शिमला/शैल। मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर को पूर्व कर्मचारी नेता ओम प्रकाश गोयल ने उनके सरकारी आवास ओक ओवर में 18 फरवरी को एक करीब 190 पेज का प्रतिवेदन सौंपा था। इस प्रतिवेदन में गोयल ने उस सबका देस्तावेजी प्रमाणों के साथ खुलासा किया था जो उनके साथ पर्यटन विकास निगम में पेश आया था जब उन्होने निगम में फैले भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाई थी। इस भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने का ईनाम उन्हे नौकरी से बर्खास्तगी के रूप में मिला जबकि हर सरकार भ्रष्टाचार कतई सहन नही किया के दावे करती आयी है। यही नही भाजपा ने जब 6.3.2007 को महामहिम राज्यपाल को तत्कालीन वीरभद्र सरकार के खिलाफ आरोप पत्र सौंपा था तब जयराम ठाकुर पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष थे। इस आरोप पत्र में वीरभद्र सरकार पर एक आरोप कर्मचारियों के उत्पीडन का था और इस उत्पीड़न में वाकायदा ओम प्रकाश गोयल का नाम शामिल था। आरोप पत्र प्रेम कुमार धूमल और जयराम ठाकुर के हस्ताक्षरों से सौंपा गया था। लेकिन जब धूमल सरकार सत्ता में आयी तो तब गोयल को इन्साफ नही मिल पाया। इसके बाद वीरभद्र सरकार सत्ता में आयी। इस सरकार ने गोयल के आरोपों की जांच के लिये पर्यटन निगम के एक निदेशक धर्माणी की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया। धर्माणी कमेटी ने गोयल के लगाये आरोपों को एकदम सही पाया और न्याय दिये जाने की संस्तुति की। लेकिन इतना होने के बावजूद वीरभद्र काल में गोयल को न्याय नही मिल पाया।
अब जब जयराम की सरकार आयी तब 18 फरवरी को गोयल ने मुख्यमन्त्री आवास ओक ओवर में फिर मुख्यमंत्री को न्याय की गुहार लगाते हुए एक प्रतिवेदन सौंपा। मुख्यमन्त्री जयराम ने उन्हे पूरा आश्वासन दिया कि उनको इन्साफ मिलेगा। गोयल ने मुख्यमन्त्री के साथ ही इस प्रतिवेदन की प्रतियां महामहिम राज्यपाल, शिमला के विधायक एवम् शिक्षा मन्त्री सुरेश भारद्वाज और प्रदेश के मुख्य सचिव को भी सौंपी। इसके बाद जब 8.3.2018 को आरटीआई के तहत गोयल ने अपने इस प्रतिवेदन पर अब तक हुई कारवाई के बारे में जानकारी मांगी तब विशेष सचिव पर्यटन के कार्यालय से उन्हे जवाब मिला कि उनके प्रतिवेदन को लेकर राज्यपाल, शिक्षा मन्त्री और मुख्य सचिव के कार्यालयों से तो पत्र प्राप्त हुए हैं लेकिन मुख्यमन्त्री कार्यालय से कोई पत्र नही मिला है। इस पर गोयल ने मुख्यमन्त्री कार्यालय से भी जानकारी मांगी और वहां से भी जवाब आया कि मुख्यमन्त्री कार्यालय में उनका कोई पत्र प्राप्त ही नही हुआ है।
आरटीआई में मिली इस सूचना के बाद फिर गोयल ने मुख्यमन्त्री के आवास पर दस्तक दी। इस बार बड़ी प्र्रतीक्षा के बाद मुख्यमन्त्री को मिल पाये। लेकिन मिलने पर इसका कोई जवाब नही मिल पाया कि उनके प्रतिवेदन का हुआ क्या है। इस बार भी उन्हे केवल आश्वासन ही मिला है कि वह उनकी फाइल मंगवायेंगे। इस सबसे यह सवाल उठता है कि जब मुख्यमन्त्री के आवास पर दिया गया प्रतिवेदन ही पांच माह में आवास से कार्यालय तक न पहुंच पाये और न ही संवद्ध विभाग में पहुंचे तो क्या इससे मुख्यमन्त्री के अपने ही सचिवालय की कार्यप्रणाली पर आम आदमी का भरोसा बन पायेगा। प्रतिवेदन में की गयी मांग से सहमत होना या न होना प्रतिवेदन का आकलन करने वाले का अपना अधिकार है लेकिन उस प्रतिवेदन पर हुई कारवाई की जानकारी तो प्रतिवेदन देने वाले को मिलनी चाहिये यह उसका अधिकार है। यदि प्रतिवेदन से असहमत हो तो असहमति के आधार जानने का भी प्रतिवेदन देने वाले को अधिकार है लेकिन जब प्रतिवेदन मुख्यमन्त्री के यहां से कहीं पहुंचे ही नही तो फिर सारी कार्यशैली की नीयत और नीति पर सवाल उठने स्वभाविक हैं। क्योंकि इस प्रतिवेदन में कई बड़े अधिकारियों और नेताओं को लेकर गंभीर आरोप हैं और इससे यही संदेश जाता है कि बड़ो के भ्रष्टाचार पर केवल जनता में भाषण ही दिया जा सकता है उस पर कारवाई नही। ऐसे मे जिन बड़े लोगों से संपर्क करके समर्थन मांगा जा रहा है उन सबके लिये यह एक बड़ा आईना है जिसमें वह सरकार की सही छवि का दर्शन और फिर आकलन कर सकते हैं। क्योंकि ऐसे और कई मामले आने वाले दिनों में सामने आयेंगे।