मकलोड़गंज पर अभी तक जिला जज ही नही दे पाये हैं जांच रिपोर्ट

Created on Sunday, 06 May 2018 10:03
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य सरकार से मैकलोड़गंज में हुए अवैध निर्माण पर रिपोर्ट तलब की है। मैकलोड़गंज के बी ओ टी के माध्यम से बने बस अड्डा प्रकरण की जांच सर्वोच्च न्यायालय ने प्रदेश के मुख्य सचिव से लेकर कांगड़ा के जिला जज् को सौंपी थी। इस पर चार माह में रिपोर्ट जानी थी जो अब एक वर्ष से भी अधिक का समय बीत जाने के बाद भी नही गयी है। अब सरकार इसमें सर्वोच्च न्यायालय के सामने क्या तथ्य रखती है इस पर सबकी निगाहें लगी हुई हैं। क्योंकि यदि सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों की अनुपालना उसका अधीनस्थ जिला जज ही तय समय में न कर पाये तो फिर प्रशासनिक अधिकारियों से ऐसी अनुपालना की अपेक्षा कैसे की जा सकती है यह एक बड़ा सवाल सर्वोच्च न्यायालय के सामने रहेगा।
स्मरणीय है कि धर्मशाला के मकलोड़गंज में बीओटी के आधार पर बन रहे बस अड्डा और चार मंजिला होटल तथा शाॅपिंग कम्पलैक्स के निर्माण को एक अनुज भारद्वाज ने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित सीईसी में चुनौती दी थी। इसमें यह आरोप लगाया गया था कि यह निर्माण वनभूमि पर हो रहा है और इसके लिये वन एवम् पर्यावरण अधिनियम के तहत वांच्छित अुनमति नही ली गयी है। इस मामलें पर सीईसी ने अपनी रिपोर्ट 18 सितम्बर 2008 को सर्वोच्च न्यायालय को सौंपी थी। इस रिपोर्ट में पूरे निमार्ण पर कानूनी प्रावधानों की घोर उल्लंघना के गंभीर आरोप लगे है। इस उल्लंघना में पूरे संवद्ध प्रशासन की भी मिली भगत पायी गयी है। इस उल्लंघना के लिये प्रदेश सरकार को एक करोड़ का जुर्माना लगाया गया था और निर्माण कर रही कंपनी मै. प्रशांती सूर्य को ब्लैक लिस्ट किया गया था।
सीईसी की इस रिपोर्ट को प्रशांती सूर्य ने सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी जिस पर मई 2016 में फैसला आया। इस फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने मै. प्रशांती सूर्य को 15 लाख का जुर्माना लगाया और बस अड्डा प्रबन्धन एवम् विकास अथॅारिटी पर दस लाख और पर्यटन विभाग पर भी पांच लाख का जुर्माना लगाया। जुर्माने के साथ इसमें बन रहे होटल और रेस्तरां को गिराने के भी आदेश पारित किये हैं। इसी के साथ प्रदेश के मुख्य सचिव को पूरे प्रकरण की जांच करके बस अड्डा प्राधिकरण के संबंधित अधिकारियों की व्यक्तिगत जिम्मेदारी तय करके उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कारवाई की अनुशंसा की है।
बस अड्डा प्राधिकरण ने सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले की फिर से अपील की। इस अपील की सुनवाई में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने पहले फैसले को संशोधित करते हुए इसकी जांच मुख्य सचिव से लेकर जिला जज धर्मशाला को सौंप दी और चार माह में इसकी रिपोर्ट सर्वोच्च न्यायालय को सौंपने के निर्देश दिये। यह निर्देश 2017 में दिये गये थे और करीब एक वर्ष हो गया है। लेकिन यह रिपोर्ट अभी तक नहीं जा सकी है। इस संबंध में जब जिला जज के कार्यालय से संर्पक किया तो उन्होने कहा कि उन्हे इसकी जानकारी ही नही है। जिला जज से इस बारे में बात नही हो सकी। इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के वाबजूद जिला जज द्वारा चार माह में रिपोर्ट न सौंपा जाना प्रशासनिक हल्कों में चर्चा का विषय बना हुआ है। क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय के इन आदेशों के बाद जिला जज द्वारा सरकार से इस मामले में सहायता के लिये एक वकील मांगा गया था जो सरकार ने उपलब्ध करवा दिया था। यह वकील भी एक वर्ष पहले दे दिया गया था लेकिन इसके वाबजूद इसमें अभी तक और कोई कारवाई नही हो पायी है। यदि सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों की अनुपालना तय समय के भीतर जिला जज द्वारा भी न हो पाये तो स्वभाविक रूप से यह चर्चा का विषय तो बनेगा ही।We accordingly modify our order dated 16.05.2016 and direct the District Judge to hold an inquiry into the conduct of all officers responsible for the construction of the bus stand /hotel /accompanying complex and to submit a report to this Court as to the circumstances in which the alleged construction was erected and the role played by the officers associated with the same. The District Judge may appoint a suitable presenting officer to assist him in the matter. We further direct that the Government of Himachal Pradesh and the petitioner authority shall render all such assistance as may be required by the District Judge in connection with the inquiry and produce all such record and furnish all such information as may be requisitioned by him. Needless to say that the District Judge shall be free to take the assistance of or summon any official from the Government or outside for recording his/ her statement if considered necessary for completion of the inquiry. The District Judge is also given liberty to seek any clarification or direction considered necessary in the matter. He shall make every endeavour to expedite the completion of the inquiry and as far as possible send his report  before this Court within a period of four months from the date a copy of this order is received by him.