कांगड़ा केन्द्रिय सहकारी बैंक की कार्यप्रणाली 174 करोड़ के ऋण में 64 करोड़ हुआ एनपीए

Created on Tuesday, 04 September 2018 12:34
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। कांगड़ा केन्द्रिय सहकारी बैंक ने पिछले तीन वर्षो में 547 ईकाईयों को 174,06,28,742.68 का ऋण दिया है जिसमें से 64,30,47,236.02 रूपये एनपीए हो चुका है। यह ऋण 1-4-2015 से 31-3-2018 के बीच दिया गया यह जानकारी विधानसभा के इस मानसून सत्र में हमीरपुर के विधायक नरेन्द्र ठाकुर के प्रश्न के उत्तर में दी गयी है। इस प्रश्न पर सदन में आयी चर्चा के दौरान मन्त्री विक्रम ठाकुर ने यह आश्वासन दिया है कि इस ऋण को दिये जाने की पूरी जांच करवाई जायेगी। मन्त्री ने सदन को यह भी बताया कि उनकी जानकारी के मुताबिक बहुत सारे साधन संपन्न लोग भी बैंक का ऋण वापिस नही कर रहे हैं। प्रदेश के सहकारी बैंको को लेकर बजट सत्र में भी एक सवाल आया था। उसमें पूछा गया था कि इन बैंकों का एनपीए कितना हो चुका है। इस प्रश्न के उत्तर में आयी जानकारी के अनुसार प्रदेश के दस सहकारी क्षेत्र के बैंकां का एनपीए 938.27 करोड़ था। जिसमें कांगड़ा केन्द्रिय सहकारी बैंक का एनपीए 560.60 करोड़ था। अन्य सहकारी बैंकों की स्थिति यह थी-राज्य सहकारी बैंक 250.48 करोड़ ,जोगिन्द्रा सहकारी बैंक 52.66 करोड़, हि.प्र्र. राज्य सहकारी सहकारी विकास बैंक 29.50 करोड़, शिमला अर्बन सहकारी बैंक 2.04 करोड़, परवाणु अर्बन सहकारी बैंक 6.06 करोड़, मण्डी अर्बन सहकारी बैंक 1.32 करोड़, बघाट अर्बन सहकारी बैंक 20.99 करोड़ और चम्बा अर्बन सहकारी बैंक 023 करोड़।
प्रदेश के सहकारी बैंकों की इस स्थिति से प्रदेश के सहकारिता आन्दोलन पर ही गंभीर सवाल खड़े हो जाते हैं क्योंकि हर छोटा बड़ा बैंक एनपीए का शिकार है। कांगड़ा बैंक ने 547 उद्योग ईकाईयों को 174 करोड़ ऋण 1-4-2015 से 31-3-2018 के बीच दिया है। जिसमें आज 64 करोड़ से अधिक का एनपीए हो चुका है। स्मरणीय है कि जब कोई ऋण तय समय सीमा के भीतर अदा नही हो पाता है तब वह एनपीए की श्रेणी में आ जाता है। इसलिये इसमें यह देखना आवश्यक हो जाता है कि ऋण की वापसी करने की नीयत ही नही हैं या फिर बाजिव कारणों से ऋणधारक ऋण को चुका नही पा रहे हैं। यह जांच से ही सामने आयेगा क्योंकि मन्त्री जब यह कहे कि साधन संपन्न लोग भी अदायगी नही कर रहे हैं तो स्थिति एकदम बदल जाती है।
कांगड़ा बैंक के सूत्रों के मतुबिक बजट सत्र से लेकर अब तक इसमें से केवल 28 करोड़ की ही रिकवरी बढ़ी है। बैंक ने जिन उद्योग ईकाईयों को ऋण दिया है उस सूची पर नज़र डालने से यह सामने आता है कि दर्जनों इकाईयां एसी हैं जिन्हें एक ही दिन में दो-दो बार ऋण दिया गया है ऐसा क्यों किया गया एक ही बार क्यों प्रोपोजल क्यों नही बनाए गये यह जांच का विषय बनता है।
अब जब मन्त्री ने सदन में जांच का आश्वासन दे दिया है उसके बाद अब इस पर निगाहें लगी हुई है कि वास्तव में इस जांच के आदेश कब होते हैं और विजिलैन्स इस जांच में कितनी गंभीरता दिखाती है। क्योंकि इससे पहले भी मुख्यमन्त्री और मुख्य सचिव विजिलैन्स को सहकारी बैंक में हुई भर्तीयों के मामले की जांच करने के आदेश कर चुके हैं लेकिन इस पर अभी तक कोई कारवाई शुरू नही हुई है। ऐसे में यह आशंका बराबर बनी हुई है कि इस मामले का अंजाम भी कहीं इसी तरह का न हो।