सरकार में कौन सुप्रीम है वित्त विभाग या मन्त्री परिषद-बजट चर्चा के बाद उठा सवाल

Created on Monday, 19 March 2018 10:49
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। जयराम सरकार ने सत्ता संभालते ही यह स्पष्ट कर दिया था कि वह पूर्ववर्ती वीरभद्र सरकार के अन्तिम छः माह में लिये फैसलों की समीक्षा करेंगे। कई फैसलों की समीक्षा के बाद उन्हें बदल भी दिया गया है। कुछ पर तो जांच तक के आदेश हो चुके हैं। शराब कारोबार को लेकर बनाई गयी बिवरेज कारपोरेशन की जांच में तो एफआईआर तक हो चुकी है। यह जानकारी स्वयं मुख्यमन्त्री ने बजट भाषण में हुई चर्चा का जवाब देतेे हुए सदन को दी है। इसी चर्चा के उत्तर में मुख्यमन्त्री ने यह भी घोषणा की कई संस्थान समीक्षा के बाद बन्द कर दिये गये हैं।  इन संस्थानों को बन्द करनेे के कारण गिनाते हुए एक बड़ा कारण यह बताया गया कि इन्हे खोलने के लिये वित्त विभाग से स्वीकृति तक नही ली गयी और संस्थान खोल दिये गये। जब मुख्यमन्त्री ने सदन में यह खुलासा रखा है तोे निश्चित रूप से यह सही ही होगा।
सरकार का कामकाज़ कैस चलता है इसके संचालन की प्रक्रिया क्या रहती है इसके लिये सदन द्वारा वाकायदा रूल्ज़ आॅफ विजनैस पारित है। इन नियमों में संवद्ध विभाग के कल्र्क से लेकर मन्त्री तक सबकी शक्तियों और कार्यो का बंटवारा किया हुआ है। कोई भी यदि कार्य निष्पादन में इन नियमों से बाहर जाता है या उनकी उल्लंघना करता है तो उसके खिलाफ वाकायदा कारवाई हो जाती है इन नियमों के मुताबिक सरकार में मुख्यमन्त्री से भी अधिक शक्ति पूरी मन्त्री परिषद की सामूहिक रूप से रहती है। इसलिये हर विभाग को हर छोटे बड़े फैसले को मन्त्री परिषद की बैठक में जाकर उसकी स्वीकृति की मोहर उस पर लगवाई जाती है। मन्त्री परिषद की बैठक में वित्त सचिव या उसका प्रतिनिधि भी मौजूद रहता है। यदि वित्त विभाग की किसी फैसले पर सहमति न भी रहे तो उसे अपनी भिन्न राय दर्ज करने का भी अधिकार रहता है। यदि वित्त विभाग की असहमति के बावजूद मन्त्री परिषद किसी फैसले का अनुमोदन कर देती है तो उसका फैसला ही सर्वोपरि रहता है। ऐसे में फैसला लेने वालों के खिलाफ कोई कारवाई नही की जा सकती है। बल्कि मन्त्री परिषद तो वित्त विभाग से बाकायदा स्वीकृति प्राप्त फैसलों को भी पलटने का अधिकार रखती है।
इस परिदृश्य में आज जयराम सरकार पूर्ववर्ती वीरभद्र सरकार के शासनकाल के  फैसलों  को समीक्षा बाद के बदलने के लिये अधिकृत तो है लेकिन इनके लिये किसी के खिलाफ कोई कारवाई नही की जा सकती। लेकिन जयराम सरकार ने पूर्ववर्ती वीरभद्र सरकार के शासनकाल में लिये गये कर्जाें और अन्य फैसलों के लिये वित्तिय कुप्रबन्धन का आरोप लगाया है। यह आरोप एक तरह से वित्त विभाग पर सीधा आरोप हो जाता है। आने वाले समय में प्रशासनिक विभाग कोई भी फैसला लेते हुए पहले वित्त विभाग की अनुमति मांगेगा। वित्त विभाग भी अनुमति देने से पूर्व सारे संवद्ध नियमों की अनुपालना और बिना कर्ज के धन की उपलब्धता देखेगा। आज कर्ज की जो स्थिति है और जो आगे बढ़ने वाली है उसको देखते हुए यह कहा जा सकता है कि सरकार के सारे घोषित लक्ष्यों में से शायद दस प्रतिशत भी पूरे नही हो पायेंगें। क्योंकि आज मुख्यमंत्री ने जो बजट भाषण सदन में रखा और सदन ने चर्चा के बाद उसे अनुमोदित भी कर दिया है उसमें एफआरबीएम के तहत बहुत सारे बिन्दु चर्चा से छूट गये हैं। यह बिन्दु छूट गये हैं या जानबूझकर छोड़ दिये गये हैं इसका सही पता तो आने वाले समय में ही लगेगा।
