प्रेम कुमार धूमल ने इस मामले की जांच करवाने का आश्वासन सदन में दिया था। लेकिन यह जांच आज तक नहीं हो पायी है। स्मरणीय है कि आप्टिमा कन्सट्रक्शन ने कसौली के एक गांव बनानी में 108 बीघे ज़मीन लेकर एक कॉलोनी का निर्माण किया था। लेकिन गांव के लोगों ने ग्रामीण अधिकार सुरक्षा संघर्ष समिति कसौली का गठन करके इसका विरोध किया था। ग्रामीणों का आरोप था कि इसके लिये हजारां पेड़ काट दिये गये हैं। इसलिये वन विभाग के एनओसी को लेकर एतराज उठाया गया था। आरोप था कि इसके लिये डीपीएफ के बिना उचित अनुमति के सड़क निकाल दी गयी है। इसी के साथ पानी को लेकर भी यह आरोप था इन्हें पानी भी गांव के स्त्रोत से ही दे दिया गया जबकि अलग स्त्रोत होना चाहिये था। इससे भी गंभीर आरोप यह था कि ग्रामीणों की अनुमति के बिना ही उनकी जमीन ले ली गयी। जबरदस्ती जमीन लेने का आरोप एक महिला रीना देवी ने वाकायदा शपथपत्र देकर लगाया था। रीना देवी का आरोप था कि उसकी पन्द्रह बीघे जमीन बिना उसकी अनुमति के ले ली गयी है जबकि वह स्वयं इसके बाद भूमिहीन हो जाती है। रीना देवी ने शपथपत्र के साथ यह शिकायत तत्कालीन मंत्री महेन्द्र सिहं ठाकुर को दी थी।
उस समय यह आरोप लगाया था कि इस कॉलोनी के लिये ई सी मन्त्री को सूचित किये बिना ही सचिव के स्तर पर दे दिया गया था। यही नही सचिव ने अपने ही स्तर पर आधा दर्जन बिल्डरज को ई सी दे दिये थे। जबकि वह इसके लिये सक्षम नही थे। सूत्रों के मुताबिक यह ई सी देते हुए वह फाईल पर लिख देते थे कि मुख्यमन्त्री ने ऐसा चाहा है। स्मरणीय है कि 2014 में यह मामला बहुत चर्चित हो गया था। गौरतलब है कि उस समय संबंधित विभाग के सचिव यही दीपक सानन थे जिनकी शिकायत पर आज जयराम जांच करवा रहे हैं और उन्हे कुछ कमेटीयों का सरकार ने सदस्य बना दिया है। लेकिन उस दौरान टीसीपी के मंत्री महेन्द्र सिंह ठाकुर के साथ विभाग के सचिव दीपक सानन की बिल्कुल नही बन रही थी। बल्कि महेन्द्र सिंह ने इसकी शिकायत धूमल से भी कर दी थी क्योंकि विधानसभा सत्र में भी सानन एक बार भी अपने मंत्रा से नही मिले थे। ऐसे मे जब उस दौरान के 118 के मामलों की जांच की ही जा रही है तो इस प्रकरण में उस महिला रीना देवी की शिकायत की जांच भी हो जानी चाहिये जो उसने उस समय 13.12.2011 को वाकायदा शपथपत्र लगाकर मंत्री को दी थी। इस महिला की शिकायत है कि चर्चा विधानसभा तक में हुई थी लेकिन आवश्वासन के वाबजूद यह जांच हुई नही है।
इस परिदृश्य में यह गौरतलब है कि यदि जयराम सरकार और उसकी विजिलैन्स सही में बिना किसी निहित राजनीतिक स्वार्थ के धारा 118 के दुरूपयोग के मामलों की ईमानदारी से जांच करना चाहती है तो उसे इस संद्धर्भ में आज तक गठित हुए तीनों जांच आयोगों की रिपोर्ट पर कारवाई करनी चाहिये। स्मरणीय है कि इस बारे में सबसे पहले 1993 में वीरभद्र सिंह ने एस एस सिद्धु की अध्यक्षता में एक जांच बिठाई थी। इसके बाद सेवानिवृत जस्टिस रूप सिंह ठाकुर की अध्यक्षता में दूसरी बार जांच बैठी। तीसरी बार जस्टिस डीपी सूद ने इस संद्धर्भ में जांच की। इन तीनों कमेटीयों में हजारों मामले 118 के दुरूपयोग के सामने आये हैं। कांगड़ा के पालमपुर में 464 बीघे का चाय बागीचा दिल्ली निवास फैजमुर्तजा अली द्वारा खरीदा जाना चर्चा का विषय रहा है। यही नही जुलाई 2007 से 29 दिसम्बर 2007 के बीच 118 की 97 अनुमतियां दी गयी। इनमें अनुमति पाने वाले तीन आईएएस अधिकारी भी शामिल हैं। इन सारी अनुमतियों में 118 के प्रावधानों की उल्लंघना के गंभीर आरोप हैं। जस्टिस डीपी सूद आयोग ने 42 बिल्डरों की जमीनें जब्त करने की सिफारिश की थी। एक बिल्डर अग्रवाल पर यह आरोप है कि उसने स्त्ग्ट में केवल 336 पेड़ दिखाये हैं जबकि हजारों की संख्या में पेड़ काटे गये है। सूद आयोग ने बिल्डरों को नोटिस भेजे थे लेकिन यह लोग एक बार भी आयोग के सामने न तो पेश हुए और न ही नोटिस का जवाब तक दिया है। इसलिये जब जयराम सरकार सानन की शिकायत पर विजिलैन्स से जांच करवा रही है तब सरकार की ईमानदारी और निष्पक्षता का यह तकाजा रहेगा कि सरकार ऑप्टिमा प्रकरण तथा करीब आधा दर्जन बिल्डरों को सचिव स्तर पर ई सी जारी किये जाने की भी जांच करवाये। सानन को दी गई स्टडीलीव और उसके द्वारा ली गयी टी डी पर भी सरकार की चुप्पी को लेकर सवाल उठने शुरू हो गये हैं। क्योंकि सूत्रों के मुताबिक इन मामलों की शिकायत भी विजिलैन्स के पास पंहुच चुकी है।