शिमला/शैल। जयराम सरकार ने 26 फरवरी 2018 को पूर्व अतिरिक्त मुख्य सचिव दीपक सानन की 24.10.2016 से 24.1.2017 तक की छुट्टी को स्टडी लीव के रूप में स्वीकृति प्रदान कर दी है। दीपक सानन 31.1.2017 को सेवानिवृत हो गये थे। सरकार ने दीपक सानन की इस तीन माह की छुट्टी को स्टडी लीव के तौर पर इसलिये स्वीकृति दी है क्योंकि इस छुट्टी के कारण उनके अर्जित अवकाश के 300 दिन पूरे नही हो रहे थे। यदि किसी अधिकारी /कर्मचारी के खाते में सेवानिवृति के मौके पर 300 दिन का अर्जित अवकाश जमा हो तो उसे इस अवकाश के बदले में इस जमा हुए पीरियड का लीव इनकैशमेन्ट के रूप में पूरा वेतन मिल जाता है। यदि यह अवधि कम हो जाये तो उतना पैसा कम हो जाता है। इस नाते दीपक सानन को सरकार की इस मेहरबानी से करीब सात लाख से कुछ अधिक का लाभ पहुंचा है। सरकार के इस फैसले से यह सवाल उठना शुरू हो गया है कि क्या सरकार इसी तर्ज पर यह लाभ अन्य ऐसे अधिकारियों /कर्मचारियो को भी देगी जिनकी लीव इनकैशमेन्ट के लिये वांच्छित 300 दिन की अवधि पूरी नही होती हो। क्योंकि सानन को यह लाभ आईएएस स्टडी के नियमों में छूट देकर दिया गया है। यहां यह सवाल भी खड़ा हो रहा है कि क्या राज्य सरकार अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवा के स्टडी नियमों में छूट देने के लिये अपने तौर पर सक्षम थी भी या नही है।
यह सवाल इयलिये उठ रहे हैं क्योंकि सानन 31 जनवरी 2017 को रिटायर हो गये और इसके मुताबिक वह 24 जवनरी तक स्टडी लीव पर थे। उनकी स्टडी लीव 24.10.2016 से 24.1.2017 तक करीब तीन महीने रहती है। उन्होने सरकार के मुताबिक एनसीएईआर न्यू दिल्ली में यह स्टडी की है। स्टडी लीव नियमों के मुताबिक किसी संस्थान में स्टडी ज्वाईन करने से पहले यह छुट्टी ली जाती है। सरकार के खर्च पर स्टडी करने के बाद उस स्टडी की रिपोर्ट सरकार को सौंपनी होती हैं क्योंकि सरकार अपने खर्चे पर तभी स्टडी पर भेजती है। यदि उस स्टडी से सरकार को भविष्य में किसी नीति निर्धारण में लाभ पहुंचना हो। सानन के केस में तो यह भी सवाल खड़ा होता है कि सानन ने तो 31.1.17 को सेवानिवृत हो जाना था और वह हो भी गये। ऐसे में उनकी स्टडी से सरकार को कोई सीधा लाभ नही पहुंचना था। नियमों के मुताबिक जिस व्यक्ति ने स्टडी के बाद एक वर्ष के भीतर ही सेवानिवृत हो जाना हो उसे सरकार अपने खर्च पर पढ़ने क्यों भेजे। फिर सानन तो स्टडी पूरी करने के ठीक एक सप्ताह बाद ही सेवानिवृत हो गये हैं। फिर जिस संस्थान से उन्होनें स्टडी की है वहां का कोई प्रमाणित एवम् स्थापित शोध पत्र भी उन्होंने सरकार को नही सौंपा है।
स्मरणीय है कि जिस दौरान वह उस स्टडी लीव पर हैं उस दौरान वह कैट में विनित चौधरी के साथ सह याचिकाकर्ता भी थे जिसमें इन्हे नजरअन्दाज करके वीसी फारखा को मुख्य सचिव बनाये जाने के सरकार के फैसले को चुनौती दी गयी थी। यहां यह भी गौरतलब है कि सानन एपपीसीए प्रकरण में अदालत में दायर चालान में अभियुक्त नामजद है। जयराम सरकार ने उनके खिलाफ मुकद्दमें की अनुमति देने से इन्कार कर दिया है जबकि इस मामले में कोई पुनः जांच करके कोई नये तथ्य नही आये हैं। जिनके आधार पर सरकार मुकद्दमें की अनुमति देने के अपने अधिकार का प्रयोग करती है। इस मामले में यह प्रकरण सर्वोच न्यायालय में लंबित चल रहा है। सर्वोच्च न्यायालय इस मामले को वापिस लेने की अनुमति सरकार को देता है या नही इस पर सबकी नज़रें लगी हुई हैं। अभी सरकार ने सानन को हिपा के लिये नव गठित सलाहकार बोर्ड में भी बतौर सदस्य नियुक्ति दी है। इस सबसे यह स्पष्ट हो जाता है कि सरकार सानन को हर कीमत पर लाभ देना चाहती है चाहे उसे अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर आईएएस स्टडी लीव नियमों मे ढील ही क्यों न देनी पड़े। मुख्यमन्त्री कार्मिक, वित्त और गृह सभी विभागों के मन्त्री भी हैं जिसका सीधा सा अर्थ है कि यह सारे फैसले उनकी अनुमति के साथ हो रहे हैं। सूत्रों की माने तो स्टडी लीव का लाभ देने के लिये सरकार ने विधि विभाग की राय लेना भी ठीक नही समझा है और एक व्यक्ति को नियमों के विरूद्ध जाकर अनुचित लाभ और सरकारी कोष को हानि पहुंचाने का काम किया है।