स्मरणीय है कि Fiscal Responsibilty and Budget& Management  Act ( FRBM) संसद द्वारा 2003 में लाया गया था और इसके वित्तिय घाटे को 2008 तक 3% तक लाना था। यह घाटे की स्थिति सरकारों के लिये तब आती है जब उसके खर्चे राजस्व से बढ़ जाते हैं। इन बढे़ हुए खर्चों को नियन्त्रित और कम करने के कदम उठाने के लिये यह एक्ट लाया गया था। इस एक्ट पर वित्तमन्त्री अरूण जेटली ने 2016 के शुरू में एक रिव्यू कमेटीे का गठन किया था। इसकी दूसरी रिपोर्ट 23 जनवरी 2017 को वित्तमन्त्री को सौंप दी गयी थी। इस रिपोर्ट के बाद वित्तमन्त्री अरूण जेटली केन्द्र के राजस्व घाटे को 2% की जगह 2017-2018 के लिये 1.9% पर ले आये हैं। इसी रिव्यू कमेटी की रिपोर्ट के बाद केन्द्र के वित्त विभाग की ओर से मार्च 2017 में प्रदेश सरकार को भी एक सश्क्त पत्र आया था लेकिन इस पत्र के बाद भी राज्य सरकार ने अपने खर्चे कम करने के लिये कोई कड़े कदम नही उठाये हैं बल्कि यह माना जा रहा है कि इस पत्र के बाद केन्द्र के द्वारा हिमाचल को जो 71000 करोड़ दिये जाने की बात प्रधानमन्त्री मोदी ने अपनी मण्डी की जनसभा में उठायी थी उसमें केन्द्र से प्रदेश को 71000 करोड़ की बजाये केवल 46793 करोड़ ही मिल पाये हैं।
ऐसे में प्रदेश सरकार ने अपने खर्चों के लिये कर्जो के साथ जो केन्द्र से सहायता मिलने की उम्मीद बांध रखी है वह सही में ही पूरी हो पायेगी इसको लेकर सन्देह हो रहा है। क्योंकि अपने राजस्व खर्चों को कम करने के लिये क्या उपाय किये जायें इसको लेकर सदन में कोई चर्चा नही उठायी गयी है। बल्कि मार्च 2017 में जो केन्द्र के वित्त विभाग से पत्र प्राप्त हुआ था उस पर वीरभद्र सरकार ने आय के स्त्रोत बढ़ाने के उपाय सुझाने के लिये जो कमेटी हर्षवर्धन  चौहान  की अध्यक्षता में बनाई थी उसमें  चौहान  के साथ कोई और सदस्य नामित नही किया गया था। चैहान ने भी अपनी रिपोर्ट आचार संहिता लगने से कुछ समय पूर्व ही सरकार को सौंपी थी और यह रिपोर्ट मुख्यमन्त्री जयराम के मुताबिक एक बार भी मन्त्री परिषद के सामने नही रखी गयी है। इस खुलासे से स्पष्ट हो जाता है कि प्रदेश की व्यवहारिक वित्तिय स्थिति के बारे में पूर्व सरकार कितनी गंभीर और ईमानदार रही है। लेकिन इस सबमें प्रदेश का वित्त विभाग भी अपनी भूमिका और जिम्मेदारी से भाग नही सकता है। क्योंकि वित्त विभाग ने कभी भी अपनी निर्भिक राय रिकार्ड पर सरकार के सामने नही रखी है। लेकिन इस बार अनचाहे ही मुख्यमन्त्री के माध्यम से वित्तविभाग पर कुप्रबन्धन का आरोप लग गया है। इस आरोप की वित्त विभाग की क्या प्रतिक्रिया रहती है और उसका प्रभाव सरकार पर क्या पड़ता है इसका खुलासा तो आने वाले समय में ही सामने आयेगा। लेकिन माना जा रहा है कि इससे सरकार का रास्ता आसान नही रहेगा।