बीपीएल प्रकरण पर जिम्मेदार नगर निगम सदन और जांच सचिव की

Created on Monday, 20 August 2018 12:16
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। नगर निगम शिमला में जब गरीब परिवारों के लिये बीपीएल योजना के तहत बनाये गये आवासों का आंवटन किया गया था तब निगम की बीपीएल सूची पर ही गंभीर आरोप लगे थे। इन आरोपों पर निगम के हाऊस में चर्चा आयी थी और सदन ने 25.4.2008 को हुई अपनी पहली ही बैठक में निगम की सचिव के खिलाफ जांच करवाये जाने के आदेश दिये थे क्योंकि बीपीएल कार्ड जारी करने की जिम्मेदारी सचिव के पास थी। निगम के सदन के आदेश पर संयुक्त आयुक्त को जांच अधिकारी नियुक्त किया गया। संयुक्त आयुक्त ने 10.7.2018 को जांच शुरू की और 12.7.2018 को इस पर फैसला भी दे दिया।
संयुक्त आयुक्त विकास सूद की जांच रिपोर्ट मे कुछ महत्वपूर्ण खुलासे सामने आये हैं। सबसे पहले यह सामने आया है कि 2012 तक बीपीएल कार्ड जारी करने के लिये आयुक्त/संयुक्त आयुक्त ही अधिकृत थे। लेकिन 15.5.12 को यह जिम्मेदारी निगम की सचिव को दे दी गयी। दूसरा बिन्दु यह आया है कि निगम में बीपीएल परिवारों का सर्वे 2007 में एक एनजीओ समीक्षा द्वारा करवाया गया था। समीक्षा को यह कार्य 10.7.2008 को निगम के सदन की स्वीकृति से दिया गया था। समीक्षा ने 3050 परिवारों का सर्वे किया था। जिसे 13 जून 2008 को ए.सी.एस(यूडी) ने भी अनुमोदित किया था। जांच रिपोर्ट में यह भी समाने आया है कि निगम के सदन ने प्रस्ताव संख्या 3 ;3द्ध दिनांक 27.7.2011 को यह पारित किया था कि हिमाचली प्रमाणपत्र औरआय प्रमाण पत्र पर बीपीएल कार्ड जारी कर दिये जायें। लेकिन बीपीएल के लिये जो दिशा निर्देश जारी किये गये थे उनके मुताबिक वार्ड संभाएं गठित करके उनकी सिफारिश पर ही यह कार्ड जारी किये जाने थे। परन्तु नगर निगम में यह वार्ड सभायें एमसी एक्ट 1994 के मुताबिक आज तक भी गठित ही नही हुई है। फिर बीपीएल कार्डों की वैधता भी केवल एक वर्ष रखी गयी है यह भी जांच रिपोर्ट में सामने आया है।
ऐसे में यह सवाल उठता है कि जब एमसी एक्ट के मुताबिक बीपीएल कार्ड वार्ड सभाआें की सिफारिश पर ही दिये जाने हैं और उनकी वैधता भी केवल एक वर्ष ही है तो फिर 2007 में एनजीओ समीक्षा से यह सर्वे क्यों करवाया गया। जबकि बीपीएल नीति के तहत इसकी आवश्यकता ही नही थी। यदि सर्वे की आवश्यकता थी तो फिर यह सर्वे 2007 के बाद क्यों नही करवाया गया। फिर बीपीएल कार्ड की वैधता केवल एक ही वर्ष क्यो रखी गयी। क्योंकि जब बीपीएल को आधार बनाकर ही शहरी गरीबों को आवास आदि की सुविधा दी जानी है तो क्या यह सुविधा और सूची हर वर्ष बदलती रहेगी। जब निगम के सदन में यह मुद्दा आया तब इस पर कोई ठोस और स्थायी नीति बनाने की बजाये सदन ने अपनी जिम्मेदारी सचिव पर क्यों डाल दी। जिस कार्य के लिये सदन को जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिये था उसके लिये सचिव की जांच क्यों? आज तक वार्ड सभाएं गठित नही हो पायी हैं ऐसे में आज बीपीएल कार्ड क्या हिमाचली और आय के प्रमाण पत्रों पर ही जारी नही किया जायेगा।